AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
मंगलवार

24 सितंबर 2019

12:21:42 pm
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शहादते इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम

दोस्तो 25 मोहर्रम को हुसैन बिन अली अर्थात इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम शहीद हुए थे जबकि एक अन्य रिवायत के मुताबिक 12 मोहर्रम को आप शहीद हुए थे।

हुसैन बिन की अली की सबसे मशहूर उपाधि ज़ैनुल आबेदीन  है। कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महाआंदोलन के समय इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम मौजूद थे परंतु वह बहुत बीमार थे और महान ईश्वर की इच्छा से कर्बला में शहीद नहीं हुए ताकि वह अपने पिता की शहादत के बाद इस्लाम धर्म को हर प्रकार की गुमराही और फेर- बदल से बचा सकें। आज के कार्यक्रम में हम इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के पावन जीवन के कुछ आयामों पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे। आशा है हमारा यह प्रयास भी आपको पसंद आयेगा।

हज़रत मोहम्मद की सेना पवित्र नगर मक्के से निकट हो रही थी। वर्षों से जिन लोगों ने पैग़म्बरे इस्लाम को कष्ट पहुंचाया था, यातना दी थी और उनके खिलाफ़ जंग की थी जब उन्हें हज़रत मोहम्मद की सेना के निकट आने की सूचना मिली तो वे भयभीत होकर एक दूसरे को देखने लगे। क़ुरैश क़बीले का एक बड़ा आदमी अबू सुफियान सबसे अधिक चिंतित था। वह यह सोच रहा था कि हज़रत मोहम्मद उसके साथ क्या करेंगे? परंतु लोग जो सोच रहे थे उसके विपरीत ईश्वरीय कृपा की वर्षा हो गयी और पूरा मक्का नगर सबके लिए सुरक्षित हो गया। हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने ऊंची आवाज़ में कहा जाओ, तुम सब आज़ाद हो। पैग़म्बरे इस्लाम के इस ऐतिहासिक वाक्य से यद्यपि बनी उमय्या के ख़ानदान को मौत और अपमान से मुक्ति मिल गयी किन्तु उसके दिल में द्वेष उत्पन्न हो गया। उसके दिल में बद्र और हुनैन नामक लड़ाइयों का द्वेष बैठा था। यह द्वेष मुसलमानों को देखते ही और भी भड़क  उठता था। पवित्र नगर मक्का की विजय के अवसर पर पैग़म्बरे इस्लाम ने जो यह कहा था कि जाओ तुम सब आज़ाद हो तो इससे बनी उमय्या के दिल में एक अन्य द्वेष बैठ गया।

बनी उमय्या हमेशा अवसर की खोज में रहता था कि किसी तरह पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से प्रतिशोध ले ताकि उसके अपने अंदर द्वेष की जो आग जल रही थी उसे ठंडी कर सके। अंततः यह अवसर यज़ीद को मिल गया। यज़ीद, बद्र जंग में मारे गये और मक्का विजय के अवसर पर आज़ाद किये गये लोगों का बेटा व कपूत था उसने प्रतिशोध की तलवार उठाई और वह यह चाहता था कि उसके परिवार को जितने अपमान का सामना करना पड़ा है उन सबका बदला ले ले। वह पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की हत्या करके अपने दिल को ठंडक पहुंचाना चाहता था।

 

यज़ीद ने जन्नत के सरदार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को शहीद करने और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों को बंदी बनाने का आदेश जारी कर दिया। 10 मोहर्रम को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साहियों को यज़ीद की राक्षसी सेना ने कर्बला में शहीद कर दिया। उनकी शहादत के बाद हुसैन बिन अली और उनके परिजनों को पहले कूफा और फिर शाम अर्थात वर्तमान सीरिया ले जाया गया। शाम उस समय यज़ीद की अत्याचारी सरकार की राजधानी था। पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की गर्दनों में रस्सियां बांधी गयी थीं और तेज़ चलने के लिए उन्हें कोड़े मारे जाते थे और आराम करने के लिए उन्हें खंडहर में रोका गया। यज़ीद इस बार बनी उमय्या को विजयी दिखाना चाहता था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को शहीद करने के बाद यज़ीद बंदी बनाये गये उनके परिजनों को स्वतंत्र करके द्वेष की उस आग को शांत कर सकता था जो उसके ख़ानदान को मक्का नगर की विजय के अवसर पर मिला था परंतु उसने एसा नहीं किया।

बंदी बनाये गये पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का कारवां जब शाम पहुंचा तो अत्याचारी यज़ीद जीरून नामक अपने महल में बैठा था। यह महल दमिश्क के एक दरवाज़े के पास था। जब कारवां पहुंचा तो उसी दौरान एक कौआ बोलने लगा। यज़ीद की नज़र जब कारवां पर पड़ी तो उसने बड़े घमंड और खुशी से यह शेर कहा वे कारवां दिखाई दे गये और सूरज जीरून के ऊपर चमक चुका है, कौआ बोल चुका है मैंने कहा कि तुम बोलो या न बोलो मैंने अपना बदला ले लिया है। मैंने उससे कहा जो होना था वह हो चुका है महत्वपूर्ण यह है कि मेरी दिली आरज़ू पूरी हो गयी और मैंने अपने परिवार का बदला ले लिया।

यज़ीद की खुशी का समय बहुत कम था वह जितना अधिक प्रयास करता था उसकी सत्ता उतनी ही कमज़ोर होती जा रही थी। पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों को उसने बंदी बना रखा था किन्तु बंदियों ने उसकी और उसकी सरकार की हक़ीक़त को और अधिक स्पष्ट कर दिया। आम तौर से यह होता है कि दुनिया में जहां कहीं भी हो और जिस समय हो बंदियों को बोलने का कम ही अवसर दिया जाता है। अगर कोई बंदी बोलना चाहता है तो उसे अनुमति लेनी पड़ती है परंतु शाम में बंदियों ने बनी उमय्या को बंदी बना लिया और अपने दुश्मन को घुटने टेकने पर बाध्य कर दिया। बंदियों को कर्बला से कूफा और कूफा से शाम ले जाया गया, रास्ते में उन्हें भांति- भांति की यातनाएं दी गयीं, वे बहुत कमजोर और दुःखी थे परंतु इन सबके बावजूद उन्होंने बहुत ही मज़बूत इरादों के साथ शाम में प्रवेश किया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के प्राणप्रिय पुत्र हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम और उनकी बहन हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने यज़ीद की समस्त चालों पर पानी फेर दिया और वास्तविकता को स्पष्ट कर दी।

यज़ीद और उस जैसी सोच रखने वाले विदित विजय से बहुत खुश थे परंतु हज़रत ज़नैब के खुत्बों ने यज़ीद के महल और उसके स्तंभों को हिला कर रख दिया। यज़ीद बड़े घमंड के साथ अपने महल में बैठा हुआ था हज़रत ज़ैनब ने उसे यब्नत्तोलक़ा अर्थात हे आज़ाद किये गये बंदी के बेटे से संबोधित किया और कहा हे यज़ीद क्या यह न्याय है कि तू अपनी महिलाओं और दासियों को पर्दे में बैठाये और पैग़म्बरे इस्लाम की बेटियों को बंदी बनाकर एक शहर से दूसरे शहर फिराये।

हज़रत ज़ैनब की इस बात ने मक्का की विजय के अवसर पर अबू सुफियान को मिलने वाले अपमान की याद दिला दी। यज़ीद और उसके दरबार में मौजूद लोगों का सिर शर्म से झुक गया। यज़ीद एक सभा आयोजित करके अपनी विदित विजय का जश्न मनाना चाहता था ताकि अतीत में उसके ख़ानदान को जिस अपमान का सामना करना पड़ा था उस पर पर्दा डाल सके परंतु हज़रत ज़ैनब के खुत्बों से उसे बहुत झटका लगा और चुप रहने के अलावा उसके पास कोई रास्ता ही नहीं था। यज़ीद के दरबार में मौजूद सभी लोगों ने हज़रत ज़ैनब की बात का मतलब समझ लिया था। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने कहा था कि हे यज़ीद तेरे बाप- दादा काफिर थे पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें आज़ाद कर दिया किन्तु तूने उनकी बेटियों से आज़ादी छीन ली है और यह तेरे और तेरे ख़ानदान वालों के लिए एक और कलंक का धब्बा है। हज़रत ज़ैनब के बाद इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की बारी आयी। उन्होंने जो ऐतिहासिक खुत्बा दिया उससे यज़ीद के दरबार में उथल- पुथल मच गयी। यज़ीद के सारे समीकरणों पर पानी फिर गया। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम मिम्बर पर गये और फरमाया हे लोगो 6 चीज़ें ईश्वर ने हमें दी हैं और दूसरों पर हमारी श्रेष्ठता के 7 कारण हैं। हमारे पास ज्ञान है, हमारे पास धैर्य है, हम दानी हैं, बहादुरी हमारे पास है, मोमिन दिल से हमसे प्रेम करते हैं, ईश्वर ने इस प्रकार चाहा है कि ईमानदार लोग हमसे प्रेम करें और यह वह चीज़ है जिसे हमारे दुश्मन नहीं रोक सकते। उसके बाद इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपना परिचय कराते हुए इस प्रकार फरमाया जो मुझे पहचानाता है वह पहचानता है और जो मुझे नहीं पहचानता उससे मैं अपना परिचय करवा रहा हूं। मैं मक्के और मिना का बेटा हूं। मैं ज़मज़म और सफा का बेटा हूं, मैं काबे की सबसे अच्छी परिक्रमा करने वाले और सई करने वाले का बेटा हूं। मैं बेहतरीन हज करने वाले और लब्बैक कहने वाले का बेटा हूं। मैं उसका बेटा हूं जिसे मेराज की रात को आसमान पर ले जाया गया। मैं उसका बेटा हूं जिसने फरिश्तों के साथ आसमान पर नमाज़ पढ़ी। मैं उसका बेटा हूं जिस पर ईश्वर ने अपना संदेश उतारा। मैं मुहम्मद मुस्तफा का बेटा हूं। मैं अली मुर्तज़ा का बेटा हूं। मैं उसका बेटा हूं जिसने पैग़म्बरे इस्लाम के सामने दो तलवारों और दो भालों से युद्ध किया दो पलायन किया दो बैअत की दो किबलों की ओर नमाज़ पढ़ी और बद्र और हुनैन में युद्ध किया पलक झपकने भर भी काफिर नहीं हुआ। मैं अमीरुल मोमिनीन का बेटा हूं, पैग़म्बरों के वारिसों का बेटा हूं काफिरों को कुचलने वाले का बेटा हूं मुसलमानों के सरदार का बेटा हूं मुजाहिदों के प्रकाश का बेटा हूं उपासकों के श्रंगार का बेटा हूं ईश्वर के भय से विलाप करने वालों के सरताज का बेटा हूं, धैर्य करने वालों का बेटा हूं यासिन का बेटा हूं। विश्व वासियों के लिए दूत का बेटा हूं मैं फ़ातेमा का बेटा हूं। मैं महिलाओं की सरदार का बेटा हूं मैं बतूल पाक का बेटा हूं मैं पैग़म्बर के दिल के टुकड़े का बेटा हूं।