AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
मंगलवार

27 नवंबर 2018

3:16:48 pm
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इस्राईल की दरिंदगी की वजह इस्लामी जगत की ख़ामोशी तो नहीं?

आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह मुसलमानों को अपमानित करने की साज़िशें हो रही हैं और जिस तरह मुसलमानों के बीच फूट डाल कर उन्हें आपस में लड़वा कर साम्राज्यवाद अपनी आर्थिक स्थति को मज़बूत करने के साथ साथ अपनी सेनाओं को मुसलमानों के देश में पाल रहा है और जो ख़तरनाक हथियार बनाए हैं उसकी निकासी के लिए करोड़ों डॉलर मुसलमानों के नरसंहार के लिए ख़र्च कर रहा है और इस साज़िश को जानते हुए भी मुसलमान हुकूमतें इसलिए चुप हैं क्योंकि वह चुप रहने में ही अपनी सत्ता सुरक्षित महसूस करते हैं।

इस्लामी देशों में जेहाद का नाम बदनाम कर के अपने ही भाईयों को मौत के घाट उतार देने वाले संगठन बढ़ते ही जा रहे हैं, मज़हब के नाम पर मुसलमान एक दूसरे की जान लेने पर तैयार हैं, लेकिन जिस दुश्मन के मुक़ाबले पर खड़ा होना चाहिए वहां केवल बयानबाज़ी से काम लिया जाता है और कुछ इतने मौक़ा परस्त हैं जो उसको भी ज़रूरी नहीं समझते, और ज़ालिम और बातिल ताक़तों से मुक़ाबला करने में उनमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई देती, फ़िलिस्तीनी जनता मुसलमानों के पहले क़िब्ले के बचाव में जिस तरह क़ुर्बानी दे रही है और इस्राईली दरिंदों की दरिंदगी के आगे वह बच्चे जिनके हाथों में किताब और क़लम होने की उम्र है वह इन ज़ायोनी दरिंदों की गोलियों बमों का निशाना बन रहे हैं, इस्राईली सेना के पास आधुनिक तकनीक से बने हुए हथियार मौजूद हैं तो दूसरी तरफ़ अपनी जान जोखिम में डाल कर बैतुल मुक़द्दस की सुरक्षा के लिए हाथों में पत्थर उठाए मासूम फ़िलिस्तीनी बच्चे, नौजवान, मर्द और औरते प्रतिरोध कर रहे हैं, साम्राज्यवादी ताक़तों को इराक़, सीरिया, बहरैन और यमन वग़ैरह की लड़ाई में मुसलमानों का प्रतिरोध आतंकवाद दिखाई देता है लेकिन फ़िलिस्तीन में नन्हे नन्हे मासूम बच्चों पर इस्राईली सेना की दरिंदगी नहीं दिखाई देती। वैसे अमेरिका ज़ायोनी अवैध राष्ट्र को बचाने के लिए हर महीने करोड़ो डॉलर ख़र्च करता है जिसकी रिपोर्ट कुछ साल पहले अमेरिकी अधिकारी की तरफ़ से जारी की गई थी, इस्लाम और मुसलमानों के विरुध्द साम्राज्यवादी ताक़तों के बीच एकजुटता मुमकिन है लेकिन इन इंसानियत के दुश्मन के ख़िलाफ़ मुसलमानों की बीच एकजुटता की उम्मीद धीरे धीरे ख़त्म होती जा रही है, आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह मुसलमानों को अपमानित करने की साज़िशें हो रही हैं और जिस तरह मुसलमानों के बीच फूट डाल कर उन्हें आपस में लड़वा कर साम्राज्यवाद अपनी आर्थिक स्थति को मज़बूत करने के साथ साथ अपनी सेनाओं को मुसलमानों के देश में पाल रहा है और जो ख़तरनाक हथियार बनाए हैं उसकी निकासी के लिए करोड़ों डॉलर मुसलमानों के नरसंहार के लिए ख़र्च कर रहा है और इस साज़िश को जानते हुए भी मुसलमान हुकूमतें इसलिए चुप हैं क्योंकि वह चुप रहने में ही अपनी सत्ता सुरक्षित महसूस करते हैं। 
पूर्व में कुछ शासकों और अमीर वर्ग की तरफ़ से मज़हब की आड़ में कट्टरपंथियों की अलग अलग तरीक़ों से फ़ंडिग की गई और आज वही कट्टरपंथी संगठन अपने आतंक से उन्हीं हाकिमों की नींदें हराम कर चुके हैं। 
ध्यान देने वाली बात यह है कि साम्राज्यवाद का जहां निजी फ़ायदा होता है वहां वह ख़ुद मैदान में उतरते हैं जैसाकि इराक़ में अमेरिका और उसके सहयोगी ख़ुद मैदान में उतरे, लेकिन जहां उन्हें निजी फ़ायदा नहीं दिखाई देता वहां ख़ुद मैदान में न आ कर अपने पिठ्ठू देशों का पूरा समर्थन और सहयोग करते हैं। यमन को ही देख लीजिए, आज उन्हें इस हालत पर लाने वाला अमेरिका और इस्राईल के अलावा कोई और नहीं है, और चूंकि अमेरिका और इस्राईल को यमन में निजी फ़ायदा हासिल होने वाला नहीं है इसलिए अमेरिका और इस्राईल सऊदी सरकार को यमन की तबाही में पूरा सहयोग कर रहे हैं। 
यह सऊदी अरब वही देश है जो सारे इस्लामी देशों से सामने ख़ुद को आइडियल मनवाना चाहता है और वहां के बादशाह अपने आप को मुसलमानों का हाकिम और ख़लीफ़ा कहते हैं लेकिन दूसरी तरफ़ यह यमन के निहत्थे मासूमों पर बम बरसा कर उनकी जान लेते हैं, दरिंदगी की हद तो यह है कि जो दूसरे देश उनकी दवा और खाने पीने के सामान द्वारा मदद भी करना चाहते हैं उन्हें मदद करने से रोकते भी हैं जिसका नतीजा यह है कि पिछले 4 सालों में कई हज़ार लोग दवा न मिलने से मर चुके हैं। बच्चे, जवान, बूढ़े, मर्द और औरत किसी पर भी रहम नहीं है, ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार 85 हज़ार बच्चे कुपोषण के कारण मर चुके हैं और 1 लाख 50 हज़ार मरने के क़रीब हैं, और यह तादाद केवल बच्चों की है, बाक़ी मर्दों, औरतों, बूढ़ों और जवानों का हाल अलग है। 
हैरत तो इस बात पर है कि जो संगठन यमन की आम जनता को सऊदी तानाशाह के हमलों से बचाने की कोशिश में लगा हुआ है और उन दरिंदों के मुक़ाबले डटा हुआ है उसे साम्राज्यवाद से प्रभावित लोग कट्टरपंथी और आतंकी संगठन कह रहे हैं, जबकि हक़ीक़त तो यह है कि अगर आम जनता के साथ उनका प्रतिरोध न होता तो न जाने अब तक यमन का क्या हाल हो चुका होता। इन हालात को देख कर भी इस्लामी जगत चैन की नींद सोया हुआ है और उस पैग़म्बर स.अ. जिसकी विलादत के यह दिन चल रहें हैं उसकी यह हदीस भूल चुका है कि मोमिन मुसलमान एक बदन की तरह हैं जैसे ही बदन के किसी एक हिस्से में तकलीफ़ होती है पूरा बदन तड़प उठता है। (नहजुल फ़साहा) 
इतने इस्लामी देश हैं आज तक एक दो देशों के अलावा क्यों किसी की आवाज़ सऊदी के इस जुर्म के ख़िलाफ़ नहीं उठी? क्या वजह है कि सऊदी मुसलमानों का नरसंहार करने वाले देशों के साथ हाथ मिलाकर इस्लामी देशों को नाबूद करने में लगा है? आख़िर सऊदी अरब किसको ख़ुश करने के लिए यमन पर बमबारी कर रहा है? और यह कैसी अंधी तक़लीद और कैसा अंधविश्वास है कि सऊदी बादशाहों के इतने बेरहम होने के बाद भी मुसलमान उसे इस्लामी हाकिम समझ रहा है? यमन के मामले से पहले बहुत से लोगों के पास बहाना था कि सऊदी ने तो किसी पर हमला नहीं किया, या सऊदी बादशाह तो साम्राज्वाद से नहीं मिले हुए हैं जबकि इनकी साठगांठ बहुत पहले से चली आ रही है, लेकिन अब तो किसी के लिए कोई बहाना नहीं रहा, आख़िर अब कब तक मुसलमान अपनी आंखें बंद रखेगा, अब तो यह साज़िश भी सबके सामने आ चुकी है कि अमेरिका और इस्राईल सऊदी का केवल इसलिए साथ दे रहा है ताकि इस्लामी देशों पर हमले के समय सऊदी का इस्तेमाल कर सके। 
इस आर्टिकल में किसी को आहत करने के लिए सख़्त शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है, बल्कि केवल मक़सद यह है कि मुसलमानों को अब ख़ामोशी तोड़नी होगी और अब नींद से जागना होगा और मज़लूमों के लिए आवाज़ उठानी होगी, इसलिए कि ज़ालिम और आतंक फैलाने वाला कोई भी हो हमें उसके ख़िलाफ़ ख़ामोश नहीं बैठना है बल्कि प्रतिरोध करते हुए उसका विरोध करना है और इसी तरह मज़लूम चाहे कोई भी हो कहीं का भी हो हमें उसके समर्थन में आवाज़ उठानी है और उसका हक़ दिलाने के लिए जितना हमसे हो सके योगदान करना ही करना है। 
ऊपर कही बात पर कि ज़ालिम और हत्यारे के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी है चाहे कोई भी हो कहीं का हो और मज़लूम का साथ देना है चाहे कोई भी हो कहीं का हो अगर दुनिया का हर इंसान बिना भेदभाव के अमल कर ले तो यक़ीन के साथ कहा जा सकता है कि इस ज़मीन से भय, पाप, अपराध, हिंसा, नफ़रत, अराजकता, हत्या, ज़ुल्म, अत्याचार, भेदभाव, किसी का हक़ छीनना, लड़ाई झगड़ा और भी बहुत सारी बुराईयां अपने आप ख़त्म हो जाएंगी और हमारे बीच की दूरियां ख़त्म होंगी और लोगों का एक दूसरे के बारे में सम्मान बढ़ेगा और लोग एक दूसरे का इंसानी जज़्बे के तहत सम्मान करेंगे और जिसका नतीजा यह होगा कि एक अच्छा और सच्चा समाज देखने को मिलेगा, जहां प्यार, मोहब्बत, सम्मान, इंसानियत, हमदर्दी और भाईचारे के अलावा कुछ भी नहीं होगा। ...............................