उनको यह भलिभांति पता था कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजन, अच्छाइयों के मार्गदर्शक हैं और सबके सब भलाइयों का स्रोत हैं। इन लोगों का यह विश्वास था कि उनकी संतानें, इस्लामी जगत के लिए रहमत हैं जो विश्व के कोने-कोने में फैली हुई हैं। वे अपनी अनुकंपाओं से मानवता को तरावत दे रहे हैं। मुसलमानों से पै़गम्बरे इस्लाम (स) से यह सुन रखा था कि उनके पवित्र परिजनों से प्रेम करना सम्मान और कल्याण का कारण है। यही कारण था कि क़ुमवासी बड़ी उत्सुक्ता से नए मेहमान की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्हें दूर से एक छोटा सा क़ाफ़ेला आता दिखाई दिया जिसने लोगों के भीतर उत्साह भर दिया। उनको लगा कि प्रतीक्षा की घड़ियां अब समाप्त होने जा रही हैंं। पिछले कई घण्टों से बच्चे, बूढ़े, जवान, महिला और पुरूष सबके सब क़ुम नगर के प्रवेश द्वार पर मौजूद अपने माननीय अतिथि की प्रतीक्षा में खड़े थे। लोग आपस में बातें कर रहे थे। हरकोई कुछ न कुछ कह रहा था।
किसी ने कहा कि क्या वास्तव में वे क़ुम आएंगी? इसपर जवाब मिला तुमको दिखाई नहीं दे रहा है कि दूर से एक क़ाफ़िला हमारी ओर बढ़ रहा है? कोई कह रहा था कि वे शायद मर्व जा रही हैं। उनका इरादा अपने भाई से मुलाक़ात करना है। किसी ने कहा कि मैंने सुना है कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है। इसी बीच क़ुम के एक गणमान्य व्यक्ति "मूसा बिन ख़ज़रज" ने कहा कि वे वही महान महिला हैं जिनकी सिफ़ारिश में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने की है। काश वे इसी नगर में हमेशा रहतीं ताकि उनकी बरकत से हमारे नगर को भी सम्मान मिलता और यह नगर, पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों से लाभान्वित होता।
हज़रत मासूमा का कारवां पल-पल क़ुम के निकट होता जा रहा था। जब कारवां बहुत निकट आ गया तो लोगों के दिलों की धड़कनें बढ़ने लगीं। लोग एक-दूसरे से सवाल करने लगे। एसे में मूसा बिन ख़ज़रज के दिल में उथल-पुथल मची हुई थी। इसी बीच हज़रत मासूमा जिस ऊंट पर सवार थीं वह नगर के प्रवेष द्वार पर पहुंचा। पूरे वातावरण में खुशी की लहर दौड़ गई और लोग ऊंची आवाज़ों में सलवात पढ़ने लगे। मूसा बिन ख़ज़रज बहुत तेज़ी से आगे बढ़े और उन्होंने ऊंट की लगाम अपने हाथों में लेली। उन्होंने खुशी से भरे स्वर में कहा कि नगर में आपका स्वागत है। बाद में वे हज़रत मासूमा के ऊंट को अपने घर की ओर ले गए। मूसा बिन ख़ज़रज को यह सोचकर बहुत खुशी हो रही थी कि मासूमा उस नगर में आई हैं जो शियों के लिए सुरक्षित स्थल रहा है। रात का अंधेरा छा चुका था। अंधेरी रात में चारों ओर चमकते सितारे एसे लग रहे थे जैसे स्वागत के लिए दीप जलाए गए होंं।
खेद बात यह थी कि जो मेहमान क़ुम आया था उसकी तबीयत ख़राब थी। उनको बुख़ार के साथ ही खांसी की भी शिकायत थी। हज़रत मासूमा अपनी बीमारी से परेशान थी। मूसा बिन ख़ज़रज की पत्नी, मासूमा क़ुम की हर प्रकार से सेवा कर रही थीं साथ ही उन्होंने अपनी बेटियों को भी उनकी सेवा में लगा रखा था। जब उनका कारवां, सावे पहुंचा तो मासूमा को बुख़ार शुरू हुआ। उन्होंने पूछा था कि यहां से क़ुम की दूरी कितनी है? जवाब मिला दस फ़रसख़। मासूमा ने कहा कि फिर मुझको क़ुम पहुंचा दो। हालांकि अब वे क़ुम पहुंच चुकी थीं। उनके सीने में दर्द हो रहा था। बीमारी की हालत में उन्हें अपने दादा इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का एक कथन याद आया जिसमें उन्होंने कहा था कि क़ुमवाले हमसे हैं और हम उनसे। क़ुम नगर हमारा और शियों का शहर है। क़ुम, पवित्र नगर है। पवित्र नगर क़ुम में 17 दिन व्यतीत करने के बाद 10 रबीउस्सानी 201 हिजरी क़मरी को उनका यहीं पर देहांत हो गया। क़ुम वासी इस घटना से बहुत दुखी थे। उन्होंने आंसू बहाते हुए मासूमा क़ुम को ठीक उसी स्थान पर दफ़्न किया जहां पर इस समय उनका पवित्र रौज़ा बना हुआ है।
क़ुम नगर में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की सुपुत्री और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की बहन के स्वर्गवास और उनको यहां पर दफ़्न करने के बाद इस नगर को विशिष्टताएं मिलने लगीं। हज़रत मासूमा का महान अस्तित्व, क़ुम में उनके चाहते वालों के आगमन का केन्द्र बनता चला गया। उन्ही के कारण क़ुम को विशेष आध्यात्मिक महत्व प्राप्त हुआ और उसे पवित्र नगर के नाम से जाना जाने लगा। बाद में क़ुम नगर इस्लामी ज्ञान का केन्द्र बनता गया।
इतिहास में हमें एसी महिलाएं मिलेंगी जो अपनी आध्यात्मिक विशेषताओं के कारण मश्हूर रही हैं। उनमें से कुछ को ईश्वर ने उनके काल के लिए आदर्श भी बनाया। हज़रत मासूमा क़ुम भी उन्हीं महान महिलाओं में से एक हैं। वे एक कुशल वक्ता और दूरदर्शी महिला थीं। वे हदीसों को बहुत ही सुन्दर ढंग से पेश करती थीं। मासूमा क़ुम का लालन-पालन और प्रशिक्षण एसे वातावरण में हुआ था जहां पर सब ही ज्ञानी थे। चारों ओर ज्ञान का बोलबाला था। उन्होंने बहुत से लोगों को ज्ञान दिया। अपने काल की महिलाओं को उन्होंने इस्लामी शिक्षाओं से अवगत करवाया। हज़रत मासूमा से संबन्धित कुछ एसे चमत्कार भी बताए जाते हैं जिनसे पता चलता है कि वे बहुत ही महान थी जिनपर ईश्वर की विशेष कृपा थी। हज़रत मासूमा क़ुम को कई नामों से पुकारा जाता है जैसे मरज़िया, ताहेरा, सदीक़ा और हमीदा आदि।
हज़रत मासूमा अपने बड़े भाई इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से बहुत प्रेम करती थीं। इन भाई-बहनों के बीच इतना अधिक प्रेम था कि जिसे सब ही जानते थे। अपने भाई से भेंट करने के उद्देश्य से हज़रत मासूमा पवित्र नगर मदीना से ख़ुरासान के लिए निकली थीं। अब यह संयोग है कि बीच रास्ते में ही उनका स्वर्गवास हो गया। इस संदर्भ में सूरे निसा में ईश्वर कहता है कि जब भी कोई ईश्वर और पैग़म्बरे ख़ुदा के मार्ग में अपने घर से निकलता है और रास्ते में उसे मौत आ जाती है तो उसका सवाब या पुण्य ईश्वर के ऊपर है। हज़रत मासूमा क़ुम की एक विशेषता यह थी कि उन्होंने अपने जीवन में तीन इमामों को देखा था। वे इस नतीजे पर पहुंची थीं कि अपने काल के इमामों या ईश्वरीय मार्गदर्शकों का अनुसरण करके ही उच्च स्थान तक पहुंचा जा सकता है।
ज्ञान की दृष्टि से हज़रत मासूमा को विशेष स्थान प्राप्त रहा है। उनके ज्ञान के बारे में एक घटना यहां पर पेश कर रहे हैं। एक बार कुछ लोग पवित्र नगर मदीना में आए। वे लोग इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से कुछ प्रश्न पूछना चाहते थे। उस समय इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम कहीं यात्रा पर गए हुए थे। उन लोगों ने अपने प्रश्न, इमाम के घर भिजवा दिये। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के मदीना आने से पहले ही हज़रत मासूमा ने प्रश्नों के उत्तर लिखकर भिजवा दिये। प्रश्नों का उत्तर लेने के बाद वे लोग वापस चले गए। मदीने के बाहर उनकी भेंट इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से हुई। जब लोगों ने इमाम को पूरी बात बताई तो उन्होंने उनसे लिखित उत्तर लेकर देखे। इनको पढ़ने के बाद उन्होंने उनकी पुष्टि की और हज़रत मासूमा की बुद्धिमानी की प्रशंसा की। हालांकि यह घटना हज़रत मासूमा के बचपन की थी जिससे उनके ज्ञान का अंदाज़ा होता है।