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source : parstoday
सोमवार

1 अप्रैल 2019

11:56:59 am
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ईदे मबअस, वह अभियान जिसने दिखाई नई डगर

27 रजब की तारीख़ सृष्टि के पटल पर ईश्वर की महाशक्ति के जगमगा उठने का दिन है।

आले इमरान सूरे की आयत नंबर 164 में आया हैः “और ईश्वर ने ईमान लाने वालों पर यह कृपा की कि उनके बीच उन्हीं में से एक को पैग़म्बर नियुक्त किया ताकि उसकी आयतों को उन्हें सुनाए, उन्हें हर बुराई से पाक करे, उन्हें किताब और तत्वदर्शिता की शिक्षा दे। हालांकि उससे पहले वह खुली हुई गुमराही में थे।”

रजब की 27 तारीख़ पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी पर नियुक्ति की सालगिरह है। यह वह दिन है जब ईश्वर ने मानवता पर बहुत कड़ी कृपा करते हुए हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा को मानवता के मार्गदर्शन के लिए चुना। इस दिन ईश्वरीय संदेश वही लाने वाला फ़रिश्ता जिबरईल पैग़म्बरे इस्लाम के पास आया और उसने उन तक वही का संदेश पहुंचाया। हज़रत जिबरईल को देखना और ईश्वरीय संदेश वही का बोझ पैग़म्बरे इस्लाम के लिए इतना भारी था कि आप कांप रहे थे। तो ईश्वर ने आपके सीने को उदार बनाया और दिल में सुकून पैदा किया। इस तरह जब पैग़म्बरे इस्लाम मक्के में हेरा नामक गुफा से घर लौट रहे थे तो रास्ते में पहाड़, बड़े बड़े पत्थर और कंकड़ियां और जिन चीज़ों के ऊपर से आप गुज़र रहे थे सब आपको सलाम करते और कहते थेः सलाम हो आप पर हे ईश्वर के पैग़म्बर! ईश्वर ने आपको मानवता पर आरंभ से लेकर अंत तक सब पर वरीयता दी।

जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम पैग़म्बरी पर नियुक्त हुए उस समय दुनिया बहुत ही संकटमय दौर में थी। पैग़म्बरे इस्लाम के दौर में मौजूद संकट का कारण राजनैतिक व्यवस्थाएं और सामाजिक मामले भी थे। दो विशाल साम्राज्यों के बीच न सिर्फ़ आपस में जंग चल रही थी बल्कि आंतरिक स्तर पर भी राजा के चयन को लेकर लड़ाई जारी थी। ये दोनों साम्राज्य उस दौर के कथित रूप से सभ्य साम्राज्य कहे जाते थे। अरब प्रायद्वीप के लोगों की हालत इन दोनों साम्राज्यों से अधिक दयनीय थी। ऐसे लोगों के बीच ईश्वर ने अपना पैग़म्बर भेजा। पैग़म्बरे इस्लाम ने उन लोगों को इस तरह बदल दिया जैसे कुम्हार गीली मिट्टी को जैसा रूप चाहे दे देता है। अरब प्रायद्वीप में अज्ञानता व जेहालत इस तरह फैली हुयी थी कि अरब खजूर की मूर्ति बनाते और उसकी पूजा करते थे लेकिन जिन वर्षों में सूखे का शिकार होते तो खजूर की उन्हीं मूर्तियों को खा जाते थे। अरब बेटियों को ज़िन्दा क़ब्र में दफ़्न कर देते थे। जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी पर नियुक्ति के दौर के हालात को चित्रित करते हुए फ़रमाते हैः “ईश्वर ने उन्हें उस समय भेजा जब जातियां गहरी नींद में पड़ी हुयी थीं, फ़ितने सिर उठाए हुए थे, दुनिया अंधकार व अहंकार में डूबी हुयी थी। उस समय वृक्ष रूपी दुनिया का पत्ता पीला हो गया था। लोगों के सामने दुनिया का बहुत ही घिनौना रूप था। दुनिया का फल फ़ित्ना और उसका खाना मुर्दा जानवर का शव था। वह ऐसा दौर था जब लोगों के शरीर पर डर का साया था। यह कह सकते हैं कि उस समय दुनिया आध्यात्मिक व आत्मिक शून्य से जूझ रही थी।   

जब पैग़म्बरे इस्लाम ईश्वरीय दिन को फैलाने में सफल हुए तो आपने हैरह, ग़स्सान और यमन के शासकों को एकेश्वरवाद का संदेश भेजा। पहले यमन के शासक बाज़ान को, फिर ईरानी सम्राट ख़ुसरो परवेज़ को फिर पूर्वी रूम के सम्राट, फिर मिस्र के शासक, उसके बाद हबशा अर्थात मौजूदा इथोपिया के शासक नज्जाशी को ख़त में एकेश्वरवाद का संदेश भेजा। इस तरह पैग़म्बरे इस्लाम ने यह एलान किया कि इस्लाम का उद्य सिर्फ़ अरब प्रायद्वीप के लिए नहीं है बल्कि उन्हें पूरी दुनिया में बदलाव की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है। पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी पर नियुक्ति का एक उद्देश्य मानवता को दुख तथा हर प्रकार की बुराई से मुक्ति दिलाना है। पैग़म्बरे इस्लाम ने समाज में व्याप्त सभी खोखले मूल्यों के ख़िलाफ़ संघर्ष किया। वह भी अन्य पैग़म्बरों की तरह आए कि विभिन्न समाजों में व्याप्त अतार्किक व निरर्थक रीति रिवाजों को ख़त्म करें। जैसा कि ईश्वर आराफ़ नामक सूरे की आयत नंबर 157 में कह रहा हैः उनकी गर्दन से बुराइयों के भारी बोझ को उठाता है।

एकेश्वरवाद और न्याय की स्थापना पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी के सबसे अहम उद्देश्य में है। एकेश्वरवाद सिर्फ़ दार्शनिक विचार नहीं बल्कि इंसान के लिए ज़िन्दगी जीने की शैली का नाम है। इंसान एकेश्वरवाद को अपने जीवन में इस तरह उतारे कि नाना प्रकार की शक्तियां मानव जीवन को नुक़सान न पहुंचा सकें। स्पष्ट सी बात है कि एक भ्रष्ट समाज में लोगों के मन में एकेश्वरवाद, न्याय, आत्म शुद्धि और ईश्वर से डर तभी जगह कर पाएगा जब समाज में सुधार और न्याय क़ायम हो। यही वजह है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने उपदेश में सभी लोगों से अपनी क्षमताओं के इस्तेमाल तथा दुनिया से आत्मोत्थान की दिशा में लाभान्वित होने के लिए कहा ताकि जीवन इसी दुनिया में सुदंर व अच्छा हो जाए और अत्याचार, अज्ञानता और बर्बरता का अंत हो जाए। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी नियुक्ति का सबसे अहम उद्देश्य इंसानियत का संपूर्ण बौद्धिक विकास बताया क्योंकि मानव समाज में एकेश्वरवाद लोगों के बौद्धिक स्तर के ऊपर उठने से ही क़ायम होगा। इंसान अपनी क्षमताओं से अनभिज्ञ पत्थर और मिट्टी के सामने सिर झुकाता है जबकि जिन इंसानों का बौद्धिक स्तर ऊंचा होता है वे पत्थर और मिट्टी को पैदा करने वाले का आभार व्यक्त करते हैं। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम फ़रमाते हैः ईश्वर ने किसी पैग़म्बर को नहीं नियुक्त किया मगर यह कि वह बुद्धि को संपूर्ण करे, चेतना को चरम पर पहुंचाए। इस दृष्टि से ज़रूरी है कि पैग़म्बर का बौद्धिक स्तर अपने अनुयाइयों से अधिक होगा।

पैग़म्बरे इस्लाम की 23 साल की कोशिश का नतीजा यह निकला कि थोड़े ही समय में मुसलमान अपने सम्मान व प्रतिष्ठा के चरम पर पहुंच गए और उन्होंने दुनिया में बहुत ही भव्य सभ्यता की बुनियाद रखी। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने संघर्ष से मुसलमानों के बीच प्रेम व भाईचारा पैदा किया और उनके बीच पुरानी दुश्मनी को ख़त्म किया। इसके बाद उन्हें ज्ञान व शिक्षा के हथियार से सशस्त्र किया। पैग़म्बरे इस्लाम दुनिया के लिए ऐसी व्यवस्था लेकर आए जो मानव जाति के सौभाग्य व मुक्ति की गैरंटी है। उन्होंने इंसान की ईश्वर की उपासना करने की इच्छा को संपूर्ण ढंग से तृप्त किया और उसे ईश्वर को छोड़ किसी और के सामने सिर झुकाने से रोक दिया। पैग़म्बरे इस्लाम अपनी पैग़म्बरी से मानव समाज के मूल्यों व अर्थों में गहरा बदलाव लाए और दुनिया को मानवता, मोहब्बत, न्याय और ईश्वर पर आस्था से परिचित कराया। आज बड़े बड़े विचारक इस बात को मान रहे हैं कि ज्ञान, मानव सभ्यता, लोगों में शिष्टाचार और बहुत सी अच्छी आदतों का स्रोत ईश्वरीय धर्म और उनमें सर्वोपरि पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा लाया गया ईश्वरीय संदेश है। यही वजह है कि बहुत से विचारकों ने मानव इतिहास की सबसे अहम व बड़ी घटना पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी पर नियुक्ति को माना है।

मशहूर रूसी लेखक लियो टोल्सटॉय कहते हैः “इस बात में कोई शक नहीं है कि पैग़म्बरे इस्लाम दुनिया के बड़े समाज सुधारकों में हैं। उनके लिए यह गर्व के लिए काफ़ी है कि उन्हें एक रक्त पिपासु व बर्बर जाति को बुराई से मुक्ति दिलायी और उसे तरक़्क़ी का रास्ता दिखाया। जबकि एक आम आदमी इस तरह का भव्य काम नहीं कर सकता। इसलिए पैग़म्बरे इस्लाम की शख़्सियत हर तरह का सम्मान पाने योग्य है। उनकी इस्लामी शरीआ, बुद्धि व तत्वदर्शिता से समन्वित होने की वजह से पूरी दुनिया में फैल जाएगा"

आज दुनिया के सामने फिर ख़तरनाक संकट खड़ा है।

न्यूज़ीलैंड में हुयी आतंकवादी घटना को अधिक समय नहीं हुआ है। निर्दोष लोग जो ईश्वर की उपासना में लीन थे, आतंकी के द्वेष का शिकार हुए। यमन, बहरैन और सीरिया में जातीय सफ़ाया, आंतरिक जंग, महिलाओं व बच्चों की तस्करी, भूख, ग़रीबी, हत्या, समलैंगिकता, जल स्रोतों की कमी और सूखे के बारे में आए दिन दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों से ख़बरें सुनने में आती हैं जो हमारे दौर में नई प्रकार की फैल रही अज्ञानता व बुराई को दर्शाती हैं। अमरीकी विचारक नोआम चाम्सकी का कहना हैः दुनिया बहुत तेज़ी से तबाही के मोहाने की ओर बढ़ रही है और गिरने का निश्चय कर चुकी है। इस मार्ग पर जीवन के भविष्य पर भीषण ख़तरा मंडरा रहा है। इन सब बातों के मद्देनज़र यह कहा जा सकता है कि अज्ञानता व बुराई इतिहास के किसी कालखंड से विशेष नहीं है बल्कि हर दौर में ख़ास तौर यह उस समय प्रकट होती है जब नैतिक व आध्यात्मिक दृष्टि से समाज में पतन होता है।

इस बारे में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई कहते हैः “पैग़म्बरों के मुक़ाबले में जो अज्ञानता व बुराई थी वह ज्ञान होने की वजह से नहीं थी। आज की दुनिया में तो मानव ज्ञान बहुत विकसित है मगर आज ये उसी बुराई व अज्ञानता की सेवा में लगा है जिसे ख़त्म करने के लिए पैग़म्बरे भेजे गए। यह अज्ञानता उस बुद्धि के मुक़ाबले में है जिसकी ओर पैग़म्बरों ने बुलाया है। जब इंसान बुद्धि की छत्रछाया में जीवन बिताने लगेगा तो उसका जीवन सौभाग्यशाली हो जाएगा। जिस दिन बुद्धि व चेतना न होगी इच्छा, कामना और क्रोध छा जाएगा। इंसान की इच्छाएं उसे जकड़ लेंगी। उस वक़्त इंसान दुर्भाग्य की भट्टी में जल रहा होगा। जैसा कि पूरे इतिहास में हम यह देखते हैं और आज भी हम यही देख रहे हैं।”

इस समय हमारी दुनिया को एक मुक्तिदाता की ज़रूरत है। वह हस्ती आए जो पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षा को लागू करे। लोग भी मानवता के अंतिम मोक्षदाता हज़रत इमाम महदी के प्रकट होने का इंतेज़ार कर रहे हैं ताकि उनके आगमन से दुनिया में रौशनी फैल जाए, बुराई दूर हो जाए, अत्याचार व अतिक्रमण ख़त्म हो जाए, पैग़म्बरे इस्लाम का संदेश एक बार फिर मन में उम्मीद व सुरक्षा की भावना पैदा करे। अगर कृपा की यह समीर बहने लगे और ईश्वर मानव जाति पर एक बार फिर कृपा करे तो उस दिन मानवता के दुख दर्द का अंत हो जाएगा, अत्याचार का कहीं निशान भी न होगा। उस दिन लोगों के मन वास्तविक ईमान से भरे होंगे और सभी ईश्वर की बर्कत को महसूस करेंगे।