AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
मंगलवार

15 जनवरी 2019

5:23:48 pm
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लेबनान को बार बार क्यों निशाना बना रहे हैं अमरीका और इस्राईल? अमरीका और उसके घटकों की आंख का कांटा क्यों बन गया है यह छोटा सा दे

लेबनान पश्चिमी एशिया का एक छोटा सा देश है जो भूमध्य सागर के तट पर स्थित है। 10 हज़ार 452 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल वाला यह छोटा सा देश है जिसकी आबादी 60 लाख से कुछ ज़्यादा है और इसे एशिया महाद्वीप की मुख्य भूमि का सबसे छोटा मान्यता प्राप्त देश माना जाता है मगर यह देश अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की ख़बरों में छाया रहता है।

हालिया दिनों अमरीका के विदेश उपमंत्री डेविड हेल ने इस देश का दौरा किया और एक बयान दिया जिस पर लेबनान के अनेक राजनैतिक दलों की कड़ी प्रतिक्रिया सामने आई। उन्होंने कहा कि सरकार का चयन तो लेबनानी नागरिकों का काम है लेकिन वह किस प्रकार की सरकार का चयन करते हैं यह हम सबके लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हम स्थिर और विकास की ओर अग्रसर लेबनान देखना चाहते हैं।

डेविड हेल के इस बयान पर हंगामा इसलिए मचा कि वह लेबनानी राजनैतिक धड़ों को यह संदेश देना चाहते थे कि यदि सरकार में इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह की ओर रुजहान रखने वाले दलों की हिस्सेदारी ज़्यादा होगी तो यह अमरीका को पसंद नहीं आएगी और लेबनान की स्थिरता व इस देश का विकास प्रभावित होगा।

लेबनान के राजनैतिक दलों ने अमरीकी अधिकारी के इस बयान की कड़ी निंदा की जबकि बैरूत स्थित इस्लामी गणतंत्र ईरान के दूतावास ने भी  हेल के बयान की निदां की और इसे दूसरों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप क़रार दिया।

पहली बात तो यह है कि जब अमरीका अपने चुनावों में किसी बाहरी हस्तक्षेप को सहन नहीं करता और वह रूस के हस्तक्षेप के आरोपों की बड़ी गंभीरता से जांच करवा रहा है तो उसे कदापि यह अधिकार नहीं पहुंचता कि वह लेबनान के आंतरिक मामलों और चुनावी या सरकार गठन की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप करे।

दूसरी बात यह है कि लेबनान में इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह ने 1980 के दशक से ही देश और जनता की जिस निष्ठा के साथ सेवा की है और देश की रक्षा के लिए जो क़ुरबानिया दी हैं उन्हें देश की जनता कभी भी भूल नहीं सकती। यही कारण है कि लेबनान में हिज़्बुल्लाह की लोकप्रियता का ग्राफ़ बहुत तेज़ी से ऊपर गया है। हिज़्बुल्लाह ने केवल शीया बस्तियों नहीं बल्कि सुन्नी यहां तक कि ईसाई बस्तियों में भी अपनी लोकप्रियता बढ़ाई है।

हिज़्बुल्लाह ने देश की रक्षा के लिए इस्राईल और अमरीका से लोहा लिया। वर्ष 2006 में हिज़्बुल्लाह ने इस्राईल के हमलों का बहादुरी से मुक़ाबला किया और 33 दिन के इस युद्ध में इस्राईल को भारी पराजय का मुंह देखना पड़ा। इस समय हिज़्बुल्लाह के प्रमुख सैयद हसन नसरुल्लाह की विश्वसनीयता की यह स्थिति है कि देश में तो उनके बयानों पर सब विश्वास करते ही हैं इस्राईल में भी जो हिज़्बुल्लाह का कट्टर दुशमन है लोगों के बीच यह विचार आम है कि सैयद हसन नसरुल्लाह कभी झूठ नहीं बोलते। वह जो कुछ कहते हैं उसे करते ज़रूर हैं।

हिज़्बुल्लाह की ताक़त इतनी बढ़ गई है कि उसने लेबनान की रक्षा करने के साथ ही सीरिया को भी आठ साल पहले शुरू होने वाली भयानक अंतर्राष्ट्रीय साज़िश से बचाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई क्योंकि इस साज़िश का निशाना सीरिया ही नहीं ख़ुद लेबनान भी था।

इस तरह यह समझा जा सकता है कि पश्चिमी एशिया के इलाक़े में अमरीका, इस्राईल और उनके घटकों की योजनाओं के सामने जो बड़ी रुकावटें हैं उनमें एक महत्वपूर्ण रुकावट हिज़्बुल्लाह है। यही कारण है कि अमरीकी और इस्राईली अधिकारी हमेशा यह कोशिश करते हैं कि हिज्बुल्लाह को पूरी दुनिया में बदनाम करें और लेबनान के भीतर भी उसे कमज़ोर कर दें। मगर नतीजा यह दिखाई दे रहा है कि हिज़्बुल्लाह लेबनान में अपनी लोकप्रियता में लगातार विस्तार कर रहा है यही नहीं सीरिया, इराक़, यमन, फ़िलिस्तीन सहित पूरे इलाक़े में हिज़्बुल्लाह की लोकप्रियता बढ़ रही है। हिज़्बुल्लाह के चाहने वाले इस्लामी और ग़ैर इस्लामी देशों में बड़ी संख्या में मिलेंगे क्योंकि यह आंदोलन विश्व सम्राज्यवाद को ललकार रहा है।