5 फ़रवरी 2025 - 02:51
बरकतों वाला महीना।

शाबान मेरा महीना है, जो इस महीने एक रोज़ा रखेगा, अल्लाह उसे जन्नत का हक़दार बना देगा।" एक और मौके पर आपने कहा: "शाबान को बाकी महीनों पर वही अहमियत हासिल है, जो मुझे सारे नबियों पर है

शाबान का महीना बहुत ही बरकतों और रहमतों से भरा हुआ है, और यह महीना पैगंबर मुहम्मद स.अ से मनसूब है। नबी स.अ इस महीने के सभी दिन रोज़ा रखते थे और इसे रमज़ान के रोज़ों से जोड़ते थे। आपका कहना था: "शाबान मेरा महीना है, जो इस महीने एक रोज़ा रखेगा, अल्लाह उसे जन्नत का हक़दार बना देगा।" एक और मौके पर आपने कहा: "शाबान को बाकी महीनों पर वही अहमियत हासिल है, जो मुझे सारे नबियों पर है।"

इमाम सादिक़ अ. से रिवायत है कि जब शाबान का महीना आता, तो इमाम जैनुल आबेदीन अ. अपने साथियों को इकट्ठा करते और कहते: "क्या तुम जानते हो यह कौन सा महीना है? यह शाबान का महीना है, और पैग़म्बर कहते थे कि शाबान मेरा महीना है, तो इस पाक महीने में अपने नबी की मुहब्बत को दिल में बसाओ और अपने रब की नज़दीकी हासिल करने के लिए रोज़ा रखो।"

शेख़ तूसी ने सफ़वान जमाल से एक रिवायत बयान की है, जिसमें इमाम सादिक़ अ. ने कहा: "जो लोग तुम्हारे आसपास हैं, उन्हें शाबान के रोज़े रखने की तरगीब दो।" जब इमाम से उनकी फज़ीलत के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा: "हां, जब भी हजरत मुहम्मद स. शाबान का चाँद देखते, तो वह मदीना में एलान करने के लिए हुक्म देते थे: 'खबरदार हो जाओ! यह शाबान मेरा महीना है। अल्लाह उस शख्स पर रहमत नाज़िल करे, जो मेरे महीने में मेरी मदद करे, यानी रोज़ा रखे।'"

मुहद्दिस नूरी ने अपनी किताब 'कलमा-ए-तैय्यबा' में इमाम अली अ. से शाबान के महीने की फ़ज़ीलत के बारे में एक रिवायत बयान की है, जिसमें इमाम अली अ. कहते हैं: "अल्लाह ने इस महीने का नाम 'शाबान' रखा है, क्योंकि इसमें नेकियों की बारिश होती है और बरकतों के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। और अपनी नेमतों को इस तरह से तुम पर जाहिर करता है कि तुम कम मेहनत से ही अनमोल और क़ीमती नेमतें हासिल कर सकते हो, तो इन नेमतों को हासिल करने की कोशिश करो।"

शाबान की बरकतों और नेमतों की बहुत सी तरीक़े हैं: नमाज़, रोज़ा, ज़कात, अम्र बिल म़अरूफ, नहीं अनिल मुन्कर, वालिदैन, रिश्तेदारों, पड़ोसियों के साथ अच्छा सुलूक, लोगों के बीच सुलह सफ़ाई और फकीरों और मिस्कीनों को दान देना आदि।

शबे नीम-ए-शाबान भी एक बहुत ही मुबारक रात है। इमाम बाकिर अ. से इस रात की फ़ज़ीलत के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा: "यह रात शब-ए-क़दर के बाद सबसे बेहतरीन रात है। इस रात में अल्लाह अपने बंदों पर अपने फ़ज़ल की बारिश करता है और उनकी ग़लतियों को माफ़ कर देता है। शबे नीमा-ए-शाबान वह रात है जिसे खुदा ने हमारे लिए तय किया है, और यह शबे क़द्र के बदले में, जो पैगंबर से मख़सूस है, हमें दी गई।"