AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : अबना
शुक्रवार

2 सितंबर 2016

12:54:26 pm
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एक सात साल का बच्चा इमाम कैसे हो सकता है?

बग़दाद के अस्सी उलमा और बुज़ुर्गों ने जब हज के मौसम में इमाम मोहम्मद तक़ी अ. से मुलाक़ात की तो आपने उनके हर सवाल का जवाब दिया और उनके लिए साबित हो गया कि आप वास्तव में इमाम हैं और मामून ने आपकी कमसिनी के बावजूद जब आपको अपना दामाद बनाया तो अब्बासियों की ओर से आलोचना हुई कि तुमने उन्हें अपना दामाद क्यों बनाया है? तो मामून ने कहा: मैं उनके इल्म और गुणों को देखते हुए उन्हें अपना दामाद बनाया है और फिर बड़े बड़े उलमा......

अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी अबना: आमतौर पर बचपन को खेल कूद को दौर जाना जाता है और पचपन की कल्पना खेल कूद और जिम्मेदारियों से दूर रह कर जीने के साथ की जाती है, शायद यही वजह है कि अगर कमसिन और बचपन में एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी की बात हो तो इंसान को आश्चर्य होता है चूंकि आम तौर पर किसी भी जिम्मेदारी को निभाने के लिए एक अक़्ल के पक्के हो जाने की आयु की आवश्यकता होती है, कमसनी में यूं तो बहुत से ऐसे लोग मिलते हैं जिन्होंने बड़ी जिम्मेदारियों को बहुत अच्छे तरीक़े से अंजाम दिया है लेकिन ऐसे बहुत ही कम और विशेष स्थान हैं इसलिए आमतौर पर बचपन में किसी को बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी जाती ख़ासकर जब बात उम्मत की हिदायत की हो तो और भी ध्यान देने की ज़रूरत है और इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के सिलसिले से एक महत्वपूर्ण बात यही है कि आपने उस समय इमामत के बार को संभाला जब आप बहुत कमसिन थे इसलिए इमाम मोहम्मद तक़ी अ. की इमामत के शुरू से ही एक महत्वपूर्ण मुद्दा जो शियों के बीच पेश आया और फिर यह बाहर निकल कर एक ऐतराज़ का रूप धारण कर गया वह आपकी कमसिनी का मुद्दा था।
इमाम अली रज़ा की शहादत के बाद ख़ुद आपके शियों यहां तक ख़ास सहाबियों के लिए यह एक सवाल था कि एक सात साल का बच्चा इमाम कैसे हो सकता है? कमसिनी में इमामत की समस्या केवल इमाम मोहम्मद तक़ी के लिए पेश नहीं आई बल्कि हमारे तीन इमाम कम उम्र में इमाम बने हैं। इमाम मोहम्मद तक़ी अ. सात साल की उम्र में इमाम बने, इमाम अली नक़ी अ. नौ साल की उम्र में इमाम बने और इमाम महदी (अ) को पांच साल की उम्र में इमामत की ज़िम्मेदारी मिली। आमतौर से चूंकि यह उम्र खेल कूद और बचपन की उम्र होती है और आदमी को 15 साल के बाद परिपक्व माना जाता है बल्कि समाज तो उसे भी बच्चा ही समझता है, इसी लिए इमाम रज़ा अ. की शहादत के बाद बहुत से शियों को जब मालूम होता है कि सात साल का बच्चा उनका इमाम है तो उन्हें बात हज़म नहीं होती और उनकी ज़बान पर यह सवाल आ ही जाता था: यह तो बच्चा है, इमाम कैसे हो सकता है?!!
हो सकता है एक शिया होने के नाते हमारे लिए यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण न हो लेकिन एक गैर शिया हमसे यह सवाल कर ले तो हमारे पास इसका क्या जवाब होगा बल्कि अगर एक शिया नौजवान के मन में भी यह सवाल उठ जाए तो उसे किस तरह संतुष्ट किया जा सकता है कि एक पांच साल या सात साल या नौ साल का बच्चा भी इमाम सकता है, इतना कमसिन बच्चा भी इतनी बड़ी उम्मत की इमामत का बोझ अपने कंधों पर उठा सकता है और एक बच्चा भी रसूले ख़ुदा का उत्तराधिकारी और उनका खलीफा बन सकता है?
इस महत्वपूर्ण सवाल का जवाब हम अक़्ल व बुद्धि, क़ुरआन और इतिहास की रौशनी में बयान करने की कोशिश करेंगे।

1. अक़्ल क्या कहती है?
क्या किसी भी पद के लिए निश्चित उम्र ज़रूरी है या असली बात योग्यता और क्षमता है? अगर किसी कमसिन नौजवान में योग्यता पाई जाती है तो क्या उसे उस पद पर बिठाना बुरा है या बुद्धि के विरूद्ध है? बुद्धि तो यही कहती है कि मौलिक मापदंड उम्र नहीं बल्कि योग्यता है अगर किसी बड़ी उम्र वाले इंसान को कोई महत्वपूर्ण पद दिया जाए लेकिन उसमें उसकी योग्यता न पाई जाती है तो क्या यह सही है? या यह कि अगर ऐसे इंसान को पद दिया जाए जिसके अंदर योग्यता पाई जाती हो चाहे उसकी उम्र कम ही क्यों न हो? अक़्ल तो दूसरे विकल्प को ही स्वीकार करती है।
2. क़ुरआने करीम
1) हज़रत ईसा अ.
हज़रत ईसा बिना बाप के हज़रत मरयम के गर्भ से पैदा हुए लेकिन चूंकि यह एक अजीब बात थी इसलिए लोगों के लिए एक सवाल बना हुआ था कि यह कैसे हो सकता है? हज़रत मरयम ने तो शादी नहीं की है उनके यहां बच्चा कहाँ से आ गया इसलिए बहुत से लोगों ने हज़रत मरया पर आरोप भी लगाया और कुछ लोगों ने सवाल भी किया कि मरयम तुम तो एक पाक दामन और पवित्र लड़की हो, यह बच्चा तुम्हारे यहाँ कहाँ से आया? हज़रत मरयम ने बच्चे की ओर इशारा किया कि इस सवाल का जवाब यह बच्चा खुद ही देगा। लोगों को और आश्चर्य हुआ कि यह बच्चा जिसे पैदा हुए अभी तीन दिन हुए हैं कैसे हमारी बात का जवाब दे सकता। तब हज़रत ईसा अ. अल्लाह के हुक्म से बोले:
"قَالَ إِنِّي عَبْدُ اللَّهِ آتَانِيَ الْكِتَابَ وَجَعَلَنِي نَبِيًّا"
मैं अल्लाह का बंदा हूं, उसने मुझे किताब दी है और मुझे नबी बनाकर भेजा है।
यह आयत बताती है कि हज़रत ईसा अ. ने तीन दिन की उम्र में अपनी नुबूव्वत की घोषणा की है।
2) हज़रत यहिया
हज़रत यहिया को अल्लाह ने कुछ विशेष चीज़ें प्रदान कीं जिनमें से बचपन में ही उन्हें नुबूव्वत दी। क़ुरआन करीम इस बारे में कहता है:
يَا يَحْيَى خُذِ الْكِتَابَ بِقُوَّةٍ وَآتَيْنَاهُ الْحُكْمَ صَبِيًّا
और हमने उन्हें बचपन में ही नुबूव्वत दी।
क़ुरआन की यह दो आयतें साफ तौर पर बता रही हैं कि ख़ुदा की ओर से मिलने वाली जिम्मेदारी के लिए किसी उम्र की शर्त नहीं। क्योंकि हिदायत की ज़िम्मेदारी अल्लाह की है और उसी ने नुबूव्वत और इमामत का पद अपने हाथ में रखा है वही जानता है कि किसे यह पद दिया जाए। वह चालीस साल की उम्र में भी किसी को नबी बना सकता है, तीन दिन के बच्चे को भी नुबूव्वत देकर भेज सकता है और हज़रत यहिया अ. जैसे पाक इंसान को बचपन में भी नबी बना सकता है।
3. इतिहास और हदीस की रौशनी में
शेख़ कुलैनी अपनी किताब में एक हदीस बयान करते हैं कि रावी कहता है: हम इमाम रेज़ा अलैहिस्सलाम के चचा अली इब्ने जाफ़र के साथ मस्जिद में बैठे थे और वह हमें दर्स दे रहे थे, हमने देखा कि इमाम रज़ा अ. के बेटे मोहम्मद तक़ी अ. ने मस्जिद में प्रवेश किया, जैसे ही अली इब्ने जाफ़र की नज़र उन पर पड़ी, अपनी जगह से खड़े हुए और उनकी ओर गए, फिर उनका हाथ चूमा और विशेष रूप से उनका सम्मान किया। मोहम्मद इब्ने अली अ. ने उनसे कहा: चचा जान तशरीफ़ रखिए, अल्लाह तआला आप पर रहमत नाज़िल करे। अली इब्ने जाफ़र ने कहा मौला! कैसे बैठ जाऊं जबकि आप खड़े हैं? जब अली इब्ने जाफ़र दोबारा हमारे पास आए तो कुछ लोगों ने आश्चर्य के साथ कहा: आप इमाम रज़ा अ. के चचा हैं इस हिसाब से यह बच्चा आपका पोता हुआ, फिर आप इस तरह से उसका सम्मान क्यों कर रहे थे? अली इब्ने जाफ़र ने अपनी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा: अल्लाह ने इस सफ़ेद दाढ़ी वाले आदमी को इमामत के लायक नहीं समझा लेकिन इस बच्चे को इमामत के योग्य समझा है, तो मैं उसकी महानता का इंकार कैसे कर सकता हूं। मैं उसका ग़ुलाम हूँ और वह मेरा मौला है। (उसूले काफ़ी, जिल्द 1, पेज 322)
4. कमसिनी में योग्य लोगों के चयन के ऐतिहासिक उदाहरण
तालूत की मिसाल
क़ुरआन ने इस कानून को स्पष्ट रूप से बयान किया है: जब बनी इस्राईल ने जालूत के अत्याचार से तंग आकर अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत शमूएल से अनुरोध किया कि उनके लिये किसी इंसान को शासक बना कर भेजें जिसके नेतृत्व में हम इस तानाशाह राजा से लड़ें तो अल्लाह ने तालूत जैसे जवान को उनका हाकिम नियुक्त किया जिस पर बनी इस्राईल ने आपत्ति जताई कि इसके पास न कोई धन दोलत है, न ख़ानदानी बैकग्राउंड है यह कैसे हमारा हाकिम हो सकता है और देखने में भी काफी युवा है। ख़ुदा ने उनके जवाब में ख़ुदाई नेतृत्व का कानून बताया कि हमारे यहां मापदंड वो नहीं है जो तुम समझते हो बल्कि
’’إِنَّ اللَّهَ اصْطَفَاهُ عَلَيْكُمْ وَزَادَهُ بَسْطَةً فِي الْعِلْمِ وَالْجِسْمِ وَاللَّهُ يُؤْتِي مُلْكَهُ مَنْ يَشَاءُ
हमारा मापदंड यह है कि हम जिसे खुद चाहते हैं उसका चयन करते हैं और इसके लिए उसे आवश्यक क्षमताओं से भी मालामाल करते हैं और हम यह भी जानते हैं कि किस के अंदर हमारे दिए हुए पद को संभालने की क्षमता पाई जाती है।
नुबूव्वत और इमामत एक विशेष पद।
इस आयते करीमा के संदर्भ में नुबूव्वत और इमामत को देखा जाए तो यह एक विशेष पद है जो ख़ुदा की ओर से दिया जाता है। उसकी शर्तें भी ख़ुदा नियुक्त करता है और किसके अंदर यह बातें पाई जाती हैं उसे भी खुद ही तय कहता है। इसलिए जब हम क़ुरआन की नज़र में इमामत व नेतृत्व के पद की शर्तों को देखते हैं तो वह सभी इमाम मोहम्मद तक़ी अ. में दिखती जिसकी गवाही दोस्त और दुश्मन सबने दी है।
बग़दाद के अस्सी उलमा और बुज़ुर्गों ने जब हज के मौसम में इमाम मोहम्मद तक़ी अ. से मुलाक़ात की तो आपने उनके हर सवाल का जवाब दिया और उनके लिए साबित हो गया कि आप वास्तव में इमाम हैं और मामून ने आपकी कमसिनी के बावजूद जब आपको अपना दामाद बनाया तो अब्बासियों की ओर से आलोचना हुई कि तुमने उन्हें अपना दामाद क्यों बनाया है? तो मामून ने कहा: मैं उनके इल्म और गुणों को देखते हुए उन्हें अपना दामाद बनाया है और फिर बड़े बड़े उलमा से इमाम की बहस भी करवाई जिन्होंने इमाम के इल्म के सामने अपनी हार को स्वीकार कर लिया।
इन सभी बातों और दलीलों से स्पष्ट होता है कि बचपन में किसी इंसान को कोई महत्वपूर्ण ख़ुदाई पद मिलना अनहोनी बात नहीं है। हाँ एक असामान्य और आश्चर्यजनक बात ज़रूर है, लेकिन असामान्य और आश्चर्यजनक हम इंसानों के लिए हर वह चीज़ है जो कुछ अलग सा हो लेकिन अल्लाह की ओर से हो तो कुछ भी असम्भव नहीं, अगर हम उसके इल्म, उसकी प्रकृति और और उसकी नीति पर विश्वास रखते हैं तो हमारे लिए इन समस्याओं का पचाना कोई बड़ी बात नहीं होनी चाहिए। और अगर हम हज़म नहीं कर पा रहे हैं तो हमें अपने ईमान को टटोलना चाहिए कि कहां कमी रह गई कि हमें अल्लाह तआला के चयन पर और उसकी क़ुदरत पर शक हो रहा है।