AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
गुरुवार

14 नवंबर 2019

11:47:15 am
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एकता सप्ताह के उपलक्ष्य में विशेष कार्यक्रम

पश्चिमी संचार माध्यमों में इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ दुष्प्रचार करना एक आम बात है।

इस्लाम और मुसलमानों की छवि बिगाड़ने के लिए पश्चिमी संचार माध्यमों का एक हथकंडा इस्लामोफोबिया है। एसे हालात में इस्लामी राष्ट्र का दायित्व है कि वह इस्लाम धर्म के समस्त संप्रदायों के मध्य संयुक्त बिन्दुओं को आधार बनाकर आपसी एकता को मज़बूत करे और शत्रुओं के षडयंत्रों को विफल बनाने के लिए प्रयास करे।  

वास्तव में ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने 12 से 17 रबीउल अव्वल के समय को जो एकता सप्ताह का नाम दिया है वह मुसलमानों की एकता और उन्हें एकजुट करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अहले सुन्नत का मानना है कि पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म 12 रबीउल अव्वल को हुआ था जबकि शीया मुसलमानों का मानना है कि पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म 17 रबीउल अव्वल को हुआ था और ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने इस एक हफ्ते के समय को एकता सप्ताह के रूप में मनाये जाने की घोषणा की थी। क्योंकि उनका मानना था कि मुसलमानों के मध्य एकता में ही उनकी शक्ति निहित है और मुसलमानों के मध्य एकता से इस्लामी जगत की बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान किया जा सकता है। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों का अस्तित्व मानवता की मुक्ति का सबसे बड़ा माध्यम है और इन महान हस्तियों ने जो मूल्यवान शिक्षाएं दी हैं उसका आधार शांति, प्रेम, न्याय और नैतिकता है और आज इंसान को हर समय से अधिक उनकी आवश्यकता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम समस्त मानवता के लिए महान ईश्वर की कृपा हैं।

महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन को समस्त इंसानों की मुक्ति व कल्याण की किताब करार दिया है। महान ईश्वर सूरे आले इमरान की 19वीं में कहता है" बेशक ईश्वर के निकट इस्लाम धर्म है।" यानी इस्लाम वह धर्म है जिसे ईश्वर ने पसंद किया है। इसी तरह महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन की विभिन्न आयतों में जहां इस्लाम को दया और कृपा बताया है वहीं इस्लाम धर्म की शिक्षाओं को मानवता की मुक्ति का माध्यम बताया है। साथ ही महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को मानवता का मुक्तिदाता और पथप्रदर्शक बताया है। इस प्रकार का पैग़म्बर समस्त आसमानी धर्मों का आइना है। इसी प्रकार महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को न केवल मुसलमानों बल्कि समस्त विश्ववासियों के लिए आदर्श बताया है। इस आधार पर समस्त इंसानों विशेषकर उनके अनुसरण का दावा करने वालों को चाहिये कि वे पैग़म्बरे इस्लाम का अनुपालन करें क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम, ईश्वरीय व इस्लामी शिक्षाओं के सर्वोत्तम आदर्श हैं। इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम के अनुसरण करने वालों को पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं का प्रचार- प्रसार करना चाहिये।

मानव इतिहास का अध्ययन इस वास्तविकता का परिचायक है कि हज़रत आदम से लेकर हज़रत ख़ातम यानी पैग़म्बरे इस्लाम तक और इसी प्रकार आज तक इस्लाम धर्म को मिटाने के लिए षडयंत्र जारी हैं और इस संबंध में इस्लाम के दुश्मनों के षडयंत्र प्रतिदिन जटिल से जटिल होते जा रहे हैं।

आज इस्लामोफोबिया और शीयाफोबिया पश्चिमी संचारों के कार्यक्रमों में सर्वोपरि है ताकि वे इस्लाम और मुसलमानों की छवि को विश्ववासियों की नज़र में बिगाड़ कर पेश कर सकें। आतंकवादी गुटों को बना कर, इस्लामी देशों में हत्या और अपराधों में वृद्धि करा कर पश्चिमी देश एवं इन देशों से जुड़े संचार माध्यम इस्लामोफोबिया को हवा दे रहे हैं। पश्चिमी देशों के संचार माध्यमों के दुष्प्रचारों को देखकर भली-भांति समझा जा सकता है कि दुश्मन विश्व में इस्लाम और मुसलमानों को आघात पहुंचाने की चेष्टा में हैं। आतंकवादी और अतिवादी गुट स्वयं पश्चिमी देशों की उपज हैं और यही देश इस्लामोफोबिया को हवा दे रहे हैं ताकि ईश्वरीय धर्म इस्लाम को फैलने से रोक सकें। इन्हीं देशों ने आतंकवादी गुट दाइश को बनाया और उसको सैन्य प्रशिक्षण दिया। इस आतंकवादी गुट ने इस्लाम के नाम पर साम्राज्यवादियों के हितों की पूर्ति की दिशा में कदम उठाया और आज भी इस गुट को क्षेत्र के कुछ देशों व सरकारों के अलावा वर्चस्वादी पश्चिमी देशों ने अपना हथकंडा बना रखा है और हालिया कई वर्षों में इस आतंकवादी गुट ने किसी प्रकार के अपराध में संकोच से काम नहीं लिया है। पश्चिमी और क्षेत्र के कुछ देश इस्लामोफोबिया को हवा देकर इस्लामी देशों को कमज़ोर और उनका विभाजन करके उन पर अपना वर्चस्व जमाना चाहते हैं। आले सऊद जैसे कुछ देशों के नेता भी न केवल आतंकवादी गुटों का समर्थन नहीं कर रहे हैं बल्कि यमन और बहरैन जैसे देशों में सीधे रूप से युद्ध व हस्तक्षेप करके मुसलमानों की हत्या कर रहे हैं और इस्लाफोबिया उत्पन्न करने में अमेरिका और इस्राईल की हां में हां मिला रहे हैं। इस्लामोफोबियान के कारण पश्चिमी देशों में रहने वाले मुसलमानों विशेषकर मुसलमान महिलाओं को हिजाब करने सहित विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बहुत सी मुसलमान महिलाएं हिजाब करने के कारण घरों में रहने पर बाध्य हैं क्योंकि बाहर निकलने पर उन्हें विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हिजाब करने वाली बहुत सी मुसलमान महिलाओं को अपने काम और पढ़ाई से हाथ धोना पड़ता है। यह विषय परिवार में आर्थिक बोझ के अधिक होने और पारिवारिक मतभेदों में वृद्धि का कारण बनता है। इसी प्रकार इस्लामोफोबिया के कारण पश्चिमी और यूरोपीय देशों में रहने वाले कुछ मुसलमानों को पलायन करने पर बाध्य होना पड़ता है। इस्लाम से भयभीत लोग इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि पश्चिमी देशों में मुसलमान परिवारों की उपस्थिति इन देशों में रहने वाले लोगों के मध्य इस्लाम के फैलने का कारण बनेगी। दूसरे शब्दों में अगर पश्चिमी देशों में इस्लाम फैल जायेगा तो वर्चस्ववाद और अश्लीलता के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट खड़ी हो जायेगी।

इस्लामोफोबिया समस्त मुसलमानों के लिए एक कटु बात है परंतु मुसलमानों के मध्य एकता उत्पन्न करने और इस्लाम को विश्व वासियों को पहचनवाने का एक अवसर उत्पन्न हो गया है। एकता व एकजुटता वह चीज़ है जिससे फूट डालने वाले शत्रुओं के षडयंत्रों से मुकाबला किया जा सकता है। इस्लामी राष्ट्रों को चाहिये कि समय की संवेदनशीलता को स्थिति को दृष्टि में रखें और होशियारी के साथ धार्मिक समानताओं को आधार बनाकर एकता की दिशा में क़दम बढ़ायें। अगर मुसलमानों के मध्य एकता, एकजुटता और समरसता होगी तो तकफीरी विचारों और आतंकवादी गुटों को मज़बूत करने के लिए दुश्मनों को अवसर ही नहीं मिलेगा। इसी कारण महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे अनफाल की 64वीं आयत में कहता है” सब लोग ईश्वर और उसके पैग़म्बर के आदेशों का पालन करो और मतभेद व विवाद न करो कि अगर मतभेद व विवाद करोगे तो तुम कमज़ोर हो जाओगे और तुम्हारी हवा उखड़ जायेगी, और तुम सबको चाहिये कि एक दिल होकर धैर्य करो। बेशक ईश्वर धैर्य करने वालों के साथ है।“

वास्तव में विवाद अंदर से मुसलमानों को खोखला कर देता है और बाहर से उनकी प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है। इस आधार पर मुसलमानों को चाहिये कि एकता बनाये रखने और ईश्वर और उसके पैग़म्बर के आदेशों के पालन में धैर्य से काम लें और अगर कोई चीज़ उनकी इच्छा के अनुसार नहीं है तो धैर्य से काम लें ताकि महान ईश्वर अपने वादे के अनुसार उनकी मदद करे।

महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे अंबिया की आयत नंबर 92 में कहता है” बेशक तुम एक ही राष्ट्र व समुदाय हो और मैं तुम्हारा पालनहार हूं तो मेरी उपासना करो”

इस्लामी राष्ट्र व समुदाय की सबसे बड़ी विशेषता एकता है। पैग़म्बरे इस्लाम ने मुसलमानों के मध्य एकता व एकजुटता उत्पन्न करने के लिए उन्हें एक दूसरे का भाई बनाया। मक्का से मदीना पलायन करने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने जो महत्वपूर्ण कार्य किये उनमें से एक यह था कि मुहाजिर यानी जो मुसलमान मक्का से मदीना पलायन करके गये थे और अंसार को यानी जो मुसलमान पहले से मदीना में मौजूद थे एक दूसरे का भाई बनाया। इससे मुसलमान एक दूसरे के बहुत निकट हो गये। इस आधार पर मुसलमानों को चाहिये कि वे पैग़म्बरे इस्लाम की जीवनदायक शिक्षाओं पर अमल करके अपने बीच फूट व मतभेद के कारकों को खत्म करें और मुसलमानों के मध्य एकता को मज़बूत करके विश्ववासियों के सामने इस्लाम के न्याय व शांति प्रेमी चेहरे को पेश करें।

एकता सप्ताह समस्त मुसलमानों के मध्य समरसता व एकजुटता का प्रतीक है और मुसलमानों को चाहिये कि वे पवित्र कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं को आधार बनाकर एक दूसरे से निकट आयें और न्याय, प्रेम और कृपा व दया को व्यवहारिक बनाने के पैग़म्बरे इस्लाम के निमंत्रण की दिशा में कदम उठायें। दोस्तो कार्यक्रम का समय समाप्त होता है और एकता सप्ताह के शुभ अवसर पर आप सबकी सेवा में हार्दिक बधाई पेश करते हैं और आप सबके लिए शांति व सुरक्षा की कामना करते हैं और महान व सर्वसमर्थ ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमारे बीच से फूट व मतभेद के कारकों को समाप्त कर दे और हम सबको प्रेम के साथ घुल मिलकर रहने की कृपा करे।