AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
गुरुवार

20 सितंबर 2018

9:15:01 am
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इस्लामी प्रशिक्षण व्यवस्था में लोगों के व्यक्तित्व को संवारने का एक महत्वपूर्ण कारक धार्मिक आदर्शों के पदचिन्हों पर चलना है।

समाजों के इतिहास पर नज़र डाली जाए तो साबित होता है कि यदि किसी समाज में कोई अच्छा आदर्श नहीं है तो लोग अपने जीवन के ज़ाहिरी तार्किक और ईमानी पहलुओं के संदर्भ में लक्ष्यविहीन नज़र आते हैं। जो समाज सक्षम, प्रभावी और ठोस नस्ल को परवान चढ़ाना चाहता है उसके पास आदर्शों का होना ज़रूरी है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने आशूर का कारनामा अंजाम देकर ज़िंदगी गुज़ारने के लिए मानवता के सामने सर्वोत्तम आदर्श पेश कर दिया जो अपने अनगिनत आकर्षणों के साथ मानवता के लिए हमेशा पाठदायक आदर्श रहेगा। इस महान घटना में बहुत से पाठ हैं जिनका बार बार अध्ययन करने की ज़रूरत है। कर्बला की घटना मानवीय आकर्षणों की दृष्टि से भी अद्वितीय है।

कर्बला की घटना के आकर्षण को जिस चीज़ ने चार चांद लगाया है वह इस घटना का शिष्टाचारिक व प्रशैक्षणिक पहलू है कि जो मनुष्य की सोच और अंतरात्मा पर गहरा असर डालता है और उन्हें बदल कर रख देता है। आशूर की घटना का अत्यंत आकर्षक पहलू त्याग और बलिदान की भावना का प्रदर्शन है। परित्याग का चरम बिंदु यह है कि इंसान अपने दुशमन से भी प्रेम का बर्ताव करते हैं। इमाम हुसैन ने जब देखा कि दुशमन की फ़ौज प्यासी है तो उसे पानी पिलाते हैं। केवल सिपाहियों को नहीं बल्कि उनके घोड़ों की भी प्यास बुझाई। यह उदारता तो साहस और बहादुरी से भी बड़ी है। इमाम हुसैन ने आशूर की सुबह कहा कि हम हरगिज़ जंग शुरू नहीं करेंगे चाहे यह हमारे फ़ायदे में ही क्यों न हो।

कर्बला की घटना का एक और ख़ूबसूरत पहलू वफ़ादारी है जो मानवीय भावना का बड़ा प्रकाशमान दृष्य पेश करती है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के भाई हज़रत अब्बास को वफ़ादारी के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। वह बहुत प्यासे थे और नदी तक पहुंच गए लेकिन केवल इस लिए पानी नहीं पिया कि इमाम हुसैन और कारवां के सारे लोग प्यासे हैं। उन्होंने पानी नहीं पिया बल्कि पानी ख़ैमे में पहुंचाने की कोशिश की और इसी कोशिश में शहीद कर दिए गए।

आशूर की घटना वास्तव में प्रेम व श्रद्धा का दर्पण भी है। इमाम खुमैनी कहते हैं कि आशूर के दिन इमाम हुसैन जैसे जैसे शहादत के क्षण से क़रीब हो रहे थे उनके मुख का तेज बढ़ता जा रहा था। इमाम हुसैन के कारवां के जवान रणक्षेत्र में जाने के लिए व्याकुल थे और हर युवा दूसरे से पहले रणक्षेत्र में जाने की कोशिश कर रहा था। हालांकि उन्हें मालूम था कि मैदान में जाकर शहीद होना है। सबसे बड़ी बात यह थी कि उनकी निगाह में केवल लक्ष्य और अपना कर्तव्य था वह इस्लाम के वृक्ष को अपने ख़ून से सींचने के मिशन पर थे।

आशूर के दिन की एक और ख़ूबसूरती इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की दुआएं हैं। इन दुआओं में एसा आकर्षण है कि देखने वाला हैरत में पड़ जाता है। इमाम हुसैन के बेटे इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जब आशूर की सुबह हुई तो मेरे पिता ने अपने हाथ बुलंद किए और दुआ की:  हे पालनहार तू सभी दुखों और पीड़ाओं में मेरा सहारा और भरोसा है कठिनाई और हर मुसीबत में तू मेरी आशा का स्रोत है। कितने ऐसे ग़म हैं कि दिन उन्हें सहन न कर पाता और उन्हें दूर करने में हर युक्ति और चेष्टा विफल हो जाती और इस ग़म में दोस्त भी इंसान को अकेला छोड़ देते और दुशमन बुरा भला कहते तूने एसे ग़मों को दूर कर दिया और मेरी मदद की। सारी नेमतें तेरी ओर से हैं और तू ही सारी मनोकामनाओं का लक्ष्य है।

आशूर के दिन ज़ोहर की नमाज़ भी इस मिशन का बहुत ख़ूबसूरत अध्याय है। जब दोपहर का समय निकट आया तो अबू समामा सैदावी नाम के इमाम हुसैन के एक साथी ने इमाम हुसैन से आकर कहा कि हे इमाम नमाज़ का समय आ गया है और हमारा दिल चाहता है कि अपने जीवन की आख़िरी नमाज़ आपके साथ जमाअत से अदा करें। इमाम हुसैन ने आसमान की ओर देखा और फिर अबू समामा से कहा कि तुमने नमाज़ को याद रखा ईश्वर तुम्हें नमाज़ियों में शामिल करे। इसके बाद इमाम हुसैन ने साथियों से कहा कि दुशमन से यह कह दिया जाए कि हम नमाज़ अदा करना चाहते हैं इतनी देर के लिए जंग रोक दी जाए। दुशमन सेना में से एक व्यक्ति ने चिल्ला कर कहा कि आपकी नमाज़ ईश्वर स्वीकार नहीं करेगा। इमाम हुसैन के साथी हबीब इब्ने मज़ाहिर ने उसका जवाब दिया कि दि पैग़म्बरे इस्लाम के नवासे की नमाज़ क़ुबूल नहीं है तो तुझ जैसे व्यक्ति की नमाज़ तो हरगिज़ क़ुबूल नहीं हो सकती। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जंग के मैदान में जब नमाज़ शुरू की तो अजीब आध्यात्मिक वातावरण छा गया। जमाअत के साथ नमाज़ शुरू हो गई और इमाम हुसैन के कुछ साथी नमाज़ियों की रक्षा के लिए ढाल बनकर खड़े हो गए। दुशमन सेना ने नमाज़ियों पर हमला कर दिया जिसमें ढाल बनकर खड़े इमाम हुसैन के कुछ साथी शहीद हो गए। इमाम हुसैन और उनके साथियों ने इस तरह नमाज़ के महत्व को बताया और इबादत का मनमोहक दृष्य पेश किया।

आशूर का दिन इमाम हुसैन की महानताओं के चमकने और झलकने का दिन है। यदि आशूर की घटना न होती तो शायद इमाम हुसैन की बहुत सी महानताओं से मानव जाति अवगत न हो पाती। संयम, संतुष्टि, ईश्वर के समक्ष समर्पण, ईश्वर पर भरोसा, साहस, दृढ़ता, यह सारी विशेषताएं इमाम हुसैन अलैहिस्साम के अभियान में साफ झलकती हैं। जब इमाम हुसैन के घरवाले और साथी शहीद हो गए तब भी इमाम हुसैन की दृढ़ता में कोई कमी नहीं आई। एक साक्षी का कहना है कि ईश्वर की सौगंध मैंने एसा इंसान नहीं देखा कि दुशमनों के बीच घिरा हो, सारे साथी और रिश्तेदार शहीद हो चुके हों मगर फिर भी उसका दिल इतना मज़बूत हो। यहां तक कि जब छह महीने के हज़रत अली असग़र के गले पर तीर लगा तब भी इमाम हुसैन की ज़बान पर यही वाक्य था कि जो मुसीबत भी आती है चूंकि वह ईश्वर की बारगाह में है इसलिए मेरे लिए आसान है।

इन तमाम घटनाओं के पीछे एक ही उद्देश्य है कि ईश्वर की ओर से सौंपा गया मिशन पूरा हो। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपना दायित्व बड़ी सफलता और सुंदरता के साथ पूरा किया। और क़ुरआन कहता है कि अपने प्रण को निभाने में सबसे आगे ईश्वर है। अर्थात इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने मिशन को पूरा करने में जिन महानताओं का प्रदर्शन किया और जिन विशेषताओं की मिसाल पेश कीं वह ईश्वर को उद्धरित करती हैं।

यह विशेषताएं केवल उन लोगों को मिलती हैं जो अल्लाह के प्रिय बंदे हैं और जिनके कामों में ईश्वरीय कृत्यों की सुंदरता भरी होती है। कर्बला की घटना हो जाने के बाद जब यज़ीद के गवर्नर इब्ने ज़्याद ने इमाम हुसैन की बहन हज़रत ज़ैनब से कहा कि देखा ईश्वर ने तुम्हारे भाई के साथ क्या किया? तो उन्होंने जवाब दिया कि मैंने सुंदरता के अलावा कुछ नहीं देखा। यही कारण है कि बहुत से विद्वानों का कहना है कि इमाम हुसैन और उनके साथियों ने जो पीड़ाएं उठाईं वह उन्होंने ईश्वरीय सामिप्य हासिल करते हुए उठाईं अतः उन्हें केवल ईश्वर सामित्य की ख़ूबसूरती नज़र आई और वह पीड़ाओं को भूल गए। जब ईश्वर किसी मोमिन को किसी कठिनाई में डालता है तो उसका दूसरा पहलू कृपा और दया का होता है। ईश्वर ने इमाम हुसैन की क़ुरबानी और उनके अभियान को अमर कर दिया।

आशूर की दोपहर ढल गई और इमाम हुसैन ने अपनी शहादत पेश करके एक नया अध्याय इस्लाम में जोड़ दिया। जब पैग़म्बरे इस्लाम के नवासे हज़रत इमाम हुसैन ज़मीन पर गिरे तो पूरा वातावरण मानो कांप उठा हो। एसा लगा कि जैसे क़यामत आ गई है। मगर हुसैन के होंटों पर मुसकुराहट है वह तो केवल यह देख रहे हैं कि ईश्वर की राह में उन्होंने जो दायित्व अपने ज़िम्मे लिया था उसे पूरा कर दिया। एक ईसाई विचारक फ़्रेडरिक जेम्स कहते हैं कि इमाम हुसैन ने दुनिया को यह सिखाया कि न्याय, दया और प्रेम का सिद्धांत दुनिया में हमेशा बाक़ी रहने वाला है इसमें कोई बदलाव नहीं होगा और यदि कोई इस सिद्धांत की रक्षा के लिए क़ुरबानी देगा तो खुद उसका नाम भी हमेशा के लिए अमिट हो जाएगा।