AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : अबना
बुधवार

1 मार्च 2017

5:23:24 pm
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हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स. की कुछ हदीसें।

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स. फ़रमाती हैं: "औरतों के लिए अच्छाई और सलाह इसमें है कि न तो वह नामहरम मर्दों को देखें और न नामहरम मर्द उनको देख सकें।"

हदीस (1) हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स. फ़रमाती हैंः "अगर रोज़ेदार, रोज़े की हालत में अपनी ज़बान, अपने कान और आँख और बदन के दूसरे हिस्सों की हिफ़ाज़त न करे तो उसका रोज़ा उसके लिए फ़ायदेमंद नहीं है।" (तोहफ़तुल उक़ूल पेज नं. 958)
हदीस (2) हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स. फ़रमाती हैं: "या अली! मुझे अल्लाह से शर्म आती है कि मैं आपसे किसी ऐसी चीज़ की मांग करूँ कि जो आपकी ताक़त और क़ुदरत से बाहर हो।" (तोहफ़तुल उक़ूल पेज नं. 958)
हदीस (3) हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स. फ़रमाती हैं: "माँ के पैरों से लिपटे रहो इसलिए कि जन्नत उसके पैरों के नीचे है।"(तोहफ़तुल उक़ूल पेज नं. 958)
हदीस (4) हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स. फ़रमाती हैं: "औरतों के लिए अच्छाई और सलाह इसमें है कि न तो वह नामहरम मर्दों को देखें और न नामहरम मर्द उनको देख सकें।" (तोहफ़तुल उक़ूल पेज नं. 960)
हदीस (5) हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स. फ़रमाती हैं: "मेरे निकट इस दुनिया में तुम्हारी सिर्फ़ तीन चीज़ें महबूब हैंः कुराने मजीद की तिलावत, रसूले ख़ुदा स. की चेहरे की ज़ियारत, और ख़ुदा की राह में ख़र्च करना।" (तोहफ़तुल उक़ूल पेज नं. 960)
हदीस (6) हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स. फ़रमाती हैं: "हर वह इंसान जो अपने खालेसाना (शुद्ध) अमल को ख़ुदावंदे आलम की बारगाह में पेश करता है ख़ुदा भी अपनी बेहतरीन मसलेहत (हित) उसके हक़ में क़रार देता है।" (तोहफ़तुल उक़ूल पेज नं. 960)