27 अप्रैल 2024 - 09:47
अल्लाह तौबा क़ुबूल करेगा अगर........

दीने इस्लाम में दूसरों के सामने अपने गुनाह का इक़रार करने की मनाही है। यह जो कुछ धर्मो में है कि इबादतगाहों में जाएं, धर्मगुरू के पास, पादरी के पास बैठें और गुनाहों का इक़रार करें, यह इस्लाम में नहीं है और इस तरह की चीज़ मना है।

याद रखिए कि इंसान इसी तरह ज़बान से कहता रहे कि अस्तग़फ़िरुल्लाह, अस्तग़फ़िरुल्लाह, अस्तग़फ़िरुल्लाह लेकिन उसका ज़ेहन और उसका ध्यान इधर उधर रहे तो इसका कोई फ़ायदा नहीं है। यह तौबा नहीं है। तौबा, एक दुआ है, दिल से तलब करना है। इंसान को हक़ीक़त में ख़ुदा से मांगना चाहिए, अल्लाह से माफ़ी और मग़फ़िरत तलब करना चाहिए कि मैंने यह गुनाह किया है, ऐ मेरे परवरदिगार! मुझ पर रहम कर, मेरे इस गुनाह को माफ़ कर दे।

 हर गुनाह पर इस तरह इस्तेग़फ़ार करने का नतीजा यक़ीनी मग़फ़ेरत और माफ़ी है। अल्लाह ने माफ़ी और मग़फ़िरत के दरवाज़े को खोला है। अलबत्ता दीने इस्लाम में दूसरों के सामने अपने गुनाह का इक़रार करने की मनाही है। यह जो कुछ धर्मो में है कि इबादतगाहों में जाएं, धर्मगुरू के पास, पादरी के पास बैठें और गुनाहों का इक़रार करें, यह इस्लाम में नहीं है और इस तरह की चीज़ मना है।

अपने गुनाहों से दूसरों को अवगत कराना, अपने अंदरूनी राज़ों और अपने गुनाहों को दूसरों के सामने बयान करना मना है। इसका कोई फ़ायदा भी नहीं है। यह जो इन ख़्याली और रास्ते से भटक चुके धर्मों में ऐसा कहा जाता है कि पादरी, गुनाहों को बख़्श देता है, नहीं! इस्लाम में गुनाहों को माफ़ करने वाला सिर्फ़ ख़ुदा है। यहाँ तक कि पैग़म्बर भी गुनाहों को माफ़ नहीं कर सकते।

इमाम ख़ामेनेई

14 सितम्बर 2007