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source : parstoday
सोमवार

5 अगस्त 2019

2:22:03 pm
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हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के विवाह के पावन अवसर पर विशेष कार्यक्रम

हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के विवाह के पावन अवसर पर विशेष कार्यक्रम

जब भी क़ुरैश क़बीले का कोई व्यक्ति हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा से मंगनी करने जाता था तो वह अपने दिल की धड़कन पहले से अधिक बेहतर ढंग से सुनता था। एक बार क़ुरैश कबीले का एक व्यक्ति अब्दुर्रहमान बिन औफ़ हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा से मंगनी के लिए पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में गया। उसने कहा कि नीली आंखों वाले 100 ऊंटों और इन ऊंटों पर मिस्री सूती कपड़ों के बोझ को मैं हज़रत फ़ातेमा का महर करार देता हूं। साथ ही उसने कहा कि इसके अलावा 10 हज़ार दीनार भी महर के तौर पर दूंगा और हज़रत फातेमा का विवाह मुझसे कर दीजिये। यह आवाज़ क़ुरैश के धनी व्यापारियों में से अब्दुर्रहमान बिन औफ़ की थी। अभी उसकी आवाज़ ख़त्म भी नहीं हुई थी कि उसमान बिन अफ्फान की आवाज़ आयी और उसने भी कहा कि मैं भी इतना ही महर देने के लिए तैयार हूं और साथ ही मैं जल्दी मुसलमान हुआ हूं इसलिए मैं अब्दुर्रहमान बिन औफ़ पर वरियता रखता हूं। इस अवधि में हज़रत अली अलैहिस्सलाम स्वयं को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे थे कि अचानक उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के क्रोधित होने का एहसास हुआ। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया क्या तुम लोगों ने यह सोच रखा है कि मैं पैसे का भूखा हूं, या शायद तुम लोगों ने यह सोच रखा है कि विवाह व्यापार है! सुन लो और सब तक यह बात पहुंचा दो कि फ़ातेमा का विवाह किससे होगा इसका चयन ईश्वर करेगा।

हज़रत अली अलैहिस्लाम अपने भविष्य की सोच में थे कि अचानक उन्होंने अपने सिर पर पैग़म्बरे इस्लाम की शीतल छाया का आभास किया। पैग़म्बरे इस्लाम मुस्कुराये और बोले हे अली! विवाह के बारे में क्या सोच रहे हो? हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने सिर झुका रखा था परंतु पिता समान पैग़म्बरे इस्लाम की मुस्कान का उन्होंने आभास किया और शर्माते हुए धीरे से कहा ईश्वर का दूत बेहतर जानता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का दिल धड़क रहा था कि कहीं एसा न हो कि पैग़म्बरे इस्लाम मदीना की किसी दूसरी लड़की का प्रस्ताव दे दें। क्योंकि मदीना में लड़कियों की कमी नहीं थी और हज़रत अली अलैहिस्सलाम जिससे विवाह करना चाहते थे वह हज़रत फ़ातेमा के अलावा कोई और नहीं था।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम का बचपना पैग़म्बरे इस्लाम के घर में गुज़रा था दूसरे शब्दों में पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने घर में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की प्रशिक्षा की थी। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम से बहुत प्रेम करते थे और यही वह विषय था जिसने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के लिए कार्य को और कठिन बना दिया था। इसी प्रकार हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास धन नहीं था जिसकी वजह से पैग़म्बरे इस्लाम के पास नहीं जाना चाहते थे पंरतु उनके दिल में हज़रत फातेमा ज़हरा के प्रति जो प्रेम था वह उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के पास जाने के लिए प्रेरित करता था। अंततः हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में जाने का फैसला कर ही लिया। अच्छा वस्त्र पहना और पैग़म्बरे इस्लाम के घर की ओर रवाना हो गये।

जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के घर के दरवाज़े पर पहुंचे तो उन्होंने अपनी पत्नी उम्मे सल्मा से कहा दरवाज़े पर वह है जिसे ईश्वर और उसका दूत पसंद करता है। उम्मे सल्मा ने आश्चर्य से कहा कौन हो सकता है जिसकी प्रशंसा देखे बिना पैग़म्बरे इस्लाम कर रहे हैं। इस पर पैग़म्बरे इस्लाम ने मुस्करा कर कहा ईश्वर के वचन के प्रति सबसे अधिक वफ़ादार व प्रतिबद्ध व्यक्ति। वह मेरा दोस्त, मेरा भाई और लोगों में सबसे अधिक मेरे निकट है। उम्मे सल्मा उस व्यक्ति को देखने के लिए आतुर थीं वह तेज़ी से दरवाज़े की ओर गयीं। वह स्वयं कहती हैं पैग़म्बरे इस्लाम के इस प्रिय को देखने का शौक मुझे इतना अधिक हुआ कि जब मैं दरवाज़ा     खोलने के लिए खड़ी हुई तो निकट था कि मेरे पैर फिसल जायें और ज़मीन पर गिर पड़ूं। जब मैंने दरवाज़ा खोला तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम को देखा।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम लज्जा से सिर झुकाये हुए थे। लज्जा से बोल नहीं पा रहे थे इस दौरान महान ईश्वर के दूत पैग़म्बरे इस्लाम की आवाज़ आयी कि हे अली! ऐसा लगता है कि तुम्हें कोई काम है? तुम अपनी बात कहो और जो कुछ तुम्हारे दिल में है उसे बयान करो कि तुम्हारी मांग मुझे स्वीकार्य है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने शर्माते हुए विन्रम भाव में कहा। मेरे मां- बाप आप  पर न्योछावर हो जायें। मैं आपके घर में पला- बढ़ा। आपने अपने भोजन, व्यवहार और अपने स्वभाव से मुझे बड़ा किया। आपने मेरे साथ जो भलाई की वह मेरे मां- बाप से अधिक और बेहतर थी। आपने मेरा प्रशिक्षण और मार्गदर्शन किया। मेरे पास दुनिया की कोई चीज़ नहीं है। लोक- परलोक की मेरी पूंजी आप हैं। हे ईश्वर के दूत! अब मैं बड़ा हो गया हूं। मैं चाहता हूं कि मेरा एक घर हो और एक जीवन साथी हो ताकि उसके साथ प्रेम और शांति का आभास कर सकूं। आज आपकी बेटी फातेमा का हाथ मांगने आया हूं। मैं आपकी बेटी से योग्य जीवन साथी नहीं जानता। यही मेरी पूरी बात है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बातों को सुनकर पैग़म्बरे इस्लाम बहुत खुश हुए और उनका पावन चेहरा पुष्प की भांति खिल उठा। मानो वह यही बात सुनने की प्रतीक्षा में थे।   

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बात सुनने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम आराम से हज़रत फ़ातेमा के पास गये और शांति व प्रेमपूर्ण शैली में इस प्रकार कहा। मेरी बेटी आज एक भिन्न विषय के बारे में तुमसे बात करना चाहता हूं। आज मैं अपने उत्तराधिकारी, भाई अली के बारे में बात करना चाहता हूं और इस्लाम में उनकी विशेषता व श्रेष्ठता क्या है यह बात तुमसे पोशीदा नहीं है। मैंने ईश्वर से प्रार्थना की है कि तुम्हारा विवाह अपने सबसे प्रिय बंदे से कर दे। अब अली तुम्हारा हाथ मांगने के लिए आये हैं इस बारे में तुम्हारी क्या राये है? लज्जा से हज़रत फ़ातेमा ज़हरा कुछ नहीं बोल पा रही थीं। वह चुप थीं। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी बेटी का अर्थपूर्ण मौन देखा और समझ गये कि हज़रत फातेमा राज़ी हैं और उन्होंने अल्लाहो अकबर कहा। क्योंकि अर्थपूर्ण मौन एक प्रकार का स्वीकार है। आसमानवासियों में भी खुशी की लहर दौड़ गयी। राहिल नाम के ईश्वरीय फरिश्ते ने हज़रत अली और हज़रत फातेमा का निकाह पढ़ा। सब चुप थे। उसने पैग़म्बरे इस्लाम पर दुरूद व सलाम के साथ खुत्बये निकाह को समाप्त कर दिया। उस समय महान ईश्वर के आदेश से आवाज़ लगाने वाले ने इस प्रकार आवाज़ लगायी। हे मेरे स्वर्ग के फरिश्तो! अली बिन अबि तालिब, मोहम्मद के प्रिय और उनकी बेटी फातेमा को बधाई दो। क्योंकि मैंने उन्हें भलाई व बरकत प्रदान की है। निकाह पढ़ने वाले ने नम्रता भरे स्वर में कहाः पालनहार इन दोनों पर तेरी भलाई व बरकत उससे अधिक नहीं है जो हमने इनके लिए स्वर्ग में देखी है? ईश्वर ने कहा कि हे राहिल! इन दोनों पर मेरी बरकतों में से यह भी है कि यह यह मुझसे प्रेम करेंगे और मैं इन लोगों को ज़मीन में अपना प्रतिनिधि बनाऊंगा। मेरी इज़्ज़त की क़सम कि इन दोनों को वह संतान प्रदान करूंगा जो ज़मीन पर ज्ञान और तत्वदर्शिता के ख़ज़ाने होंगे।

खुशी का यह वह समय था जब मस्जिद में बैठने की जगह नहीं थी। मस्जिद विवाह के मेहमानों से छलक रही थी। नमाज़ के बाद हज़रत अली और हज़रत फातेमा का निकाह पढ़ा जाने वाला था। पैग़म्बरे इस्लाम ने भाषण देना आरंभ किया। सभी ख़ामोश हो गये। खुत्बा पढ़ने से पहले कहा कि यह गर्व केवल फातेमा को प्राप्त है कि उनका निकाह आसमान में फरिश्तों के सामने पढ़ा गया है और उनका निकाह मधुर ध्वनि वाले फरिश्ते ने सबसे पहले आसमान में पढ़ा है। हे लोगो! हे कुरैश के लोगो! हे वे लोग जिन्होंने फातेमा की मंगनी की है और मेरा नकारात्मक जवाब सुना है! जान लो कि मैंने जो नकारात्मक दिया है वह मैंने नहीं दिया है बल्कि यह ईश्वर था जिसने उसे तुम्हें नहीं दिया है और उसका विवाह अली से कर दिया। जिब्राइल मुझ पर नाज़िल हुए थे और उन्होंने कहा था कि हे मुहम्मद! महान ईश्वर कहता हैः अगर अली को फातेमा के लिए नहीं पैदा किये होता तो अबूल बशर आदम से लेकर प्रलय तक फातेमा का कोई समतुल्य न होता। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की हार्दिक आकांक्षा पूरी हो गयी थी। वह महान ईश्वर का आभार व्यक्त करने के लिए सज्दे में गिर पड़े और पवित्र कुरआन की सूरे नम्ल की 19वीं आयत की तिलावत की कि हे पालनहार! मुझे उस नेअमत का आभार व्यक्त करने का सामर्थ्य प्रदान कर जो तूने मुझे दिया है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम और जनाब फातेमा का निकाह हुए कुछ महीने हुए थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम प्रतिदिन और कभी कभी तो एक दिन में कई बार विभिन्न बहानों से पैग़म्बरे इस्लाम के घर जाते थे। जब भी वह जाते थे पैग़म्बरे इस्लाम मुस्कुरा कर कहते थे कि ईश्वर ने पाक और सुन्दर पत्नी तुम्हें दिया है एक दूसरे की क़ीमत समझो। हज़रत अली अलैहिस्सलाम जनाब फातेमा को अपने घर ले जाना चाहते थे परंतु मौन धारण कर लेते थे ताकि पैग़म्बरे इस्लाम स्वयं उनके दिल की बात कह दें। यहां तक कि एक दिन उम्मे सल्मा और कुछ दूसरी महिलाएं पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में पहुंचीं और उन्होंने कहा अगर ख़दीजा ज़िन्दा होतीं तो फातेमा के विवाह में जल्दी करतीं। पैग़म्बरे इस्लाम ने जैसे ही हज़रत ख़दीजा का नाम सुना उनके नेत्र सजल हो गये और फरमाया तुम लोगों ने उसका नाम लिया जो कठिन से कठिन परिस्थिति में मेरे साथ थी। उसके बाद थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया कि अली से कहो कि वह मेरे पास आयें। हज़रत अली अलैहिस्सलाम हमेशा की भांति विन्रम भाव में पैग़म्गरे इस्लाम की सेवा में पहुंचे। पैग़म्बरे इस्लाम ने उनसे फरमाया अगर अपनी पत्नी चाहते हो तो एक शर्त है! हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि हे ईश्वर के दूत! वह शर्त क्या है? आपने फरमाया अपनी पत्नी के लिए घर का प्रबंध करो और स्वयं को जश्न के लिए तैयार करो। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास घर ख़रीदने के लिए पैसा नहीं था तो उन्होंने हारिस बिन नोमान का छोटा घर किराये पर ले लिया।

सूरज अभी डूबा नहीं था। दूल्हा और दूल्हन को उम्मे सल्मा के घर लाया गया। पैग़म्बरे इस्लाम ने उम्मे सल्मा से कहा कि फातेमा को मेरे पास लायें। उम्मे सल्मा ने हज़रत फातेमा का हाथ पकड़ा और उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में ले गयीं। हज़रत फातेमा धीरे- धीरे कदम उठा रही थीं और अधिक लज्जा के कारण उनके पैर लड़खड़ा रहे थे। पिता ने उनको दुआ दी कि ईश्वर लोक- परीलोक में तुम्हारा पैर लड़खड़ाने से बचाये। उसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम का हाथ पकड़ा और हज़रत फातेमा के चेहरे से चादर हटायी। उसके बाद दोनों का हाथ एक दूसरे के हाथ में दिया और स्वयं दुआ के लिए हाथ उठाया। पालनहार! यह मेरी बेटी है यह लोगों में सबसे अधिक मेरे निकट है। पालनहार! यह भी मेरा भाई है, अली लोगों में सबसे अधिक मेरे निकट है। पालनहार उनके प्रेम को और सुदृढ़ व मज़बूत कर दे।

मेहमान जब चले गये तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी पत्नी हज़रत फातेमा को चिंतित देखा तो उन्होंने बहुत प्रेम से उनसे चिंता का कारण पूछा। हज़रत फातेमा ने बहुत शांति से जवाब दिया बाप के घर से अपने घर आने से जीवन की समाप्ति और परलोक के घर की याद आ गयी। प्रियतम अली! आइये संयुक्त जीवन के आरंभ में नमाज़ पढ़ते हैं और ईश्वर की उपासना करते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम मुस्कुराये। मानो हज़रत फातेमा ने उनके दिल की बात कह दी है। इस प्रकार हज़रत अली और हज़रत फातेमा का संयुक्त जीवन आरंभ हुआ मानो दो महासागर एक दूसरे से मिल गये हैं और उन दोनों के पावन अस्तित्व से इमाम हसन और इमाम हुसैन जैसे रत्न अस्तित्व में आये और पैग़म्बरे इस्लाम का प्रसिद्ध कथन है कि हसन और हुसैन स्वर्ग के जवानों के सरदार हैं।