AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
मंगलवार

1 जनवरी 2019

2:27:32 pm
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इराक़ को सीरिया के भीतर दाइशी ठिकानों पर हवाई हमले की अनुमति के क्या हैं निहितार्थ? क्या यह तुर्की पर भी अंकुश लगाने की है तैयार

सीरिया और इराक़ की संयुक्त सीमा से मिले इलाक़ों में आतंकी संगठन दाइश के तत्वों को पूरी तरह नीस्तोनाबूद करने के लिए इराक़ी सेना को सीरियाई सरकार से अनुमति मिल गई है कि वह सीरिया के भीतर दाइशी आतंकियों के ठिकाने पर हवाई हमला कर सकती है।

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने घोषणा की कि अमरीकी सेना अधिकतम 100 दिन के भीतर सीरिया से बाहर निकल जाएगी। इस नई स्थिति में दाइशी आतंकियों को पांव पसारने का मौक़ा न मिले इसके लिए सीरियाई व इराक़ी सरकारें बहुत चौकस हैं क्योंकि अमरीकी सेना के सीरिया से बाहर निकलने का जहां सीरियाई सरकार और उसके घटकों ने स्वागत किया है वहीं उन्हें यह आशंका भी ज़रूर है कि अमरीका सीरिया से बाहर निकलते निकलते कोई नया बखेड़ा न खड़ा कर दे।

यह चिंता दोनों देशों के बीच सुरक्षा समन्वय में स्पष्ट रूप से दिखाई दी। इराक़ के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार फ़ालेह फ़य्याज़ जब दमिश्क़ की यात्रा पर गए और उन्होंने सीरियाई राष्ट्रपति बश्शार असद से मुलाक़ात की तो दोनों ही पक्षों को यह चिंता थी कि अमरीका इस इलाक़े में कोई गड़बड़ी कर सकता है इसी लिए दोनों देशों ने भरपूर सुरक्षा समन्वय पर ज़ोर दिया।

इस महत्वपूर्ण मिशन के लिए फ़ालेह फ़य्याज़ को दमिश्क़ भेजा जाना भी अपने आप में ख़ास संदेश रखता है। फ़य्याज़ इराक़ी स्वयंसेवी बल हश्दुश्शअबी के प्रमुख हैं। वह इससे पहले भी दाइश के विरुद्ध लड़ाई के दौरान इराक़ और सीरिया के बीच सुरक्षा समन्वय स्थापित करने में महत्वपूर्ण रोल निभाते रहे हैं। हश्दुश्शअबी वह फ़ोर्स है जिसने इराक़ के भीतर आतंकी संगठन दाइश को धूल चटा दी।

राष्ट्रपति बश्शार असद ने जो पड़ोसी देश इराक़ के साथ सभी क्षेत्रों विशेष रूप से सुरक्षा के क्षेत्र में बहुत मज़बूत रिश्ते स्थापित करने में सफल हुए, इराक़ी प्रशासन और इराक़ी सेना को सीरिया के भीतर दाइश के ठिकानों पर हवाई हमले करने की अनुमति दे दी। अब इराक़ी युद्धक विमानों के लिए सीरिया की वायु सीमा में प्रवेश का रास्ता पूरी तरह खुला हुआ है। यह युद्धक विमान केवल सीरियाई प्रशासन को सूचना देकर सीरियाई वायु सीमा में दाख़िल होंगे और आतंकी संगठनों को ध्वस्त करके रवाना हो जाएंगे।

सीरिया और इराक़ के बीच यह सुरक्षा समन्वय एसे समय बना है जब फ़ुरात नदी के पूर्वी इलाक़ों में कुर्द फ़ोर्सेज़ पर तुर्की की सेना के हमले की संभावना बढ़ गई है। वैसे कुर्द फ़ोर्सेज़ ने पहले तो अमरीका के समर्थन से कुछ इलाक़ों को अपने नियंत्रण में ले लिया था लेकिन जब अमरीका ने सीरिया से बाहर निकलने का एलान किया तो कुर्दों की समझ में यह बात आई कि उनका देश सीरिया है और वह सीरियाई सरकार की संप्रभुता के तहत ही सुरक्षित रह सकते हैं अतः उन्होंने मिंबिज जैसे अपने नियंत्रण वाले इलाक़ों का नियंत्रण सीरियाई सेना के हवाले कर दिया और तुर्की के किसी भी सैन्य हमले का मुक़ाबला करने के लिए सीरियाई सेना की मदद मांगी।

अमरीका की कोशिश यह थी कि फ़ुरात नदी के पूर्वी इलाक़ों में एक सुन्नी शासन की स्थापना करके इस इलाक़े को सीरिया से अलग कर दे। इस इलाक़े में सीरिया के तेल व गैस भंडारों का 70 प्रतिशत से अधिक भाग मौजूद है। बहरहाल अब स्थिति बदली हुई है और अमरीका की यह साज़िश नाकाम हो चुकी है।

सीरिया और इराक़ के बीच सुरक्षा समन्वय से यह भी साबित है कि दोनों देशों ने इस इलाक़े में जातीय या सांप्रदायिक बुनियाद पर किसी भी नए शासन की स्थापना का रास्ता रोकने का पक्का इरादा कर लिया है। फ़ुरात नदी का पूर्वी इलाक़ा दोनों ही देशों की नज़र में बहुत महत्वपूर्ण है।

सीरिया और इराक़ के बीच होने वाला यह समन्वय बहुत महत्वपूर्ण है यह इलाक़े में नई तसवीर की बानगी है। यह नए एलायंस इस्लामी गणतंत्र ईरान के नेतृत्व में बन रहे हैं जो पूरे इलाक़े को नई दिशा में ले जाएंगे और निश्चित रूप से यह नई दिशा अमरीका व इस्राईल तथा उनके घटकों को पसंद नहीं आएगी।

ट्रम्प ने यह घोषणा कर दी कि दाइश को हराया जा चुका है और उसका ख़तरा समाप्त कर दिया गया है लेकिन यह उनकी जल्दबाज़ी है और यह भी सच्चाई है कि दाइश को ख़त्म करने में अमरीका की कोई भी भूमिका नहीं रही है। ट्रम्प का यह एलान पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के 2003 के एलान की याद दिलाता है जिसमें जार्ज बुश जूनियर ने कहा था कि इराक़ मिशन पूरा हो गया मगर बाद में पता चला कि अमरीका का मिशन पूरा नहीं बल्कि नाकाम हो गया। इसी का रोना ट्रम्प रो रहे हैं कि अमरीका ने मध्यपूर्व के इलाक़े में 7 ट्रिलियन डालर ख़र्च किए और उसे कुछ हासिल नहीं हुआ।

फ़ुरात नदी के पूर्वी इलाक़े में किसी भी क्षण दाइश के विरुद्ध आप्रेशन शुरू हो सकता है और इसमें इराक़ी सेना की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इराक़ में भीतरी विवाद और आपसी मतभेद का ज़माना लगभग गुज़र चुका है और अब यह देश प्रभावी भूमिका के लिए तैयार हो चुका है।