28 रजब सन 60 हिजरी को इमाम हुसैन ने मदीना छोड़ दिया था, यह फ़क़त एक सफर या हिजरत नहीं थी बल्कि रसूले इस्लाम के दीन को बचाने की इब्तेदा थी।
इमाम हुसैन अस के इस सफर की याद में दुनियाभर में मजलिसो मातम का सिलसिला जारी है। हिदुस्तान के कोने कोने में 28 रजब को मजलिसो मातम के साथ साथ इमाम हुसैन की मदीने से रवानगी की मंज़र कशी की गई और जुलूसे अमारी के साथ उस मंज़र को याद किया गया जब इमाम हुसैन ने बनी उमय्या के ज़ालिम और सरकश हुक्मरानों के मुसलसल फ़ित्नों से उम्मत और दीं को निजात देने के मक़सद से मदीना छोड़ दिया।
इमाम हुसैन ने यह कहते हुए मदीना छोड़ा कि मैं दीने इस्लाम की हिफाज़त और अपने नाना की उम्मत की इस्लाह के लिए जा रहा हूँ। इमाम हुसैन ने अपने भाई मोहम्मद हनफ़िया के नाम अपने मशहूर वसीयतनामे में कहा " मैं अपना वतन किसी शरो फसाद फैलाने और ज़ुल्मो सितम करने कि खातिर नहीं छोड़ रहा हों बल्के मदीना से मेरी रवानगी का मक़सद यह है कि अपने नाना हज़रत मोहम्मद की उम्मत की इस्लाह करूं और अमर बिल मारूफ करूँ और नही अज़ मुनकर करूँ और मैं –अपने नाना रसूल अल्लाह और बाबा अली बिन अभी तालिब की सीरत पर अमल पर होना चाहता हूँ।
उत्तरखंड के मंगलौर हरिद्वार, मुरादाबाद, बिजनौर, मुज़फ्फर नगर, मेरठ, लखनऊ, जौनपुर, अम्बेडकरनगर, बनारस और बाराबंकी के अलग अलग हिस्सों में दिन भर अज़ादारी का सिलसिला जारी रहा।
मंगलौर में महल्ला हल्क़ा में अज़ाख़ाना ए सय्यदुश शोहदा में हुई मजलिस को मौलाना अज़ादार हुसैन साहब ने खिताब किया जिसके बाद जुलूस बरामद हुआ जो कर्बला में जाकर ख़त्म हुआ।
बाराबंकी के जैदपुर में तारीख़ी अमारी के जुलूस के लिए काफी पहले से ही तैयारियां शुरू थी। 27 रजब का दिन गुज़रते ही 28 की शब् में हुई मजलिस को नाज़िमिया अरबिक कॉलेज के प्रोफ़ेसर मौलाना सय्यद मोहम्मद हसनैन बाकिरी ने खिताब करते हुए इमाम हुसैन की ज़िंदगी और ज़ुल्म के मुक़ाबले आपके संघर्ष को बयान करते हुए आपकी मदीने से रवानगी के मक़सद को खूबसूरत अंदाज़ में बयान किया।
28 रजब हुई मजलिस को मौलाना उरूजुल हसन मीसम ने इमाम हुसैन के मक़सदे ज़िंदगी और मदीने से रवानगी के असबाब और असरात और मसाएब का ज़िक्र किया। मजलिस के बाद शबीहे अमारी और गहवारा बरामद किया गया।