AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : ابنا
सोमवार

28 अगस्त 2023

8:30:33 am
1389525

तकफ़ीरी बिल के ख़िलाफ़ पाकिस्तानी दूतावास पर किया जाएगा विरोध प्रदर्शन

अब इसे आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक 2023 के रूप में जनवरी में नेशनल असेंबली द्वारा केवल 15 सदस्यों की उपस्थिति में पारित कर दिया गया।


1980 में, जनरल जिया-उल-हक ने एक अध्यादेश के माध्यम से पाकिस्तान दंड संहिता में धारा 298ए जोड़ी, जिसके तहत अहले बैत और सहाबा के साथ साथ रसूले इस्लाम की पत्नियों का अपमान करने पर तीन साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान किया गया।1985 में, ज़िया-उल-हक ने आठवें संशोधन के माध्यम से अपने सभी उपायों को संवैधानिक दर्जा दे दिया , इस प्रकार 298A संविधान का हिस्सा बन गया और आज तक कायम है।

विधेयक से यह स्पष्ट है कि इसमें चार संशोधन किये गये हैं:

सज़ा को तीन साल से बढ़ाकर न्यूनतम दस साल या आजीवन कारावास कर दिया गया।

इसे जमानती से गैर जमानती अपराध बना दिया गया।

समन जारी करने के बजाय, अदालत शुरू में गिरफ्तारी वारंट जारी करेगी।

इस मामले की सुनवाई मजिस्ट्रेट की बजाय सेशन कोर्ट में होगी।

अब इसे आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक 2023 के रूप में जनवरी में नेशनल असेंबली द्वारा केवल 15 सदस्यों की उपस्थिति में पारित कर दिया गया।

फरवरी में, संघीय मानवाधिकार मंत्री रियाज़ हुसैन पीरज़ादा ने प्रधान मंत्री शहबाज़ शरीफ़ को इन संशोधनों को अमान्य घोषित करने का प्रस्ताव दिया। उन्होंने कहा कि संशोधनों का उद्देश्य "एक निश्चित समूह को खुश करना" था और यह विधेयक "संसदीय प्रक्रिया के नियमों का पालन किए बिना" पारित किया गया था।

पाकिस्तान की बहुसंख्यक जनता गरीब और अर्ध-साक्षर है, वहां ईशनिंदा के नाम पर सबसे कठोर कानून है, पुलिस और न्याय संस्थाएं भीड़ और तथाकथित धार्मिक नेताओं के दबाव निर्दोषों की जिंदगियां तबाह करती रही हैं। भीड़ किसी को भी अभियुक्त घोषित कर मार डालती है। अब ईशनिंदा कानून को तथाकथित पवित्र हस्तियों तक विस्तारित करने से समाज में सांप्रदायिक दंगे और धार्मिक घृणा फैल जाएगी, जिससे देश के सामाजिक विकास को नुकसान होगा।

इस क़ानून की आड़ में अहले-बैत रसूल के दुश्मनों को पवित्र करने के इस अभियान के ख़िलाफ़ दुनिया भर से विरोध की आवाज़ें उठ रही हैं। इस संबंध में 1 सितंबर को नई दिल्ली में पाकिस्तानी दूतावास के सामने विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। इस संबंध में शिया धार्मिक विद्वान और लखनऊ के इमाम जुमा मौलाना कल्ब जवाद नकवी ने घोषणा की कि इमाम हुसैन की अज़ादारी केवल शिया धर्म से संबंधित नहीं है, बल्कि सुन्नी और गैर-मुस्लिम भी शोक मनाते हैं। इस बिल के जरिए शिया संप्रदाय पर अहले बैत के दुश्मनों के खिलाफ कुछ भी कहने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अगर ये बिल पास हो गया तो मजलिस और मातम खत्म हो जाएगा। इसलिए, 1 सितंबर को जुमे की नमाज़ के बाद पाकिस्तानी दूतावास पर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। इसलिए इमाम हुसैन के प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगों को बड़ी संख्या में इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होना चाहिए।