अहलेसुन्नत की किताबों में पैग़म्बरे इस्लाम स.अ की इमाम हुसैन अ.स. से मुहब्बत
अहले सुन्नत की बहुत सी किताबों में इमाम हुसैन (अ.स.) का ज़िक्र बड़ी इज़्ज़त और अहमियत के साथ किया गया है। पैग़ंबर मुहम्मद (स.अ) ने इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) से गहरा लगाव रखा और कई हदीसों में उनकी फज़ीलत बयान की। इसके अलावा, उन्होंने पहले ही बता दिया था कि इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत कर्बला में होगी। आइए इसे तफ्सील से देखते हैं:
1. पैग़ंबर (स.अ.व.) की इमाम हुसैन (अ.स.) से मोहब्बत
बहुत से अहले सुन्नत उलमा (स्कॉलर्स) ने बयान किया है कि पैग़ंबर (स.अ) इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) से बेइंतहा मोहब्बत करते थे।
अबू हुरैरा से रिवायत है कि पैग़ंबर (स.अ.व.) ने फरमाया:"ऐ अल्लाह! मैं हुसैन से मोहब्बत करता हूँ, तू भी उससे मोहब्बत कर।"
(मुस्तद्रक अस्सहीहैन, जि. 3, स. 177) इसी तरह, अहमद बिन हंबल की "मुस्नद" में दर्ज है कि पैग़ंबर (स.अ.) इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) को अपने सीने से लगाते और फरमाते:
"ऐ अल्लाह! मैं इन दोनों से मोहब्बत करता हूँ, तू भी इनसे मोहब्बत कर।"
(मुस्नद अहमद बिन हंबल, जि. 5, स. 369)
2. इमाम हुसैन (अ.स.) - जन्नत के नौजवानों के सरदार
अहले सुन्नत की कई किताबों में बयान हुआ है कि इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) को जन्नत के तमाम नौजवानों का सरदार बताया गया है।
पैग़ंबर (स.अ.व.) ने फ़रमाया:"हसन और हुसैन जन्नत के नौजवानों के सरदार हैं।"
(मक़तल अल-हुसैन, इहक़ाक़ अल-हक़, जि. 10, स. 708) हाफ़िज़ अबू नईम इस्फ़हानी ने भी अपनी किताब "हिलयतुल-अवलिया" में इसी हदीस को बयान किया है।
(हिलयत अल-अवलिया, जि. 4, स. 139)
3. इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत की पेशीनगोई
पैग़ंबर (स.अ.व.) पहले ही बता चुके थे कि उनके नवासे हुसैन (अ.स.) की शहादत कर्बला में होगी।
आइशा से रिवायत है कि एक दिन इमाम हुसैन (अ.स.) पैग़ंबर (स.अ.) के पास आए, उस वक्त पैग़ंबर (स.अ) पर वह़्यी (अल्लाह का पैग़ाम) नाज़िल हो रहा था। हुसैन (अ.स.) पैग़ंबर (स.अ) की गोद में चढ़ गए।उस वक्त जिब्रईल (अ.स.) ने पूछा:
"या रसूल अल्लाह! क्या आप हुसैन से मोहब्बत करते हैं?"
पैग़ंबर (स.अ.व.) ने जवाब दिया: "हाँ, ये मेरा बेटा है।"
जिब्रईल (अ.स.) ने कहा: "आपकी उम्मत आपके बाद इन्हें शहीद कर देगी।"
फिर उन्होंने एक सफेद मिट्टी पेश की और फरमाया:
"ये मिट्टी उस जगह की है जहाँ हुसैन (अ.स.) को शहीद किया
जाएगा। इस जगह का नाम 'तफ़' (कर्बला)
है।"
जब पैग़ंबर (स.अ.व.) ये बात सुनकर रोए, तो उन्होंने अपने सहाबा को बुलाया और फरमाया:
"जिब्रईल ने मुझे बताया कि मेरी उम्मत मेरे बाद हुसैन (अ.स.)
को कर्बला में शहीद कर देगी।"
(मजन अल-ज़वाइद, जि. 9,
स. 187)
4. इमाम हुसैन (अ.स.) की कुर्बानी का मक़सद
पैग़ंबर (स.अ.व.) ने सिर्फ इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत की खबर नहीं दी, बल्कि उनकी कुर्बानी का मक़सद भी बताया।
हदीस में आता है:"हुसैन मुझसे है और मैं हुसैन से हूँ। जो हुसैन से मोहब्बत करेगा, अल्लाह उससे मोहब्बत करेगा।"
(सुनन तिर्मिज़ी, जि. 5, हदीस 3768)
इसका मतलब ये है कि इमाम हुसैन (अ.स.) की कुर्बानी इस्लाम को बचाने और हक़ को जिंदा रखने के लिए थी।
नतीजा
अहले सुन्नत की किताबों में इमाम हुसैन
(अ.स.) का ज़िक्र बड़ी मोहब्बत और एहतराम से किया गया है।
पैग़ंबर (स.अ.व.) ने इमाम हसन (अ.स.) और
इमाम हुसैन (अ.स.) को जन्नत के नौजवानों का सरदार कहा।
पैग़ंबर (स.अ.व.) ने पहले से इमाम हुसैन
(अ.स.) की शहादत की खबर दे दी थी।
उनकी कुर्बानी का मक़सद सिर्फ एक जंग नहीं,
बल्कि हक़ और इंसाफ़ की हिफ़ाज़त करना था।
इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत हमें सिखाती है कि कभी भी ज़ुल्म और नाइंसाफी के सामने झुकना नहीं चाहिए, बल्कि हक़ और इंसाफ़ के लिए डट कर खड़ा रहना चाहिए।
