इन देशों ने 8 अप्रैल 2018 की एक घटना के बारे में तो आसमान सिर पर उठा लिया। पश्चिमी देशों, अरब देशों और इस्राईल के मीडिया ने इस दिन हंगामा खड़ा कर दिया और आरोप लगाने लगे कि सीरियाई सेना ने रासायनिक हमला किया है।
यह हमला पूर्वी ग़ूता इलाक़े में हुआ जहां आतंकियों ने दावा किया था सीरियाई सेना ने इस इलाक़े के दूमा शहर पर रासायनिक हमला किया है। कुछ दिन गुज़रने के बाद रासायनिक हथियार निषेध संगठन ने अपनी समीक्षा के आधार पर कह दिया कि दूमा शहर में क्लोरीन गैस का प्रयोग किय गया है मगर उसे यह एजेंट कहीं नहीं मिल सका। इसी हमले का बहाना बनाकर पश्चिमी देशों ने सीरिया की छावनियों और प्रतिष्ठानों पर हमले किए थे। अमरीका और उसके यूरोपीय घटकों ने सीरिया के दस सैनिक केन्द्रों पर मिसाइल हमले किए थे।
इस घटना को एक साल का समय बीत जाने के बाद रासायनिक हथियार निषेध संगठन के विशेषज्ञ इयान हेंडरसन शनिवार 18 मई को स्वीकार किया है संगठन ने सीरिया के दूमा शहर में रासायनिक हमले के बारे में जो रिपोर्ट दी थी वह तथ्यों पर आधारित नहीं है। हेंडरसन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि परीक्षणों तथा घटना स्थल के दौरे के आधाे में जो रिपोर्ट दी थी वह तथ्यों पर आधारित नहीं है। हेंडरसन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि परीक्षणों तथा घटना सर पर यह पता चला है कि सिलेंडर ऊपर से नहीं गिराए गए बल्कि ज़मीन पर ही कुछ लोगों ने उसका प्रयोग किया है। इससे साफ़ पता चलता है कि दूमा में मौजूद आतंकियों ने योजनाबद्ध तरीक़े से सीरिया पर हमले का पश्चिमी देशों को बहाना उपलब्ध कराने के लिए यह ड्रामा रचा था।
इससे रासायनिक हथियारों के मामले में पश्चिमी देशों के दौहरे रवैए का आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। पश्चिमी देशों ने सीरिया और रूस की ओर से बार बार पेश की जाने वाली उन रिपोर्टों पर चुप्पी साधे रखी जिनसे साबित होता है कि आतंकी संगठनों ने रासायनिक हमले किए हैं लेकिन जहां कहीं भी इन आतंकी संगठनों ने आरोप लगा दिया कि सीरिया सेना ने रासायनिक हथियार प्रयोग किए हैं वहां पश्चिमी देश फ़ौरन हरकत में आ गए। पश्चिमी देशों को इस बात पर कोई चिंता ही नहीं है कि आतंकी संगठन रासायनिक हमले करके आम नागरिकों को निशाना बना रहे हैं।