AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
रविवार

17 फ़रवरी 2019

6:04:05 pm
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पाकिस्तान में भारी निवेश के लिए तैयार है सऊदी अरब मगर क्या इस्लामाबाद वो क़ीमत चुकाने के लिए तैयार है जिस पर टिकी हैं रियाज़ की

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान पाकिस्तान के दौरे पर पहुंच गए हैं। बिन सलमान के इस्लामाबाद आगमन से पहले जहां सरकारी सतह पर उनके स्वागत की व्यापक तैयारी हुई वहीं इस विवादित राजकुमार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी शुरू हो गए।

बहरहाल पाकिस्तान के प्रमुख गलियारों में यह चर्चा आम है कि सऊदी अरब ने पाकिस्तान में लगभग 20 अरब डालर के निवेश का मन बना लिया है जबकि सऊदी अरब से पाकिस्तान को 6 अरब डालर का सहायता पैकेज दिए जाने का एलान पहले ही हो चुका है। सऊदी अरब का निवेश ऊर्जा सेक्टर में होगा और गवादर बंदरगाह के इलाक़े में बड़ी तेल रिफ़ाइनरी का निर्माण भी इस निवेश में शामिल है।

पाकिस्तान का प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद इमरान ख़ान ने पहला विदेशी दौरा सऊदी अरब का किया। शायद उनको उम्मीद थी कि उनके इस क़दम से सऊदी सरकार ख़ुश हो जाएगी और पाकिस्तान को भारी आर्थिक सहायता मिल जाएगी जिसकी इस्लामाबाद सरकार को देश की संकट में फंसी अर्थ व्यवस्था को उबारने के लिए सख़्त ज़रूरत है। मगर जानकार सूत्र यही बताते हैं कि इमरान ख़ान का दौरा इस दृष्टि से नाकाम रहा। अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने पहले विदेशी दौरे के लिए पाकिस्तान का चयन करके चार सौ अरब डालर से अधिक के सौदे कर लिए थे मगर इमरान ख़ान को ख़ाली हाथ लौटना पड़ा।

इस बीच एक और घटना यह हुई कि वरिष्ठ सऊदी पत्रकार को तुर्की के शहर इस्तांबूल में सऊदी वाणिज्य दूतवास के भीतर क़त्ल कर दिया गया और सऊदी क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान संदेह के घरे में आ गए। बाद में यह संदेह विश्वास के क़रीब तक पहुंच गया। सऊदी अरब के क़रीबी घटक कहे जाने वाले अमरीका के भीतर मीडिया, कांग्रेस और इंटैलीजेन्स एजेंसियों ने भी यही कहा कि उन्हें लगभग पूरा विश्वास है कि इस हत्या के पीछे बिन सलमन का हाथ है और सऊदी क्राउन प्रिंस के ख़िलाफ़ कार्यवाही की चर्चा तेज़ हो गई जो अब तक जारी है। इस बीच सऊदी अरब ने डेवोस इन द डेज़र्ट के नाम से एक आर्थिक सम्मेलन आयोजित किया जिसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहिष्कार कर दिया गया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने इस मौक़े को ख़ूब भुनाया है और वह सम्मेलन में पहुंच गए। चारों तरफ़ से आलोचनाएं झेल रहे सऊदी अरब को इमरान ख़ान सहारा देने वाला तिनका नज़र आए तो रियाज़ सरकार ने पाकिस्तान की आर्थिक मदद करने का इरादा कर लिया।

मगर सबसे महत्वपूर्ण बात जिसे पाकिस्तान के टीकाकार भी मानते हैं यह है कि सऊदी अरब इस प्रकार की कोई भी आर्थिक सहायता और निवेश बग़ैर किसी शर्त के नहीं करता और हालात को देखते हुए लगता है कि सऊदी अरब की शर्त यही है कि पाकिस्तान की धरती को प्रयोग करते हुए सऊदी अरब की इंटैलीजेन्स एजेंसियां इस्लामी गणतंत्र ईरान के ख़िलाफ़ जो गतिविधियां करें उन्हें पाकिस्तान सरकार और पाकिस्तानी सरकारी एजेंसियां नज़रअंदाज़ ही नहीं बल्कि सपोर्ट भी करें। सऊदी अरब के साथ ही संयुक्त अरब इमारात भी काफ़ी पहले से इस मिशन पर काम करता रहा है और पाकिस्तान में इन देशों को सहयोग भी हासिल रहा है।

पाकिस्तान में 1978 में जनरल ज़ियाउल हक़ राष्ट्रपति बने और 1979 में ईरान में इस्लामी क्रान्ति आई। जिस साल ईरान में क्रान्ति आई उसी साल पूर्व सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर लिया। ईरान की इस्लामी क्रान्ति को नाकाम करने और अफ़ग़ानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले को रोकने के लिए तालेबान के गठन में पाकिस्तान की भूमिका केन्द्रीय हो जाने के बाद सऊदी अरब और अमरीका दोनों के लिए पाकिस्तान महत्वपूर्ण हो गया। उस समय से ही पाकिस्तान की धरती को ईरान के ख़िलाफ़ प्रयोग किया जाता रहा है।

जिन संगठनों को पाकिस्तान में ट्रेनिंग दी जाती है वह ईरान विरोधी होने के साथ ही पाकिस्तान के भीतर बसने वाले शीयों के भी दुशमन हैं और उनके हमलों के चलते पाकिस्तानी शीयों की एक बड़ी संख्या देश छोड़कर अन्य देशों में शरण लेने पर मजबूर हुई।

ईरान के ख़िलाफ़ आतंकी हमले करने वाले संगठनों को पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों ने सपोर्ट किया और यह भी स्पष्ट है कि इस साज़िश में सऊदी अरब और अमरीका की इंटेलीजेन्स एजेंसियां भी पूरी तरह लिप्त थीं। मगर इस बीच पाकिस्तान की सरकार और ज़िम्मेदार गलियारों को यह ज़रूर सोचना चाहिए कि कुछ आर्थिक सहायता के बदले उनसे जो क़ीमत वसूल की जा रही है वह पाकिस्तान को अस्थिर बनाएगी। हालांकि पाकिस्तान में पहले से ही अस्थिरता मौजूद है। क्या यह आर्थिक सहायता के बदले अदा की जाने वाली यह क़ीमत ज़्यादा नहीं है?!