AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : अबना
रविवार

8 जनवरी 2017

6:47:07 am
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हज़रत इमाम हसन अस्करी अ. की संक्षिप्त जीवनी।

हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ) आठ रबीउस्सानी 232 हिजरी को जुमे के दिन मदीना में पैदा हुए आप इमामत और विलायत की ग्यारहवीं कड़ी हैं हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम का सामना भी आपने पूर्वजों (अहलेबैत) की तरह समय के ज़ालिम, अत्याचारी और मक्कार अब्बासी ख़लीफ़ा से था, आपकी मिसाल उस दौर में ऐसी ही थी जिस तरह ज़ुल्म और अत्याचार के काले अंधेरे में एक दिये की होती है।

अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी अबना: हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ) आठ रबीउस्सानी 232 हिजरी को जुमे के दिन मदीना में पैदा हुए आप इमामत और विलायत की ग्यारहवीं कड़ी हैं हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम का सामना भी आपने पूर्वजों (अहलेबैत) की तरह समय के ज़ालिम, अत्याचारी और मक्कार अब्बासी ख़लीफ़ा से था, आपकी मिसाल उस दौर में ऐसी ही थी जिस तरह ज़ुल्म और अत्याचार के काले अंधेरे में एक दिये की होती है।
आप महतदियों और मोअतमिदों के झूट, छल, कपट, और विद्रोह के दौर में गुमराह लोगों की हिदायत करते रहे, आपकी इमामत के दौर में अब्बासी ख़लीफ़ा के अत्याचार के महलों को गिराने की कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक घटनाएं हुई जो डायरेक्ट इमाम (अ) के निर्देश पर आधारित थीं उनमें से मिस्र में अहमद बिन तूलून सरकार का गठन, बनी अब्बास के उत्पीड़न के खिलाफ हसन बिन ज़ैद अल्वी का चौंका देने वाला आंदोलन और आखिरकार हसन बिन जैद के हाथों तबरिस्तान की जीत और साहब अलज़न्ज का महान उत्सव उस दौर की महत्वपूर्ण घटनाओं में शामिल है।
इसके अलावा मख़्फ़ियाना रूप से जो संबंध इमाम अलैहिस्सलाम से बनाए जाते थे उस की वजह से सरकार ने इस हिदायत के दरवाज़े को बंद करने के लिए कुछ योजनाएं शुरू की: पहले तो इमाम को सैन्य छावनी में सैनिकों की हिरासत में रखा।
दूसरे मोहतदी अब्बासी ने अपने अत्याचार और क्रूर शासन को संशोधित किया और घुटन के माहौल को थोड़ा सा बदल कर स्वतंत्र वातावरण का रूप दिया और पैसों से ख़रीदे गए दिखावे के मुल्ला अब्दुलअजीज उमवी की दीवाने अत्याचार के नाम से सिर्फ़ दिखावे के लिए एक ऐसी अदालत बनाई जहां हफ़्ते में एक दिन जनता आकर सरकार के गुर्गों के उत्पीड़न की शिकायत करती थी।
लेकिन इस तथाकथित अदालत का दरअसल मुसलमानों पर कोई असर न हुआ बल्कि प्रतिदिन इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की तरफ़ मुसलमानों का झुकाव बढ़ता चला गया और चारों ओर आज़ादी चाहने वाले मुसलमानों के आंदोलन से बनी अब्बास की सरकार की नींव हिलने लगीं और जनता के इस महान आंदोलन से अपनी सरकार के पतन के डर से बनी अब्बास ने जनता में अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए प्रोग्राम बनाया कि पहले तो जनता के बीच धन बाँटा जाए ताकि लोगों का विद्रोह कम हो और जनता को खरीद कर ऐसा माहौल बना दिया जाए कि जिससे इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को शहीद करने में आसानी हो।
इतिहास गवाह है कि दुनिया के ज़ालिम और अत्याचारी शासकों का यह दस्तूर रहा है कि जब भी उनके अत्याचार के खिलाफ किसी ने आवाज उठाई तो उन्होंने इस बात की कोशिश की कि जल्द से जल्द इस आवाज को खामोश कर दें हालांकि शायद उन्हें यह पता नहीं कि आने वाली पीढ़ी में उनके लिए अपमान और निंदा के अतिरिक्त कुछ नहीं होगा और उनके अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों का दुनिया सिर्फ समर्थन ही नहीं करेगी बल्कि उन बुज़ुर्गों को महानता की दृष्टि से देखेगी और इन मज़लूमों द्वारा बताए गए रास्ते पर चलकर गर्व करेगी
इमाम हसन अस्करी (अ) ने भी हमेशा अपने पूर्वजों की तरह अपनी ज़िंदगी के क़ीमती लम्हे इस्लाम की रक्षा और हिफ़ाज़त में व्यतीत किए हालांकि दीन का समर्थन और जनता की सेवा अब्बासी शासकों के कभी भी पसन्द नहीं थी लेकिन ख़ुदावन्द आलम ने अपनी आख़िरी हुज्जत और इस्लाम के मददगार हज़रत इमाम महदी (अ) को इमाम हसन असकरी (अ) के घर भेजकर स्पष्ट कर दिया है कि इस्लाम के असली मालिक और वारिस हजरत मुहम्मद श के अहलेबैत (अ) ही हैं।