प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, शुक्रवार को जहां इस्लामी गणतंत्र ईरान के पवित्र शहर मशहद और क़ुम सहित सभी छोटे बड़े शहर और गावं में इमाम मोहम्मद तक़ी की शहादत के मौक़े पर लोग अज़ादारी कर रहे हैं वहीं इराक़ के काज़मैन शहर का वातावरण कुछ भिन्न है। इमाम के पवित्र रौज़े पर काला ध्वज लहरा रहा है। बच्चे, बूढ़े जवान, महिला और पुरुष सब इमाम के रौज़े की ओर रवाना हैं ताकि वहां वे इमाम का शोक मना सकें और दिल खोलकर अज़ादारी कर सकें। हर ओर दुख का वातावरण है। लोग मज्लिसें कर रहे हैं और जूलूस निकाल रहे हैं। इमाम अली इब्ने मूसा रज़ा की शहादत का ग़म मनाने के लिए ईरान, भारत और पाकिस्तान सहित विश्व के बहुत से देशों से लोग काज़मैन पहुंचे हैं।
इसी तरह ईरान के पवित्र नगर मशहद और क़ुम में भी लाखों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हैं। मशहद और क़ुम नगर में हर ओर काले झंडे लगे हुए हैं। लोग काले कपड़ों में दिखाई दे रहे हैं। छोटे-बड़े, बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष सब ही शोकाकुल हैं। हर ओर भीड़ है। सड़कें लोगों से भरी हुई हैं। जगह-जगह पर सबीलें लगाई गई हैं। इमाम को याद करते हुए लोग आंसू बहा रहे हैं और मातम कर रहे हैं। ईरान और दुनिया के विभिन्न देशों से पवित्र नगर मशहद पहुंचे लाखों की संख्या में श्रद्धालु इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम को उनके पुत्र इमाम मोहम्मद तक़ी की शहादत के अवसर पर पुरसा दे रहे हैं। इसी तरह क़ुम में मौजूद उनकी फुफ़ी को भी पुरसा पेश कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि शिया मुसलमानों के नवें इमाम शिया इमामों के बीच ऐसे पहले ईश्वरीय मार्गदर्शक हैं, जिन्होंने बचपन में ही इमामत का पद भार संभाला। वे 203 हिजरी में सात वर्ष की आयु में अपने पिता की शहादत के बाद इमाम बने। उन्होंने युवा विद्वान के रूप में मुसलमानों का मार्गदर्शन इस प्रकार से किया कि दोस्त हो या दुश्मन हर कोई आश्चर्यचकित रह गया। वार्ता, बहस, सवालों के जवाब और उनके उपदेश इस बात का स्पष्ट सुबूत हैं।