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source : parstoday
बुधवार

4 दिसंबर 2019

4:49:34 pm
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इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर विशेष कार्यक्रम

आठ रबीउस्सानी 232 हिजरी क़मरी की मनोहर व मनोरम सुबह थी कि इमामत के सूरज ने एक बार फिर पवित्र नगर मदीना को प्रकाशित कर दिया।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के जन्म से इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का घर इमामत की सुगंध से महक उठा। फरिश्ते बधाई देने के लिए ज़मीन पर आ गये।

                      

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का नाम हसन और उप नाम अबू मोहम्मद था। आपके पिता का नाम इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम था और उनकी प्रसिद्ध उपाधियां हादी, नक़ी, ज़की, रफीक़ और सामित थीं। यही उपाधियां इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की भी थीं। क्योंकि दोनों इराक के सामर्रा नगर में जीवन व्यतीत करने लिए बाध्य थे। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की विशेषताओं के बारे में आया है कि आपका चेहरा तेजस्वी और आकर्षक था और आपके चेहरे से आध्यात्मिक महानता झलकती थी इस प्रकार से कि जो भी आपको देखता था वह आकर्षित हो जाता था और आपकी प्रशंसा करने पर बाध्य हो जाता था। अब्बासी सरकार इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की दुश्मन थी उसके बावजूद सरकार का एक मंत्री इमाम की विशेषताओं और सदगुणों को स्वीकार करते हुए इस प्रकार कहता है” मैंने सामर्रा में हसन बिन अली की तरह किसी को नहीं देखा। प्रतिष्ठा, पवित्रता, महानता व बड़प्पन में लोगों में किसी को भी उनके जैसा नहीं देखा। वह जवान हैं इसके बावजूद बनी हाशिम अपने बड़ों पर उन्हें प्राथमिकता देता है। उन्हें इस प्रकार महान स्थान प्राप्त है कि दोस्त दुश्मन सब उनकी प्रशंसा करते हैं। इसी प्रकार 10वीं और 11वीं हिजरी शताब्दी में शाफेई सम्प्रदाय का एक विद्वान अबूल अब्बास बाकसीर इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की महानता के बारे में लिखता है” इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम महान और बहुत ऊंची हस्ती थे।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने 22 साल की उम्र में ईश्वरीय दायित्व इमामत का पद संभाला और लोगों का मार्गदर्शन सत्य और इंसाफ की ओर किया। 6 वर्षों तक इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की इमामत रही। इस अवधि में इमाम को बहुत अधिक कठिनाइयों का सामना रहा। क्योंकि अब्बासी शासकों ने इमाम के सामने बहुत अधिक रुकावटें और समस्याएं उत्पन्न कर दी थीं। इस प्रकार से कि कार्यक्रम के अनुसार इमाम को हर हफ्ते बनी अब्बासी शासकों की सरकार के केन्द्र में एक बार उपस्थित होना पड़ता था। इसी वजह से इमाम और उनके प्रेमियों व श्रद्धालुओं के मध्य संपर्क बहुत कठिन हो गया था। इसी कारण इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने भी अपने से पहले वाले इमामों की भांति दूरस्थ क्षेत्रों में अपने प्रतिनिधियों को नियुक्त किया था और पत्राचार के माध्यम शीयों से संपर्क करते थे। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने विभिन्न क्षेत्रों में शीयों की सुरक्षा के लिए संपर्क का एक मज़बूत नेटवर्क बना रखा था ताकि शीया इमाम से और आपस में एक दूसरे से संपर्क कर सकें और इस मार्ग से इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से उन सबका मार्गदर्शन करते थे।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के काल में दो गुटों को इस्लाम को समाप्त करने का काम सौंपा गया था। इनमें से एक गुट सरकारी था जो केवल नाम का मुसलमान था और वह सत्तालोलुप और अपने व्यक्तिगत हितों की चेष्टा में था। दूसरा गुट उन लोगों का गुट था जो इमाम के बारे में सीमा से अधिक बढ़ कर काम लेता था। दूसरे शब्दों में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के बारे में इस गुट की जो धार्मिक आस्था थी वह सीमा से बहुत अधिक थी। इस बात में पैग़म्बरे इस्लाम के दूसरे परिजन भी शामिल हैं। यानी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से पहले वाले इमामों के काल में भी एसे लोग थे जिनकी धार्मिक आस्थाएं इमामों के बारे में सीमा से बहुत अधिक थीं। इस प्रकार के लोग देखने में शीया लगते थे पर वास्तव में शीयत के दुश्मन थे और वे शीया धर्म के विश्वासों व आस्थाओं को नुकसान पहुंचा रहे थे। इस प्रकार के गुट से मुकाबले के लिए इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का एक तरीक़ा यह था कि वह वास्तविकताओं को बयान करते थे। इमाम के एक प्रतिनिधि ने इमाम के पास एक पत्र लिखा और उस समय के एक प्रसिद्ध गोलात यानी अतिवादी की धार्मिक आस्थाओं को लिखा” हे मेरे स्वामी और मालिक आप पर न्यौछावर हो जाऊं। अली बिन हसके का मानना है कि आप उसके मौला और वही पुराने ईश्वर हैं और वह स्वयं को पैग़म्बर समझता है और कहता है कि ईश्वर की ओर से उसे यह दायित्व सौंपा गया है कि वह लोगों को आपकी ओर आमंत्रित करे। इमाम ने पत्र पढ़ने के बाद उसके जवाब में लिखा कि इब्ने हस्का ने झूठ कहा है। मैं उसे अपने दोस्तों व अनुयाइयों में नहीं समझता। ईश्वर की सौगंध हज़रत मोहम्मद और दूसरे पैग़म्बरों को ईश्वर की उपासना, नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज और विलायत के अलावा किसी और किसी और धर्म के साथ नहीं भेजा है। हज़रत मोहम्मद ने केवल एक ईश्वर की उपासना के लिए आमंत्रित किया है और हम उनके उत्तराधिकारी भी ईश्वर के बंदे हैं और किसी को भी उसका समतुल्य नहीं मानते हैं। ईश्वर के आदेश के पालन की स्थिति में हम उसकी दया और अवज्ञा की स्थिति में प्रकोप के पात्र बनेंगे। मैं उस आदमी से विरक्त व बेज़ार हूं जिसकी ज़बान से यह बातें निकली हैं। मैं ईश्वर की शरण चाहता हूं और उस पर ईश्वर की धिक्कार हो। तुम भी इस प्रकार के लोगों से दूरी करो और उन्हें झुठलाओ।

पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों से श्रद्धा रखने वाले इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की जीवन दायक शिक्षाओं की छत्रछाया में दिन- प्रतिदिन एकजुट और शक्तिशाली हो रहे थे। जिन लोगों का गूढ़ विश्वास था कि बनी उमय्या की भांति बनी अब्बास की भी सरकार अवैध है उनका मानना था कि सरकार अहले बैत का अधिकार है। इस दौरान इमाम उन बहुत सारी धार्मिक शिक्षाओं को ज़िन्दा करने में सफल हो गये जो अत्याचारी शासकों की नीतियों के कारण भुला दी गयीं थीं। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम कहते हैं” मोमिन की 5 अलामतें हैं। पहली 51 रकत नमाज़ है। दूसरे ज़ियारते इरबईन है तीसरे दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना है और चौथे पेशानी को ज़मीन पर रखना और पांचवीं अलामत ऊंची आवाज़ में बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम कहना।

यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि रात और दिन मिलाकर केवल 17 रकत नमाज़ अनिवार्य है जबकि 34 रकत नमाज़ मुस्तहब है। यानी अगर इसे पढ़ा जाये तो सवाब है और अगर न पढ़ा जाये तो कोई पाप भी नहीं है। यह शीया मुसलमानों की एक पहचान है। इसी तरह इमाम ने पेशानी को ज़मीन पर रखने को शीयों की एक अलामत बताई है तो वजह यह है कि केवल शीया हैं जो ज़मीन पर सज्दा करते हैं। इसी प्रकार ग़ैर शीया या तो बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम कहते ही नहीं हैं या अगर कहते हैं तो धीरे से कहते हैं। इसी प्रकार इमाम ने शीयों की एक अलामत यह बताई है कि वे दाहिने हाथ में अंगूठी पहनते हैं और ज़ियारते अरबईन पढ़ते हैं। ज़ियारते अरबईन  पढ़ना मुस्तहब है उसकी एक वजह यह है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जो महान आंदोलन किया था वह इस्लाम और शीयों के बाकी रहने का कारण है अतः इमाम ने ज़ियारते अरबईन को अनिवार्य और ग़ैर अनिवार्य नमाज़ों की पंक्ति में करार दिया है। यानी जिस तरह से नमाज़ धर्म का स्तंभ है उसी तरह ज़ियारते अरबईन और कर्बला की घटना भी विलायत का स्तंभ है।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने जीवन भर इस्लाम की शिक्षाओं को समाज में प्रचार ­-प्रसार का प्रयास किया। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की एक उपाधि फक़ीह अर्थात धर्मशास्त्री है। जैसाकि आप जानते हैं कि शीया मुसलमानों के धर्मशास्त्र के संकलन व उसे लिखने में सबसे अधिक भूमिका इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की है। उसके बाद इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के प्रयासों ने उसे परिपूर्णता तक पहुंचाया। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने अधिकतर उन विषयों के बारे में चर्चा की है जो उनके समय में समाज में चुनौती थे। इसी प्रकार इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने उन कुछ किताबों पर अपनी पुष्टि की मुहर लगा दी जो उनके समय में या उनसे पहले धर्मशास्त्र के बारे में लिखी गयीं थीं और इन किताबों के लेखकों का इमाम ने आभार प्रकट किया है। वास्तव में इमाम ने अपने इस कार्य से शुद्ध इस्लामी धर्मशास्त्र को दिशा प्रदान की है ताकि 12वें और आखिरी इमाम के ग़ायब यानी नज़रों से ओझल होने के काल में लोग उन विद्वानों और धर्मशास्त्रियों का अनुसरण करें जिनके अनुसरण के लिए इमाम ने कहा है। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम एक स्थान पर फरमाते हैं" जो धर्मशास्त्री अपने नफ्सों को सुरक्षित रखें, अपने धर्म की रक्षा करें, अपनी ग़लत इच्छाओं का विरोध करें और अपने मौला के आदेश का पालन करें तो लोगों को चाहिये कि उस धर्मशास्त्री का अनुसरण करें।

दोस्तो एक बार फिर इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के जन्म दिवस की पावन बेला पर आप सबकी सेवा में हार्दिक बधाई पेश करते हैं और आपका ध्यान उनकी वसीयत के एक भाग की ओर दिलाना चाहते हैं। इमाम शीयों को संबोधित करते हुए इस प्रकार फरमाते हैं" आपको ईश्वर से डरने, धर्म में सदाचारिता, ईश्वर के मार्ग में प्रयास करने, सच बोलने और अमानत को साहिबे अमानत को वापस करने की सिफारिश करता हूं। इमाम ने यह बात की स्पष्ट कर दी है कि जिस व्यक्ति ने अमानत रखी है चाहे वह भला हो या बुरा उसकी अमानत वापस की जानी चाहिये। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने इसी तरह अपनी वसीयत में सज्दे को लंबा करने और पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करने की सिफारिश की है और कहा है कि पैग़म्बरे इस्लाम को इसलिए भेजा गया था और जब धर्म में तुममें कोई सदाचारी हो और अपनी बातों में सच्चा हो, सही अमानदार हो और लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करे और यह कहा जाये कि यह शीया है तो इससे मुझे खुशी होगी। तो ईश्वर से डरो और हमारी शोभा का कारण बनो न कि हमारे लिए कलंक का टीका बनो। हमेशा ईश्वर को याद करो और मौत को न भूलो। हमेशा कुरआन की तिलावत करो और पैग़म्बरे इस्लाम पर दुरूद व सलाम भेजो कि पैग़म्बर पर सलवात भेजने के 10 सवाब हैं। मेरी वसीयत की रक्षा करो तुम्हें ईश्वर के हवाले करता हूं और तुम्हें सलाम करता हूं।