AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
शनिवार

29 जून 2019

11:48:26 am
955785

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने वह ज्ञान व शिक्षाएं दुनिया वालों तक पहुंचा दीं कि ज़माना आज तक उन्हें देखकर हैरान है

आज हिजरी क़मरी वर्ष के दसवें महीने शौवाल की 25 तारीख़ है जो पैग़म्बरे इस्लाम के वंशज हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत का दिन है। उनका नाम जाफ़र और मशहूर उपाधि सादिक़ है।

शीया मत को उन्हीं के नाम पर मकतबे जाफ़रिया कहा जाता है। यूं तो सभी 12 इमामों ने धर्म के प्रचार प्रसार के लिए कड़ा परिश्रम किया और बड़ी कठिनाइयां भी बर्दाश्त कीं और इस्लाम की शिक्षाओं को लोगों तक पहुंचाते रहे लेकिन इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इस्लाम की जो सेवा की है वह बेमिसाल है। इसकी वजह यह है कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की इमामत का दौर दूसरे इमामों की तुलना में किसी हद तक अनुकूल था। यानी दो ख़ानदानों बनी उमैया और बनी अब्बास ख़ानदानों के बीच राजगद्दी के लिए ज़ोरदार मुक़ाबला हो रहा था अतः वह इमाम और उनके चाहने वाले शीयों पर कम अत्याचार कर रहे थे।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इन हालात का फ़ायदा उठाया और वह ज्ञान व शिक्षाएं दुनिया वालों तक पहुंचा दीं कि ज़माना आज तक उन्हें देखकर हैरान है। बनी अब्बास ने दिखावे के लिए तो अहले बैत अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम के वंशजों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और उनका दावा भी यही था कि हम अहले बैत के हक़ के लिए लड़ रहे हैं लेकिन उनकी नीयत  में खोट था। अतः जैसे ही सत्ता की बागडोर उनके हाथ में आई उन्होंने पूर्ववर्ती शासकों की तरह बल्कि उनसे भी ज्यादा अलहे बैत पर अत्याचार शुरू कर दिया।

बनी अब्बास ख़ानदान का ही एक शासक मंसूर दवानेक़ी था जो बड़ा क्रूर और अत्याचारी था। उसने जहां तक हो सकता था इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम पर अत्याचार किए। विशेषकर जब उसने यह देखा कि इमाम के शिष्यों की संख्या बहुत ज़्यादा है और उनके ज्ञान की ख्याति हर तरफ़ है तो उसने द्वेष व जलन में तथा अपने शासन के विरुद्ध विद्रोह शुरू हो जाने के डर से दो काम ऐसे किए जिनका लक्ष्य शीया मत के ज्ञान संबंधी उत्थान में कमी लाना था।

पहला काम उसने यह किया कि इमाम की ज्ञान व शिक्षा संबंधी गतिविधियों को बहुत सीमित कर दिया। एक काम उसने यह किया कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम पर पहरा लगवा दिया जिसका उद्देश्य इमाम को उनके चाहने वालों से मिलने से रोकना था। लोग अपने बहुत ज़रूरी कामों में सलाह मशविरे के लिए भी इमाम से नहीं मिल सकते थे। दूसरा काम उसने यह किया कि हेजाज़ और इराक़ के इलाक़ों के धर्मगुरुओं और ज्ञानियों को जमा किया और उन्हें यह मिशन सौंपा कि ज्ञान संबंधी बहस में वह इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम को परास्त करें ताकि ज्ञान संबंधी बहस में इमाम की पराजय हो और लोगों के बीच बैठी उनके ज्ञान की धाक समाप्त हो जाए और इमाम के श्रद्धालु उनसे दूर हो जाएं। मगर शासक की यह कामना कभी नहीं पूरी हो पायी। क्योंकि इमाम को ईश्वर से विशेष ज्ञान प्राप्त होता है और उसे कोई भी ज्ञान संबंधी बहस में परास्त नहीं कर सकता। मंसूर दवानेक़ी जब अपनी सभी साज़िशों में नाकाम रहा तो उसने फिर इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम को क़त्ल करने का इरादा कर लिया और इसके लिए कई प्रकार के हथकंडे अपनाए मगर हर हथकंडा नाकाम हो जाता था। एक बार उसकी साज़िश कमयाब हुई और उसने 25 शौवाल 148 हिजरी क़मरी को इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम को ज़हर देकर शहीद कर दिया।