AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
शनिवार

17 अगस्त 2019

1:24:32 pm
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अल्लामा शैख़ ज़कज़की कौन हैं, उनसे दुश्मनी की अस्ल वजह क्या है?

अगर शैख़ ज़कज़की को नाइजीरिया का इमाम ख़ुमैनी कहा जाये तो शायद ग़लत न होगा

सबसे पहले हम यह बताना चाहेंगे कि अल्लामा शैख़ ज़कज़की कौन हैं, हम उनका संक्षिप्त परिचय कराना चाहते हैं। अल्लामा शैख़ ज़कज़की का असली और पूरा नाम शैख़ इब्राहीम याक़ूब ज़कज़की है और वह नाइजीरिया के इस्लामी आंदोलन के नेता हैं।

अगस्त वर्ष 1953 में उनका जन्म नाइजीरिया के पश्चिमोत्तर में स्थित कादूना प्रांत के ज़ारिया शहर में हुआ था। वर्ष 1979 में उन्होंने अहमद बलु विश्वविद्यालय से इकोनामिक से बीए किया था और विश्वविदयालय से पहले दो वर्षों तक उन्होंने कादूना प्रांत के एक मदरसे में अरबी भाषा सीखी और ज़ारिया के धार्मिक शिक्षा केन्द्रों में विभिन्न धर्मगुरूओं से धार्मिक शिक्षा ग्रहण की।

शैख़ ज़कज़की विश्वविद्यालय में प्रवेश के आरंभ से ही राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय थे। विश्व विद्यालय में छात्र जीवन समाप्त होने में कोई विशेष समय बाकी नहीं बचा था कि ईरान में 11 फरवरी 1979 को इस्लामी क्रांति सफल हो गयी और इस क्रांति तथा स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी से प्रभावित होकर उन्होंने नाइजीरिया में इस्लामी आंदोलन की स्थापना कर दी।

शैख़ ज़कज़की कादूना के विश्वविद्यालय में जाने- माने छात्र थे वह यह चाहते थे कि नाइजीरिया के संविधान में संशोधन करके इस्लामी कानूनों का भी उसमें समावेश कर दिया जाये। शैख़ ज़कज़की जब विश्वविद्यालय में थे तो उनकी गतिविधियां सीमित थी परंतु विश्वविद्यालय की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनकी गतिविधियों का दायरा नाइजीरिया के दूसरे शहरों और गांवों तक फैल गया।

क़ानून व्यवस्था में विघ्न उत्पन्न करने के आरोप में शैख़ ज़कज़की को कई बार गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। यही नहीं शैख़ ज़कज़की को ओबासान्जू, शाजारी, बूहारी, बाबान्गीदा और अबाचा सरकारों में भी उन्हें जेल में बंद किया गया। कुल मिलाकर वह 9 वर्षों तक जेल में बंद रहे। यही नहीं सितंबर 2009 में अबाचा की सरकार ने उन्हें जेल में बंद करने के साथ- साथ इस्लामी सेन्टर और ज़ारिया में उनके आवास स्थल को ध्वस्त कर दिया।  

25 जुलाई 2014 को नाइजीरिया के ज़ारिया शहर में विश्व कुद्स दिवस के अवसर पर शैख़ इब्राहीम ज़कज़की के साथियों और उनके समर्थकों पर सुरक्षा बलों ने गोलियां चलाईं जिसमें दर्जनों लोग घायल व हताहत हुए। सुरक्षा बलों की गोलियों का निशाना बनने वालों में शैख़ ज़कज़की के तीन बेटे भी शामिल थे।

इसी प्रकार नाइजीरिया के सुरक्षा बलों ने 13 दिसंबर 2015 को “बक़ीयतुल्लाह” नामक इमामबारगाह और शैख़ ज़कज़की के आवास पर हमला किया जिसमें शैख़ ज़कज़की गंभीर रूप से घायल हो गये और नाइजीरिया के सैनिकों ने उन्हें और उनकी धर्म पत्नी को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया और अभी 5 दिन पहले तक वे जेल में बंद थे और वहां पर उनका स्वास्थ्य बहुत ख़राब हो गया था और उनके स्वास्थ्य को लेकर चिकित्सकों ने सलाह दी कि उनका तुरंत उपचार कराया जाना चाहिये परंतु नाइजीरिया की सरकार इस बात के लिए तैयार नहीं थीं किन्तु नाइजीरिया सहित कई देशों में शैख़ ज़कज़की के समर्थन में और उनके स्वास्थ्य को लेकर प्रदर्शन हुए जिसके परिणाम में इस देश की अदालत कुछ शर्तों के साथ उपचार के लिए शैख़ ज़कज़की को विदेश जाने पर सहमत हुई।

सवाल यह पैदा होता है कि क्या शैख़ ज़कज़की इंसान नहीं थे? न केवल यह कि उनका उपचार नहीं किया गया बल्कि उपचार कराने की अनुमति भी नहीं दी जा रही थी, शैख़ ज़कज़की के समर्थन में कितने देशों में और कितनी बार प्रदर्शन किये गये, एक बार भी मानवाधिकारों की राग अलापने वाले देशों, संगठनों और संस्थाओं के कानों में आवाज़ नहीं गयी। क्या सबके सब बहरे हो गये थे, सबको सांप सूंघ गया है। जब यूरोप में कोई हमला होता है और उसमें दो या कुछ आम आदमी मार दिये जाते हैं तो उसकी ख़बर संचार माध्यमों में सुनाई देती है परंतु जब कई देशों में शैख़ ज़कज़की के समर्थन में प्रदर्शन होते हैं और कई प्रदर्शनकारी मारे भी जाते हैं तो स्वयं को निष्पक्ष कहने वाले संचार माध्यम भी इसकी ख़बर नहीं देते।

शैख़ ज़कज़की का सबसे बड़ा दोष यह है कि वह नाइजीरिया के संविधान में संशोधन करके उसमें इस्लामी क़ानूनों का भी समावेश कराना चाहते थे, वे लोगों में जागरुकता व चेतना के ध्वजावाहक थे और हैं। अगर वह नाइजीरिया में अपने उद्देश्यों को व्यवहारिक बनाने में सफल हो जाते तो साम्राज्य के मार्ग की दीवार बन जाते।

महान ईश्वर पवित्र कुरआन में कहता है कि मोमिनों के सबसे बड़े दुश्मन यहूदी और अनेकेश्वरवादी हैं। सवाल यह पैदा होता है कि यहां तो कोई यहूदी और अनेकेश्वरवादी नहीं दिखाई पड़ रहा है? पर सच्चाई यह है कि शैख़ ज़कज़की और नाइजीरिया के सच्चे मुसलमानों की दुश्मन वे ताक़ते हैं जिन्हें सच्चे इस्लाम का फलना- फूलना बिल्कुल पसंद नहीं है। उनकी नज़रों में सच्चा इस्लाम और मुसलमान फूटी आंख नहीं भाते। इस पूरे मामले में अमेरिका, इस्राईल और सऊदी अरब की शैतानी भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।

यहां कोई यह सवाल कर सकता है कि सऊदी अरब तो मुसलमान देश है वह कैसे इस्लाम और मुसलमानों का दुश्मन हो सकता है? तो इसका जवाब यह है कि इस्लाम और मुसलमानों को जो नुकसान नाम नेहाद मुसलमानों ने पहुंचाया है वह शायद काफिरों ने नहीं पहुंचाया है। दाइश के क्रिया- कपापों को आप इसी परिप्रेक्ष्य में देख सकते हैं। आतंकवादी गुटों का लालन- पालन और भरण-पोषण कौन करता है? सऊदी अरब आतंकवादी गुटों का जन्मदाता और अन्नदाता दोनों है। अभी ईदुल अज़हा के मुबारक मौके पर पूरी दुनिया के मुसलमान खुशी मना रहे थे और महान ईश्वर की प्रसन्नता और सामिप्य प्राप्त करने के लिए कुर्बानियां कर रहे थे और सऊदी अरब निर्दोष यमनी जनता का जनसंहार करके अमेरिका जैसे शैतान की प्रसन्नता प्राप्त करने में व्यस्त था। सऊदी अरब वह मुसलमान देश है जिसे अमेरिका और इस्राईल अपना दत्तक पुत्र यानी गोद लिया हुआ बेटा समझते हैं तभी तो सऊदी अरब के उनके साथ बहुत अच्छे व घनिष्ठ संबंध हैं और स्वयं को डेमोक्रेसी का अगुवा कहने वाले देश सऊदी अरब के जघन्य अपराधों पर भी न केवल अर्थपूर्ण चुप्पी साधे हुए हैं बल्कि यमनी जनता के जनसंहार के लिए उसे हथियार भी दे रहे हैं। अगर यह कहा जाये कि सऊदी अरब वह काम कर रहा है जिसे अमेरिका और इस्राईल भी नहीं कर सकते तो ग़लत न होगा।

बहरहाल शैख़ ज़कज़की और नाइजीरिया के मुसलमानों के खिलाफ जो अत्याचार हो रहे हैं वे उन शैतानी शक्तियों की मिली- भगत, क्रिया-कलापों व दबावों के परिणाम हैं जो सच्चे इस्लाम के फलने- फूलने की दुश्मन और उसे भयभीत हैं और अगर शैख़ ज़कज़की को नाइजीरिया का इमाम ख़ुमैनी कहा जाये तो शायद ग़लत न होगा।