AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
शनिवार

17 नवंबर 2018

11:00:27 am
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बहरैन, तानाशाही के विरुद्ध व्यापक प्रदर्शन, सरकार के विरुद्ध लगे ज़बरदस्त नारे

बहरैन में जनता ने एक बार फिर तानाशाही के विरोधी नेता शैख़ अली सलमान और आयतुल्लाह शैख़ ईसा क़ासिम के समर्थन में प्रदर्शन किए हैं।

राजधानी मनामा के क्षेत्र दुराज़ में होने वाले एक व्यापक प्रदर्शन में शामिल लोगों ने अपने हाथों में वरिष्ठ धर्मगुरु शैख़ ईसा क़ासिम और तानाशाही विरोधी अलवेफ़ाक़ पार्टी के जेल में बंद नेता शैख़ अली सलमान के फ़ोटो उठा रखे थे।

प्रदर्शनकारी देश पर सत्तासीन पारिवारिक तानाशाही विशेषकर आले ख़लीफ़ा परिवार के विरुद्ध नारे लगा रहे थे। समाचारों के अनुसार बहरैन की शाही सरकार के सुरक्षा बलों ने निरंतर 133वें सप्ताह भी दुराज़ में स्थित शैख़ ईसा क़ासिम के घर का परिवेष्टन जारी रखा और इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम मस्जिद में नमाज़े जुमा अदा नहीं करने दी।

बहरैन के 14 फ़रवरी वर्ष 2011 से शाही सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं। बहरैनी जनता निरंतर प्रदर्शन करके देश में निर्वाचित सरकार के गठन, न्याय की स्थापना और भेदभाव की समाप्ति की मांग कर रही है।

वर्ष 2010 के अंत और 2011 के आरंभ में जब अरब जगत में अत्याचारी, तानाशाही और बड़ी शक्तियों की पिट्ठू सरकारों के ख़िलाफ़ क्रांतियां आना शुरू हुईं तो बहरैन की जनता, भी जो बरसों से अपने मूल प्रजातांत्रिक अधिकारों से वंचित है, 14 फ़रवरी 2011 को सत्तारूढ़ आले ख़लीफ़ा शासन के ख़िलाफ़ उठ खड़ी हुई। उस दिन को बहरैन के क्रांतिकारी युवाओं ने आक्रोश दिवस का नाम दिया था और सड़कों पर प्रदर्शन आरंभ कर दिया था।

अन्य अरब देशों की तरह बहरैन का जनांदोलन भी सोशल मीडिया पर प्रचार और युवाओं के माध्यम से शुरू हुआ। 14 फ़रवरी सन 2011 को मुख्य प्रदर्शन राजधानी मनामा के पर्ल स्क्वायर पर हुआ जिसमें बाद में तानाशाही शासन ने क्रांति का स्मारक बनने से रोकने के लिए ध्वस्त कर दिया।


बहरैन की जनता ने अपना आंदोलन करने के लिए 14 फ़रवरी की तारीख़ का चयन भी सोच समझ कर किया था। 2002 में इसी दिन बहरैन का संविधान पारित हुआ था।