AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
बुधवार

3 जुलाई 2019

2:06:03 pm
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हज़रत फ़ातेमा मासूमा अलैहस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के उपलक्ष्य में विशेष कार्यक्रम

पहली ज़ीक़ादा सन 173 हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र और शिया मुसलमानों के सातवें इमाम हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की सुपत्री और आठवें इमाम हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम की बहन हज़रत फ़ातेमा का जन्म हुआ।

उनकी माता का नाम हज़रत नजमा ख़ातून था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम, हज़रत फ़ातेमा मासूमा के बड़े भाई थे।  हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम, कहते हैं कि स्वर्ग के आठ दरवाज़े हैं जिनमें से तीन का रुख़, क़ुम की ओर है। मेरे ही वंश की एक महिला का मज़ार क़ुम में होगा। वह हमारे मानने वालों की शिफ़ाअत करेगी।

हज़रत फ़ातेमा मासूमा के शुभ जन्म दिवस को ईरान में बेटी के दिन के तौर पर मनाया जाता है। पूरे ईरान के विभिन्न क्षेत्रों से लोग पवित्र नगर क़ुम में स्थित हज़रत मासूमा के मज़ार पर पहुंच कर उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करते हैं। इस दिन उनके रौज़े की सजावट देखने योग्य होती है। हर जगह मिठाई बांटी जाती है और वक्ता उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं जबकि क़सीदे पढ़ने वाले अपने शेरों में उनके व्यक्तित्व का गुणगान करते हैं। कुल मिला कर इस दिन क़ुम शहर का वातावरण कुछ अलग ही होता है। मित्रो! हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा के शुभ जन्म दिवस के उपलक्ष्य में हम आप सबकी सेवा में एक बार फिर हार्दिक बधाई प्रस्तुत करते हैं।

हज़रत मासूमा का लालन-पालन संसार के सबसे पवित्र परिवार में दुआ और पवित्रता, ज्ञान व तत्वदर्शिता उनके शरीर व आत्मा में रच बस गई। उनका वंश माता की ओर से पैग़म्बरे इस्लाम के नाती इमाम हसन अलैहिस्सलाम तक पहुंचता है जबकि पिता की ओर से, पैग़म्बर के दूसरे नाती इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम तक पहुंचता है। यही कारण है कि जब हज़रत मासूमा की ज़ियारत की जाती है तो उन्हें संबोधित करते हुए कहा जाता है, आप पर सलाम हो, हे हसन व हुसैन की सुपुत्री।

हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा के जन्म का पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों के लिए विशेष महत्व था क्योंकि यह ख़बर उनके दादा हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम उनके जन्म से पहले ही कई बार दे चुके थे और उन्होंने पैग़म्बर के परिजनों से श्रद्धा रखने वालों व शियों को पहले ही हज़रत मासूमा के उच्च स्थान से अवगत करा दिया था। उन्होंने हज़रत फ़ातेमा मासूमा के बारे में कहते हैं कि ईश्वर का हरम मक्का है, उसके पैग़म्बर का हरम मदीना है, हज़रत अली का हरम कूफ़ा है जबकि मेरा और मेरे बच्चों का हरम, क़ुम है। मेरी संतान में से एक महिला का वहां निधन होगा जिसका नाम फ़ातेमा होगा और वह मेरे सुपुत्र मूसा काज़िम की बेटी होगी। हमारे सभी शिया उसकी शेफ़ाअत से स्वर्ग में जाएंगे।

कहा जा सकता है कि इसी कारण क़ुम के लोग विशेष कर इस नगर के विचारक व बुद्धिजीवी इस प्रकार की महान महिला के अपने शहर में आगमन के बारे में अवगत थे और इस समय की बेताबी से प्रतीक्षा कर रहे थे। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की हदीस से एक अन्य बिंदु स्पष्ट होता है और वह क़ुम नगर की महान स्थिति है क्योंकि इस नगर को इमामों का हरम कहा गया है। क़ुम नगर के महत्व के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम, हज़रत अली और अन्य इमामों की भी अनेक हदीसें मौजूद हैं।

हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा के महान व्यक्तित व उच्च स्थान के बारे में एक घटना अत्यंत रोचक है। क़ुम में बीसियों साल तक रहने वाले और इसी शहर में दफ़्न होने वाले एक अत्यंत सम्मानीय व वरिष्ठ धर्मगुरू स्वर्गीय आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी कहते हैं कि मेरे क़ुम आने का कारण यह था कि मेरे पिता सैयद महमूद मरअशी नजफ़ी, जो इराक़ के पवित्र नगर नजफ़ के अत्यंत सम्मानीय लोगों में से थे और अपनी पवित्रता व असाधारण उपासनाओं के लिए प्रख्यात थे, चालीस रातों तक हज़रत अली अलैहिस्सालम के मज़ार में रहे ताकि उन्हें देख सकें। एक रात उन्होंने हज़रत अली को देखा जिन्होंने उनसे पूछा कि सैयद महमूद क्या चाहते हो? उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि मुझे यह पता चल जाए कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा की क़ब्र कहां है ताकि मैं उनकी ज़ियारत कर सकूं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उनसे कहा कि मैं हज़रत फ़ातेमा की वसीयत का विरोध करके उनकी क़ब्र के बारे में किसी को नहीं बता सकता। सैयद महमूद ने कहा कि फिर मैं किस प्रकार उनकी ज़ियारत करूं? हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि ईश्वर ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का तेज और उनका वैभव हज़रत फ़ातेमा मासूमा को प्रदान किया है, तो जो कोई भी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की ज़ियारत करना चाहता है, वह फ़ातेमा मासूमा की ज़ियारत के लिए जाए।

हज़रत फ़ातेमा मासूमा अलैहस्सलाम की कुछ अत्यंत महान आत्मिक विशेषताएं, व्यक्तिगत गुण और उच्च सद्गुण थे जिनके कारण उन्हें "पैग़म्बर के परिजनों की महान महिला" की उपाधि दी गई थी। यह उपाधि केवल उन्हीं से विशेष है। उनकी कुछ अन्य उपाधियां भी हैं जिनमें से हर एक उनकी प्रतिष्ठा को दर्शाती हैं, जैसे मुहद्देसा अर्थात हदीस बयान करने वाली, आबेदा अर्थात उपासक और मासूमा अर्थात पापों से पवित्र। ये उपाधियां, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की याद दिलाती हैं और हज़रत मासूमा ने प्रतिष्ठा व पवित्रता, पैग़म्बर की सुपुत्री से विरासत में हासिल की थी। वे ईश्वरीय भय, पवित्रता, लज्जा व मानवीय परिपूर्णता में बेजोड़ थीं। पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों ने हज़रत मासूमा के बारे में जो हदीसें बयान की हैं उनसे ज्ञान व सद्गुणों में उनके महान स्थान का भली भांति पता चल जाता है। हज़रत फ़ातेमा मासूमा ने अपने पिता हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम और अपने बड़े भाई इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के मार्गदर्शन की छत्रछाया में अपने जीवन को महान ईश्वर की याद में बिताया और इस प्रकार वे ज्ञान और ईश्वरीय भय के शिखर पर पहुंच गईं।

हज़रत मासूमा वह महान महिला हैं जो अपनी निष्ठा, उपासना, पवित्रता और ईश्वरीय भय के माध्यम से परिपूर्णता के शिखर पर पहुंचीं। मुसलमान महिलाओं के मध्य वे एक आदर्श महिला बन गईं। ज्ञान और ईमान के क्षेत्र में हज़रत फ़ातेमा मासूमा की सक्रिय उपस्थिति, इस्लामी संस्कृति व इतिहास में महिला के मूल्यवान स्थान की सूचक है। इस्लाम ने महिलाओं को हर क्षेत्र में प्रगति करने का अवसर प्रदान किया है। इसी अवसर का लाभ उठाकर कुछ महान महिलाएं, पुरुषों के लिए आदर्श बन गईं जिनमें से एक हज़रत मासूमा क़ुम हैं। हज़रत फ़ातेमा मासूमा की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि उन्हें इस्लामी ज्ञान की भरपूर जानकारी थी। वे दूसरों को भी उसे बताया करती थीं। इस्लामी विद्वानों और इतिहासकारों का मानना है कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की बेटियों में हज़रत फ़ातेमा मासूमा को एक विशेष स्थान प्राप्त रहा। जब इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम घर पर मौजूद नहीं होते थे तो हज़रत फ़ातेमा मासूमा, लोगों के प्रश्नों का उत्तर देतीं और उनकी शंकाओं को दूर किया करती थीं।

 

आज जब पश्चिमी संस्कृति के हमलों के कारण विभिन्न समाजों में महिला की नैतिक व मानवीय प्रतिष्ठा व मान्यता पर ख़तरा मंडरा रहा है और पश्चिमी संस्कृति लड़कियों और महिलाओं में बेशर्मी और निरंकुशता को बढ़ावा दे रही है, हज़रत फ़ातेमा मासूमा अलैहस्सलाम के व्यक्तित्व और उनके गुणों को पहचानने की ज़रूरत अधिक महसूस होती है। हज़रत मासूमा ने क़ुरआने मजीद की शिक्षाओं से लाभ उठा कर, ज्ञान अर्जित करके और अपने काल की आवश्यकताओं को समझ कर एक अहम भूमिका निभाई। वे इसी तरह अपनी गहरी राजनैतिक सूझ-बूझ के माध्यम से लोगों को पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों पर बनी अब्बास के अत्याचारों से अगवत कराती रहती थीं और इसी तरह उनके द्वारा इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की इमामत के अधिकार के हनन से सूचित कराती थीं। इस प्रकार हज़रत मासूमा पवित्रा व लज्जा का संपूर्ण आदर्श होने के साथ ही धार्मिक व राजनैतिक सूझ-बूझ का भी नमूना हैं और इस दृष्टि से वे आज की महिलाओं के लिए एक उचित आदर्श सिद्ध हो सकती हैं।

इस काल में मुस्लिम महिलाओं की प्रगति व परिपूर्णता के लिए उनके द्वारा ज्ञान व प्रतिष्ठा की प्राप्ति बहुत अहम है जबकि पश्चिमी संस्कृति अपने अमानवीय रुख़ के साथ लड़कियों को दिखावे, मेकअप, आंतरिक इच्छाओं की पूर्ति और निरंकुशता की ओर बढ़ा रही है। इसके चलते इस्लामी संस्कृति निर्माताओं का दायित्व दुगना हो जाता है। स्वाभाविक है कि लड़कियां साज-सज्जा को पंसद करती हैं और इस्लाम ने भी इससे नहीं रोका है लेकिन उसने समाज में बुराइयां फैलने से रोकने के लिए कुछ सीमाएं निर्धारित की हैं जिनका पालन ज़रूरी है।

पश्चिमी संस्कृति महिलाओं और लड़कियों को लक्ष्य बना कर इस बात की कोशिश कर रही है कि उन्हें नैतिकता, मानवीय भावनाओं, लज्जा और पवित्रता और इसी तरह लाभदायक ज्ञानों की प्राप्ति से दूर कर दे। यह ऐसी स्थिति में है कि अगर महिलाओं के सामने उचित आदर्श हों तो वे पश्चिमी संस्कृति के जाल में नहीं फंसेंगी। हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा, अपने आत्म निर्माण, ज्ञान प्राप्ति और नैतिकता के माध्यम से आज मुस्लिम समाज की महिलाओं के लिए एक प्रभावी आदर्श बन सकती हैं।

हज़रत मासूमा, अपने भाई इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात के लिए पवित्र नगर मदीना से मर्व जा रही थीं। 23 रबीउल अव्वल सन 201 हिजरी क़मरी को वे पवित्र नगर क़ुम के निकट पहुंची। उनके आने की ख़बर सुन कर क़ुम नगर के लोगों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके परिजनों से श्रृद्धा रखने वाले उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़े। हज़रत मासूमा 17 दिनों तक क़ुम में बीमारी की स्थिति में रहीं। बाद में 27 साल की उम्र में पवित्र नगर क़ुम में उनका निधन हो गया और वहीं उन्हें दफ़्न किया गया। क़ुम में हज़रत फ़ातेमा मासूमा के रौज़े की ज़ियारत के लिए ईरान ही नहीं बल्कि विश्व के कोने-कोने से श्रृद्धालु पहुंचते हैं। मित्रो! हज़रत मासूमा के शुभ जन्म दिवस पर हम आप सबकी सेवा में पुनः बधाई प्रस्तुत करते हैं।