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source : parstoday
शुक्रवार

2 अगस्त 2019

12:56:12 pm
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इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत

ज़ीक़ादा महीने की अंतिम तारीख़ को इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम शहीद हुए।

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की एक प्रसिद्ध उपाधि जवाद है। वह सन् 220 हिजरी कमरी में इस नश्वर संसार से परलोक सिधार गये और इस्लामी जगत इमाम की शहादत के शोक में डूब गया। आज इराक के काज़मैन शहर का वातावरण कुछ भिन्न है। इमाम के पवित्र रौज़े पर काला ध्वज लहरा रहा है। बूढ़े जवान, महिला और पुरुष सब इमाम के रौज़े की ओर रवाना हैं ताकि वहां वे इमाम का शोक मना सकें और दिल खोलकर अज़ादारी कर सकें।

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम शिया मुसलमानों के नवें इमाम हैं। वह 195 हिजरी क़मरी में पवित्र नगर मदीना में पैदा हुए थे। हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के पिता थे और उनकी माता का नाम सबीका था। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के जन्म के बाद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने उन्हें अपनी गोद में लिया और उसी वक्त उनके शहीद कर दिये जाने की हृदयविदारक ख़बर दी। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया” यह मेरा बेटा अत्याचार और अन्यायपूर्ण ढंग से शहीद किया जायेगा और आसमान में रहने वाले उस पर रोयेंगे और ईश्वर उसके दुश्मन से क्रोधित होगा और उसका हत्यारा और उस पर अत्याचार करने वाला उसकी हत्या के बाद अच्छा जीवन नहीं बिता सकेगा और शीघ्र ही ईश्वरीय प्रकोप उसे अपनी चपेट में ले लेगा।“

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम शिया मुसलमानों के नवें ईश्वरीय मार्गदर्शक हैं और वह पहले ईश्वरीय पथप्रदर्शक हैं जो बहुत कम उम्र में इमाम हो गये और लोगों के मार्गदर्शन की ईश्वरीय ज़िम्मेदारी आप पर आ गयी। यानी जब इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के पिता इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम शहीद किये गये तो उस समय इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की उम्र मात्र आठ साल थी।

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने इस दुनिया के 25 वर्ष की ज़िन्दगी गुज़ारी और इस छोटी सी अवधि में लोगों की सोच को ऊपर उठाने और उनके मार्गदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिस समय इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को इमामत का दायित्व सौंपा गया उस समय आप बहुत छोटे थे परंतु इस छोटी सी उम्र में भी पवित्र कुरआन और दूसरी आसमानी किताबों से पूर्णरूप से अवगत थे और जिस तरह लोगों के प्रश्नों का उत्तर देते थे उससे लोग हतप्रभ रह जाते थे। जिस समय इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम इमामत के ईश्वरीय पद पर आसीन हुए उस समय उनकी उम्र मात्र आठ वर्ष थी और यही उनकी कमआयु कुछ लोगों के संदेह का कारण बनी। इस संदेह व भ्रांति का कारण यह था कि कुछ लोग दुनिया की चीज़ों की समीक्षा में मापदंड केवल विदित व भौतिक चीज़ों को बनाते हैं और उन्हीं के बारे में वे सोचते हैं जबकि महान, सर्वसमर्थ और तत्वदर्शी ईश्वर यह शक्ति व क्षमता रखता है कि किसी कारणवश उम्र कम होने के बावजूद कुछ लोगों को बुद्धि, ज्ञान, तर्क और सदगुणों में शिखर पर पहुंचा देता है। जैसाकि पवित्र कुरआन में आया है कि इसका संबंध अतीत के राष्ट्रों से भी है। हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम बचपने में ही नबी बना दिये गये थे और हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने उस वक्त बात की थी जब वह पालने में थे। यह नमूने इस बात के सूचक हैं कि यह कार्य महान ईश्वर के चमत्कार से हुए थे और महान ईश्वर हर कार्य में सक्षम है।

इमाम ने जो दूसरों से बातें की हैं, शास्त्रार्थ किये हैं और लोगों के सवालों का जवाब दिये हैं सबके सब इमाम के ज्ञान के प्रमाण हैं। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम भविष्य के बारे में जो ख़बर देते थे, जो शास्त्रार्थ करते थे और धर्मशास्त्र की अनसुल्झी गुत्थी को जब सुल्झा देते थे तो विद्वान, इस्लामी शोधकर्ता यहां तक कि शीया धर्म के विरोधी भी हतप्रभ रह जाते थे और उनके ज्ञान का लोहा मानते थे। दूसरे शब्दों में इमाम के ज्ञान, श्रेष्ठता और अध्यात्म को स्वीकार करने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचता था। लोग यहां तक कि उनके विरोधी भी इमाम की महानता को स्वीकार करते थे और किसी न किसी रूप में उनकी प्रशंसा करते थे।

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम बहुत अधिक दान दक्षिणा करते थे इसलिए उनकी सबसे प्रसिद्ध उपाधि जवाद है जिसका अर्थ दान करने वाला है। जवाद महान ईश्वर के नामों से एक नाम है और यह इस बात की याद दिलाता है कि महान ईश्वर इतना दानी है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती और यह ईश्वरीय विशेषता इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम में प्रतिबिंबित हुई है। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम बहुत दानी थे और लोगों की समस्याओं का समाधान करते थे। आप फरमाते थे जिस इंसान के अंदर तीन विशेषताएं हों तो वह ईश्वर की प्रसन्नता तक पहुंच सकता है। ईश्वर से अधिक क्षमा याचना करना, सहिष्णुता और लोगों के साथ गुज़ारा करना व अधिक दान देना।

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम समस्याओं में धैर्य को अच्छे इंसानों की विशेषता बयान करते और फ़रमाते हैं” समस्याओं व संकटों में धैर्य चिढ़ने वालों के लिए विपत्ति है। इमाम स्वयं जो अपने समय की समस्यायें व संकट होते थे उनमें बहुत धैर्य करते थे। इमाम विपत्तियों में कभी भी परेशान नहीं होते थे बल्कि महान ईश्वर पर भरोसा करके धैर्य करते थे। अलबत्ता इमाम मुश्किलों व कठिनाइयों में धैर्य करते थे परंतु जब इस्लाम धर्म के मूल सिद्धांतों की रक्षा की बात आती थी तो इमाम पूरी तरह उसकी रक्षा करते थे। अयोग्य पत्नी के साथ जीवन गुज़ारना, अत्याचारी शासकों के अत्याचार पर धैर्य करना, पिता की शहादत पर धैर्य करना और जीवन की अप्रिय घटनाओं व समस्याओं पर धैर्य, इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के धैर्य के कुछ नमूने हैं।

इतिहास में आया है कि कुछ लोग दूर से इमाम की सेवा में कुछ मूल्यवान उपहार ला रहे थे कि रास्ते में कारवां को डाकुओं ने लूट लिया। इसमें वे मूल्यवान उपहार भी चले गये जो लोग इमाम की सेवा में पेश करने के लिए ला रहे थे। जिस आदमी पर इन उपहारों को इमाम की सेवा में पेश करने की ज़िम्मेदारी थी उसने इमाम की सेवा में पत्र भेजा और पूरी घटना से इमाम को अवगत कराया। इमाम ने इस पत्र के जवाब में लिखाः बेशक हमारी जानों और माल को ईश्वर ने प्रदान किया है और ये उसकी अमानत हैं अगर हम उससे लाभांवित होते हैं तो यह खुशी की बात है और जो ले जायें यानी जो चली जाये अगर उस पर धैर्य करें तो उसका पुण्य है। और जो भी मुश्किलों में परेशान हो जाये और धैर्य न करे तो उसका पुण्य समाप्त हो जायेगा।“

अब्बासी ख़लीफ़ा मामून बहुत ही अत्याचारी, पाखंडी और मक्कार था। उसने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को अपने उत्तरा धिकारी का पद स्वीकार करने पर बाध्य किया। जब उसने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को शहीद करवा दिया तो उसने इमाम रज़ा अलैहिस्लाम के बेटे इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के खिलाफ नई चाल चली और विदित में वह इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम से बहुत अच्छी तरह पेश आता था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के एक साल बाद उसने अपनी बेटी उम्मूल फज़्ल का विवाह इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम से कर दिया। उसने यह विवाह केवल राजनीतिक लक्ष्यों को साधने के लिए ज़बरदस्ती इमाम पर थोपा था। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के एक अनुयाइ इस बारे में कहते हैं” मैं बग़दाद में इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचा और मैंने निकट से उनके जीवन को देखा। मेरे दिमाग़ में आया कि यहां इमाम की ज़िन्दगी बहुत अच्छी है वह कदापि अपनी मातृभूमि मदीना नहीं लौटेंगे। इमाम ने एक क्षण के लिए सिर झुका लिया। फिर सिर उठाया और उनका चेहरा दुःख व पीड़ा से पीला पड़ गया था। इसके बाद इमाम ने  फरमाया हे हुसैन! पैग़म्बरे इस्लाम के हरम में जौ की रोटी और नमक मेरे निकट उस चीज़ से अधिक प्रिय है जो तुम देख रहे हो।“

इसी कारण इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम बग़दाद में नहीं रुके और अपनी अयोग्य पत्नी उम्मूल फ़ज़्ल के साथ पवित्र नगर मदीना लौट आये यहां तक कि 220 हिजरी कमरी तक मदीना में रहे।

जब मोअतसिम अब्बासी ख़लीफ़ा बना तो उसने भी अपने से पहले वालों शासकों की भांति पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के बारे में चाल चलना शुरू किया। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के द्वेष और शत्रुता से उसके सीने में आग लगी हुई थी। उसने इमाम को पवित्र नगर मदीना से बुलवा लिया। जब इमाम बग़दाद आ गये तो मोअतसिम ने इमाम की अयोग्य पत्नी उम्मूल फ़ज़्ल को ज़हर दिया और उसने इस ज़हर को अंगूर में मिला दिया और उसके बाद वह विषयुक्त अंगूर इमाम के पास ले गयी। इमाम ने जैसे ही इन अंगूरों को खाया उनके पावन चेहरे से ज़हर के चिन्ह स्पष्ट हो गये और उसी ज़हर से इमाम शहीद हो गये।

हे इमाम जवाद! आप पर हमारा सलाम हो उस दिन पर हमारा सलाम हो जिस दिन आप इस दुनिया में आये और उस दिन पर भी हमारा सलाम हो जिस दिन आप शहीद हुए और प्रलय के उस दिन पर हमारा सलाम हो जिस दिन आप पैग़म्बरे इस्लाम के चाहने वालों की शिफाअत के लिए उठेंगे। हमारा सलाम हो आपके पूर्वजों पर और मासूमों पर।