AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
मंगलवार

15 अक्तूबर 2019

1:47:16 pm
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सीरिया का दिल जीतने की लगी होड़, इस देश के टुकड़े कर देने की कोशिश कर चुके तुर्की और अरबों का बिल्कुल नया अंदाज़, सीरिया के सारे

अब्दुल बारी अतवान का जायज़ाः बिल्कुल अचानक एक नया नज़ारा यह सामने आ रहा है कि ध्वस्त हो चुके अरब जगत के मलबे से सीरियाई सरकार एक क्षेत्रीय ताक़त के रूप में उभरी है।

आज उसकी ताक़त अतीत के हर दौर से ज़्यादा नज़र आती है। तुर्की जिसने हस्तक्षेप कर करके सीरिया को परेशान कर रखा था अब आंतरिक और विदेशी दोनों प्रकार के संकटों में डूब रहा है। अरब लीग जिसने सीरिया की सदस्यता निलंबित की थी अब इस कोशिश में है कि किसी तरह सीरिया वापस आ जाए। अरब लीग ने अपनी बैठक में बयान जारी करके उत्तरी सीरिया में तुर्की के सैनिक हमले की निंदा की और सीरिया की अखंडता का सम्मान किए जाने पर ज़ोर दिया। अलगाववादी कुर्द जिन्होंने सीरियाई सरकार के ख़िलाफ़ बग़ावत की थी और अमरीकियों की मदद पाकर ख़ुद को अमरीकी सेना समझने लगे थे और अपना अलग देश बनाने के सपने देख रहे थे पलक झपकते में अमरीकियों का समर्थन विलुप्त हो जाने के बाद किसी अनाथ और असहाय की तरह तुर्की के हमलों का निशाना बन रहे हैं।

अरब लीग ने सीरिया के उत्तरी इलाक़ों में तुर्की के हमले की जो निंदा की है उसका महत्व इस बिंदु में है कि अरब लीग ख़ुद चलकर सीरिया की दहलीज़ तक पहुंची है और उसने पुनः यह बात स्वीकार की है कि सीरियाई सरकार एक संप्रभु सरकार है जिसके बारे में कल तक अरब लीग अपशब्दों का प्रयोग कर रही थी। इस नए रुजहान की कोई तारीफ़ नहीं की जा सकती क्योंकि यह दोग़लेपन और संकट के समय रंग बदलने की कार्यवाही है।

अरब लीग के महासचिव अहमद अबुल ग़ैत ने यह कहकर हम सबको चौंका दिया कि “हमें चीज़ों को उन्हीं के नाम से पुकारना चाहिए तुर्की इस समय उत्तरी सीरिया में जो कुछ कर रहा है उसका एक ही नाम है युद्ध और हमला।“ जिन लोगों ने अबुल ग़ैत का यह बयान तैयार किया उन्होंने हक़ीक़त यह है कि सारी चीज़ों को उनके नाम से नहीं पुकारा। उनको यह भी तो कहना चाहिए था कि अरब देशों ने विशेष रूप से फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों ने सीरिया और वहां की सेना को गहरे घाव दिए, उन्होंने सीरिया की अर्थ व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया, उन्होंने दसियों हज़ार आतंकी सीरिया भेजे और सैकड़ों अरब डालर की रक़म सीरिया को तबाह करने पर ख़र्च की, उन्होंने दसियों लाख सीरियाई नागरिकों को विस्थापित किया और यह सब कुछ तुर्की के साथ मिलकर किया।

सीरिया और उसकी अखंडता पर घड़ियाली आंसू बहाने से पहले इन अरबों को एलान करना चाहिए कि वह तौबा कर रहे हैं। उन्हें सीरियाई सरकार और जनता से माफ़ी मांगनी चाहिए, उसके पुनरनिर्माण का ख़र्च उठाना चाहिए। अच्छे गुनहगार वह होते हैं जो तौबा कर लेते हैं। शायद सीरियाई राष्ट्र उनकी तौबा और माफ़ी को स्वीकार कर ले।

यह बात भी ध्यान योग्य थी कि सीरियाई सरकार ने अरब लीग के सम्मेलन पर कोई ध्यान ही नहीं दिया। किसी भी सीरियाई अधिकारी ने एक भी बयान एसा नहीं दिया जिससे लगे कि सीरिया को अरब लीग में वापसी में कोई दिलचस्पी है।

जब संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के अवसर पर सीरियाई प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के बीच अरब लीग के महासचिव अहमद अबुल ग़ैत अचानक जा धमके थे और बढ़ बढ़ कर हाथ मिला रहे थे तो सीरियाई प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने बहुत टालने वाले अंदाज़ में ही उनसे हाथ मिलाया था।

यह कोई ढंकी छिपी बात नहीं है कि तौबा करने वाले अरबों और संकट में फंसे तुर्की के बीच इस समय सीरिया का दिल जीतने की होड़ लगी हुई है। सीरिया को अच्छी तरह मालूम है कि इस स्थिति का कारण यह है कि उसने सात साल तक युद्ध के मैदान में ज़बरदस्त प्रतिरोध का प्रदर्शन किया और ईरान, इराक़, रूस और चीन के साथ उसका बहुत मज़बूत और कारगर गठबंधन बन चुका है और इसी चीज़ ने सारे समीकरणों को बदल दिया। यदि आज सीरिया मज़बूत स्थिति में न होता तो यह अरब सरकारें कभी भी सीरिया को अरब लीग में वापस लाने के लिए इतनी बेचैन न होतीं और न ही तुर्की की सरकार रूस की निगरानी में सीरिया से गुप्त वार्ता का दरवाज़ा खोलती।

सीरियाई सरकार की प्रतिक्रियाओं से ज़ाहिर है कि वह किसी जल्दबाज़ी में नहीं है और न किसी से इंतेक़ाम लेने की चिंता में है। इसी नीति ने उसे गंभीर संकटों से उबरने में मदद भी दी जबकि उसके विरोधी चाहे वह तुर्क हों, अरब हों या कुर्द सब रक्तरंजित हस्तक्षेप में लिप्त होने की भयानक क़ीमत अदा कर रहे हैं।