जन्नतुल बक़ीअ के डिमोलिशन की याद में क़ुम के इमाम खुमैनी मदरसे के शहीद आरिफ़ हुसैनी हॉल में "तहरीर पोस्ट" की ओर से एक कॉन्फ्रेंस रखी गई, जिसमें कई स्पीकर्स ने सऊदी हुकूमत के जुल्म के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई और जल्द से जल्द जन्नतुल बक़ीअ को दोबारा बनाने की मांग की।
10 अप्रैल 2025 को क़ुम में इमाम खुमैनी मदरसे के शहीद आरिफ़ हुसैनी हॉल में ये प्रोग्राम "तहरीर पोस्ट", "अंजुमन आले यासीन" और "मरकज़ अफ़कार-ए-इस्लामी" जैसे ग्रुप्स की तरफ से कराया गया। इस कॉन्फ्रेंस में अलग-अलग स्पीकर्स ने सऊदी हुकूमत के ज़ुल्मों के खिलाफ बोलते हुए जन्नतुल बक़ीअ के दोबारा निर्माण की मांग की और बीते 102 सालों में गुज़रे हालात का ज़िक्र किया। जनाब नदीम सिरसिवी और जनाब अली मेहदी जैसे शायरों ने बक़ीअ और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) के बारे में अपने अशआर पेश किए। इस इवेंट का संचालन हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सय्यद मुज़फ्फर मदनी ने किया।
प्रोग्राम की शुरुआत जनाब आशिक़ हुसैन मीर ने क़ुरआन की तिलावत से की। इसके बाद इस्लामी इंक़लाब के लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा शेख़ साफी गुलपायगानी (रह) के बक़ीअ से जुड़े बयानों पर आधारित एक वीडियो क्लिप दिखाई गई।
कॉन्फ्रेंस के पहले स्पीकर "तहरीक-ए-तामीर-ए-बक़ीअ" (बक़ीअ के दोबारा निर्माण की तहरीक) के लीडर हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सय्यद महबूब मेहदी आबिदी थे। उन्होंने अमेरिका से वीडियो मैसेज भेज कर सबका शुक्रिया अदा किया और कहा: पिछली सदी से हम अहलेबैत (अ) के दुश्मनों के सामने जो ज़िम्मेदारी थी, उसे या तो भुला दिया गया है या मदीना की मिट्टी में दफ़न कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि ये भी एक बड़ा ज़ुल्म है कि इस दिन को उतनी अहमियत नहीं दी जाती जितनी मिलनी चाहिए।
उन्होंने कहा: बक़ीअ कोई मामूली ज़मीन नहीं, बल्कि इंसाफ और इंसानियत की एक पहचान है, जो बीते वक्त की गवाही देती है। बक़ीअ की आवाज़ सिर्फ एक मज़हबी आवाज़ नहीं, बल्कि इंसानियत और नैतिक ज़िम्मेदारी है, जो हर फ़िरके और ग्रुप से ऊपर है। ये कब्रें जो आज भी टूटी हुई हैं, ज़ुल्म के खिलाफ बोलती हैं और हर जागरूक दिल को झकझोरती हैं। चूंकि यह नाइंसाफ़ी हमारे वक्त में हुई है, हम सब इसकी ज़िम्मेदारी उठाते हैं और हमें कल इसका जवाब अल्लाह को देना होगा।
मदरसा-ए-तारीख़ के डायरेक्टर हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉ. हुसैन अब्दुल मोहम्मदी ने कहा: दुश्मन की कोशिश है कि जन्नतुल बक़ीअ की तबाही को लोगों की यादों से मिटा दिया जाए। इसलिए मोमिनों को चाहिए कि वे इस सिलसिले में प्रोग्राम, कॉन्फ्रेंस, विरोध और दूसरे सोशल मूवमेंट्स जारी रखें ताकि दुनिया को अहलेबैत (अ) पर हुए ज़ुल्म से वाक़िफ़ कराया जा सके और बक़ीअ में दफ़्न इमामों की शख्सियत और उनके कारनामे सबके सामने आएं।
उन्होंने बताया: इब्ने तैमिया से पहले, सुन्नी उलमा मासूम इमामों (अ) का बहुत आदर करते थे और इस पर कई किताबें भी लिखी गईं। लेकिन इब्ने तैमिया और उसके बाद अब्दुल वह्हाब ने मुसलमानों के बीच फूट डाली और एक नया मज़हब शुरू किया जिसने अहलेबैत (अ) की तौहीन की। बाद में इस सोच को सऊदी हुकूमत ने आगे बढ़ाया।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉ. सय्यद हन्नान रिज़वी, मज़मा-ए-उलमा व खुतबा हैदराबाद (दकन, इंडिया) के प्रेसिडेंट ने कहा: ज़ुल्म हमेशा सच्चाई का चोला पहनकर अपने गलत मकसद पूरे करता है। आज ग़ज़्ज़ा, यमन, लेबनान और बक़ीअ को ही देख लें, जहां इस्लाम का असली रूप बदलने और मुसलमानों को गुमराह करने की कोशिशें हो रही हैं।
अपने बयान में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहसिन तेहरानी, जामेअतुल मुस्तफ़ा (पाकिस्तान) के नुमाइंदे ने कहा: पवित्र क़ुरआन में एक आयत है: "मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं और उनके साथ वाले लोग काफ़िरों पर सख़्त और आपस में रहमदिल हैं। इस आयत में ‘साथी’ का मतलब वो लोग हैं जो हर हाल में पैग़ंबर (स) के साथ रहे। लेकिन आज कुछ लोग, जो खुद को मुसलमान कहते हैं, इसी आदर को खत्म कर रहे हैं और इस्लाम की गलत तस्वीर पेश कर रहे हैं।
अगर ये लोग इस सोच को आगे बढ़ाते हैं, तो यक़ीनन ये अल्लाह और उसके रसूल (स) को क़बूल नहीं। ऐसे लोग, खासकर सऊदी हुकूमत, न सिर्फ इस्लाम बल्कि मुसलमानों और उनकी विरासत के भी दुश्मन हैं, क्योंकि ये क़िबला की हिफाज़त के बजाय यहूदियों की मदद कर रहे हैं।
कॉन्फ्रेंस के आखिरी स्पीकर, पाकिस्तान के इस्लामी स्कॉलर हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद तकी महदवी ने कहा: क़ुरआन में आया है: "जो अल्लाह का ज़िक्र ज़्यादा करता है, वही सच्चे परहेज़गार हैं।" इंसान के हर अंग की पाकीज़गी मायने रखती है, लेकिन सबसे ऊँची पाकीज़गी दिल और इरादे की होती है। जैसे कि क़ुरआन में सफा और मरवा को अल्लाह की निशानी कहा गया है, वैसे ही जो चीज़ें अल्लाह की तरफ़ से मुक़द्दस ठहराई गई हैं, उनका सम्मान बहुत अहम है। अब सोचिए, उन पवित्र हस्तियों का कितना सम्मान होना चाहिए जिनके लिए अल्लाह ने ये पूरी कायनात बनाई।
कॉन्फ्रेंस का समापन जन्नतुल बक़ीअ की तामीर की दुआओं के साथ हुआ। आखिर में तमाम लोगों ने पोस्टर उठाकर बक़ीअ के दोबारा निर्माण की मांग को ज़ोरदार तरीके से उठाया।
गौरतलब है कि ये प्रोग्राम तहरीर पोस्ट की जानिब से ऑर्गनाइज़ किया गया था जिसमें भारत के कुछ स्टूडेंट ऑर्गनाइज़ेशन ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। साथ देने वाले संगठनों में "अंजुमन आले यासीन" और "इस्लामिक थॉट सेंटर" का नाम भी ख़ास तौर पर लिया गया।
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