पहली चीज़ तो यह है कि रूस और तुर्की के बीच होने वाले इस समझौते से सीरियाई राष्ट्रपति पूरी तरह सहमत नहीं हैं, विशेष रूप से समझौते के उस भाग पर उन्हें आपत्ति है जिसमें सीरिया की धरती में घुसकर तुर्क सैनिकों द्वारा सेफ़ ज़ोन की स्थापना पर मुहर लगाई गई है। सेफ़ ज़ोन की लंबाई 120 किलोमीटर और चौड़ाई 32 किलोमीटर होगी। इस इलाक़े से कुर्द लड़ाकों को बाहर निकलना होगा और तुर्की तथा रूस के सैनिक इस इलाक़े में संयुक्त रूप से गश्त करेंगे।
दूसरी चीज़ यह है कि राष्ट्रपति बश्शार असद इदलिब की लड़ाई के लिए तैयार हो रहे हैं जिसे उन्होंने सीरिया में जारी लड़ाई को समाप्त करने का बुनियादी मुक़ाबला कहा है। ललकारने वाले अंदाज़ में अंजाम पाने वाली इस यात्रा का कोई और अर्थ नहीं हो सकता।
तीसरी चीज़ यह है कि सीरिया और तुर्की के राजनैतिक अधिकारियों की मुलाक़ात करवाने की रूस की कोशिशें कामयाब नहीं हो सकीं। क्योंकि कई महीने से अदाना समझौते को बहाल करवाने के लिए रूस की ओर से जारी कोशिशों को अगर कामयाबी मिली होती तो राष्ट्रपति असद अपने तुर्क समकक्ष अर्दोग़ान पर इतना भीषण हमला न करते।
रूस और तुर्की के बीच होने वाले समझौते का जायज़ा लिया जाए तो सबसे बड़ा नुक़सान कुर्द फ़ोर्सेज़ को उठाना पड़ा हैं क्योंकि उत्तरी सीरिया में स्वाधीन प्रशासन स्थापित करने का उनका सपना समाप्त हो गया है, अमरीका ने हमेशा की तरह एक बार फिर उन्हें धोखा दिया और अपने सैनिक बाहर निकालकर उसने कुर्दों को संदेश दे दिया कि अब आपका जो भी अंजाम होना है उसका सामना आप ख़ुद कीजिए!
अब तक सबसे ज़्यादा फ़ायदे में रूसी राष्ट्रपति पुतीन रहे हैं जो सीरिया युद्ध के मामले में सबसे प्रभावशाली ताक़त बन गए हैं जबकि अमरीकी एजेंडा पूरी तरह फ़ेल हो गया हालांकि अमरीका ने राष्ट्रपति ट्रम्प के अनुसार 70 अरब डालर से अधिक रक़म ख़र्च की थी।
अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प अमरीका और तुर्की के बीच होने वाले जिस समझौते पर बहुत गदगद थे और जिसे अमरीका की बहुत बड़ी जीत बता रहे थे वह दो चार दिन से अधिक नहीं चल सका। सारी फ़सल तो राष्ट्रपति पुतीन एक ही बार में काट ले गए। ट्रम्प को बस एक ही कामयाबी मिली है कि वह इस इलाक़े से अमरीकी सैनिकों को बाहर निकाल ले गए। हमें यह नहीं लगता कि मुंह पर पड़ने वाले इस ज़ोरदार तमाचे पर राष्ट्रपति ट्रम्प खुश होंगे बल्कि हो सकता है कि वह दोबरा धमकियां देना शुरू कर दें।
सीरियाई पक्ष को कुछ सफलताएं मिली हैं। सबसे बड़ी सफलता यह है कि कुर्द फ़ोर्सेज़ दोबारा केन्द्र सरकार की गोद में वापस आ गई हैं और सीरियाई सेना उत्तरी इलाक़ों में तुर्की की सीमा तक पहुंच गई हैं वहां उसने अपने ठिकाने बना लिए हैं और बहुत से स्ट्रैटेजिक इलाक़ों का नियंत्रण संभाल लिया है, उपजाऊ ज़मीने वापस मिल गई हैं और दैरुज्ज़ूर शहर के आसपास तेल और गैस के कुछ कुंए भी सीरिया सरकार के हाथ में आ गए हैं लेकिन यह बात सीरिया के लिए गहरी चिंता का विषय है कि रूस की सहमति से तुर्क सेना सीरियाई धरती पर तैनात हो रही है वहां सेफ़ ज़ोन बना रही है। तुर्क सेना की यह तैनाती सीरिया की राष्ट्रीय संप्रभुता का उल्लंघन है।
अदाना समझौता जिस पर तुर्की और सीरिया ने 1998 में हस्ताक्षर किए थे और जिसे हालिया समझौते की बुनियाद कहा जा रहा है उसमें कहीं भी सीरियाई धरती पर तुर्क सेना की तैनाती की बात नहीं कही गई है उसमें बस इतना कहा गया है कि आतंकियों का पीछा करते हुए तुर्क सेना पांच किलोमीटर भीतर तक प्रवेश कर सकती है मगर सीरिया के भीतर स्थायी या अस्थायी रूप में तुर्क सैनिकों की तैनाती का कोई प्रावधान अदाना समझौते में नहीं था।
तुर्की और रूस के बीच होने वाले समझौते के बाद सीरिया के पटल पर कुछ चीज़ें अभी अस्पष्ट हैं जब तक इस समझौते का पूरा ब्योरा नहीं आ जा जाता उस समय तक इसका स्वागत करने के बजाए इंतेज़ार करना ज़्यादा उचित होगा।