कैलेन्डर के अनुसार 7 ज़िलहिज्जा को मुसलमानों के पांचवें इमाम, इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की शहादत का दुःखद दिन है और इस अवसर पर पूरे ईरान में शोक मनाया जा रहा है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की सबसे प्रसिद्ध उपाधि बाक़िर या बाक़िरुल उलूम है।
इस उपाधि का मुख्य कारण यह है कि इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने विभिन्न विषयों के ज्ञानों को एक दूसरे से अलग किया।
इमाम की शहादत के दुःखद अवसर पर पवित्र नगर मशहद और क़ुम सहित दूसरे धार्मिक और ग़ैर स्थानों पर शोकसभाओं का आयोजन किया गया जिसमें वक्ताओं ने इमाम के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।
अपने पिता चौथे इमाम, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद पांचवें इमाम, इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। जिस समय इमाम ने यह दायित्व संभाला उस समय उनकी उम्र 19 साल 10 महीना थी।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत के दौरान इस्लाम के प्रचार- प्रसार का काम किया और लोगों को समय की अत्याचारी सरकार के अत्याचारों से अवगत कराने में किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं लिया। अंततः समय के अत्याचारी शासक हेशाम बिन अब्दुल मलिक ने इमाम को 7 ज़िलहिज्जा 114 हिजरी क़मरी को ज़हर दिलवाकर शहीद कर दिया।
इमाम की पवित्र क़ब्र सऊदी अरब के पवित्र नगर मदीना में जन्नतुल ब़की नामक क़ब्रिस्तान में है। इस दुःखद अवसर पर रेडियो तेहरान अपने समस्त श्रोताओं की सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करता है। MM
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