28 रजब सन 60 हिजरी को इमाम हुसैन की मदीने से रवानगी की याद में देश के कोने कोने में ग़म का माहौल है। इमाम हुसैन अस ने दीने इस्लाम की हिफाज़त के लिए इसी दिन अपने प्यारे वतन को छोड़ कर मक्के का रुख किया। इमाम हुसैन का मदीने से निकलना सिर्फ एक हिजरत नहीं बल्कि रसूले इस्लाम के दीन को बचाने की शुरुआत थी।
28 रजब की इस क़यामत ख़ेज़ तारीख़ और इमाम हुसैन अस के इस सफर की याद में बाराबंकी के जरगांवा में दिन भर मजलिसो मातम का दौर जारी रहा। जिसमे उलमा केराम ने इमाम हुसैन अस के मक़सदे क़याम और आपके मदीना छोड़ने की हिकमतों पर रौशनी डालते हुए मक़सदे हुसैनियत को बयांन किया।
इस प्रोग्राम में नाज़मिया अरबी कॉलेज के उस्ताद हुज्जतुल इस्लाम मौलाना हसनैन बाकेरी, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद सक़लैन बाकरी, आली जनाब मौलाना इब्ने अब्बास और आली जनाब मौलाना अता मेहदी साहब ने मजलिस को खिताब फ़रमाया।
हुज्जतुल इस्लाम मौलाना हसनैन बाकेरी ने कहा कि इमाम हुसैन का मक़सद समाज से जेहालत, बेदीनी और ज़ुल्म का खात्मा है। इमाम का मक़सद तहज़ीबे नफ़्स और समाज को तरक़्क़ी की तरफ ले जाना था तो हुसैनियत का मक़सद भी यही होना चाहिए।
इस प्रोग्राम में मक़ामी और बैरूनी अंजुमनों ने भी शिरकत की। मक़ामी अंजुमन के अलावा देवरा सादात की अंजुमने फ़रोग़े अज़ा , अंजुमने ज़ीनते अज़ा आलमपुर, अंजुमने नुसरतुल अज़ा संगोरा, अंजुमने रौनक़े अज़ा आलम पुर ने नौहाखानी और सीनाज़नी की।