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source : wilayat.in
रविवार

29 नवंबर 2015

7:44:02 pm
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इमाम हुसैन अ. अहलेसुन्नत की निगाह में

इमाम हुसैन अ. रसूले इस्लाम स.अ. की ज़बानी

हर बाप की इच्छा और तमन्ना होती है कि उसका बेटा ऐसा हो कि उसके व्यक्तित्व का उत्तराधिकारी, उसके संदेश का रक्षक और उसके मिशन को आगे बढ़ाने वाला हो। चूंकि इमाम हुसैन अ. ने अपने आंदोलन और अभूतपूर्व बलिदान द्वारा पैगम्बरे इस्लाम स.अ. के संदेश और मिशन को अमर बना दिया है इसलिए पैगम्बर स.अ. आपके बारे में फ़रमाते हैं, मैं हुसैन से हूँ, यानी मेरी रिसालत, मेरे संदेश व मिशन, हुसैन के कारण बाक़ी बचेगा।

इमाम हुसैन अ. रसूले इस्लाम स.अ. की ज़बानी
1.    बुख़ारी ने लिखा है कि इब्ने उमर से यह पूछा गया कि "मुहर्रम में अगर कोई मक्खी मार डाले तो उसका हुक्म दिया है"? उसने आश्चर्य से कहा कि इराक़ी मक्खी के बारे में सवाल कर रहे हैं हालाँकि उन लोगों ने रसूले इस्लाम स.अ. के नवासे को मार डाला है, पैगम्बरे इस्लाम फ़रमाते हैः हसन अ. और हुसैन अ. इस दुनिया में मेरे दो फूल हैं। (सही बुख़ारी भाग 5 पेज 33 किताबे फ़ज़ाएलुस् सहाबा बाबे मनाक़िबुल हसने वल हुसैन)
2.    हाकिम नैशापूरी ने सलमान के हवाले से बयान किया है कि मैंने पैगम्बरे अकरम स.अ. को कहते हुए सुना कि
(عَنْ سَلْمَانَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ ، قَالَ : سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ : " الْحَسَنُ وَالْحُسَيْنُ ابْنَايَ ، مَنْ أَحَبَّهُمَا أَحَبَّنِي ، وَمَنْ أَحَبَّنِي أَحَبَّهُ اللَّهُ ، وَمَنْ أَحَبَّهُ اللَّهُ أَدْخَلَهُ الْجَنَّةَ ، وَمَنْ أَبْغَضَهُمَا أَبْغَضَنِي ، وَمَنْ أَبْغَضَنِي أَبْغَضَهُ اللَّهُ ، وَمَنْ أَبْغَضَهُ اللَّهُ أَدْخَلَهُ النَّارَ)
हसन और हुसैन मेरे दो बेटे हैं जो उन दोनों से मुहब्बत करे उसने मुझसे प्यार किया और जो मुझसे प्यार करे, अल्लाह उससे मुहब्बत करती है और अल्लाह जिससे प्यार करता है उसे जन्नत में भेज देता है और जो इंसान इन दोनों से दुश्मनी रखे उसने मुझसे दुश्मनी की और जो मुझसे दुश्मनी करे, अल्लाह उससे दुश्मनी करता है और जिससे अल्लाह दुश्मनी करता है उसे जहन्नम में डाल देता है । (मुस्तदरके हाकिम भाग 3 पेज 166)
3.    इसी तरह उन्होंने इब्ने उमर के हवाले से बयान किया है कि रसूले इस्लाम स.अ. ने फ़रमायाः
("الحسن و الحسين سيدا شباب اهل الجنة و ابوهما خير منهما")
"हसन और हुसैन जन्नत के जवानों के सरदार हैं और उनके बाबा उन दोनों से बेहतर और श्रेष्ठ हैं। (पिछला रिफ़रेंस पेज 167)
4.    तिर्मिज़ी ने यूसुफ़ इब्ने इब्राहीम के हवाले से लिखा है कि मैं अनस इब्ने मालिक से सुना है कि पैगम्बर से सवाल किया गया कि ''आपके अहलेबैत में किसे आप सबसे ज्यादा प्यार करते हैं"? हज़रत ने कहा: हसन और हुसैन। आप हमेशा जनाबे फातिमा से कहते थे कि मेरे दोनों बेटों को मेरे पास लाओ आप उन दोनों को करीब बुलाकर उन्हें सूंघते और सीने से लगाते थे। (सुनने तिर्मिज़ी भाग 5 पेज 323 हदीस 3861)
5.    यअली इब्ने मुर्रा कहते हैं कि हम लोग पैगम्बर के साथ एक दावत में शरीक होने के लिए निकले पैग़म्बर स.अ ने रास्ते में देखा कि हुसैन अ. खेल रहे हैं। आपने जल्दी से आगे आए और दोनों हाथों को फैलाकर हुसैन को गोद में लेना चाहा, हुसैन इधर उधर दौड़ रहे थे दोनों के होठों पर मुस्कुराहट थी, आखिरकार आपने हुसैन अ. को अपनी गोद में ले लिया, एक हाथ उनकी ठुड्डी के नीचे और दूसरा उनके सिर पर रखकर उन्हें गले लगाया और चूमा फिर आपने कहा:
(حُسَیْنٌ مِنِّی وَأَنَا مِنْهُ، أَحَبَّ اللهُ مَنْ أَحَبَّهُ، الْحَسَنُ وَالْحُسَیْنُ سِبْطَانِ مِنَ الْأَسْبَاطِ)
हुसैन मुझसे है और मैं उससे हूँ अल्लाह उससे प्यार करता है जो हुसैन को दोस्त रखे, हसन अ. और हुसैन अ. नवासों में से मेरे दो नवासे हैं। (अल-मोअजमुल कबीर भाग 22 पेज 274, कंज़ुल उम्माल भाग 13 पेज 662, तारीख़े दमिश्क़ भाग 14 पेज 150)
(حُسَیْنٌ مِنِّی وَأَنَا مِنْهُ،) की व्याख्या और विवरण के संबंध में यूं बयान किया जाए कि:
पहले वाक्य में इस बात की ओर इशारा है कि हुसैन, रसूले इस्लाम स.अ. से हैं हालांकि आपके बाप अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अ. हैं लेकिन चूंकि आयते मुबाहेला के अनुसार आप रसूल स.अ. के नफ़्स (आत्म) हैं, इसलिए इमाम हुसैन अ. को रसूल स.अ. का बेटा कहा जाता है।
दूसरे हिस्से के बारे में कहा जाए है कि नुबूव्वत के प्रचार के बाद पैगम्बर का जिस्म नहीं, बल्कि आपकी रेसालत और व्यक्तित्व असली चीज़ है, आपका व्यक्तित्व वास्तव में एक प्रतीक और आदर्श है उस वुजूद का जिसमें रेसालत अपने सभी कोणों के साथ ज़ाहिर होती है इसलिए आपकी पाक ज़िंदगी और व्यक्तित्व यानी रेसालत और रेसालत यानी आपका व्यक्तित्व और जीवन।
हर बाप की इच्छा और तमन्ना होती है कि उसका बेटा ऐसा हो कि उसके व्यक्तित्व का उत्तराधिकारी, उसके संदेश का रक्षक और उसके मिशन को आगे बढ़ाने वाला हो। चूंकि इमाम हुसैन अ. ने अपने आंदोलन और अभूतपूर्व बलिदान द्वारा पैगम्बरे इस्लाम स.अ. के संदेश और मिशन को अमर बना दिया है इसलिए पैगम्बर स.अ. आपके बारे में फ़रमाते हैं, मैं हुसैन से हूँ, यानी मेरी रिसालत, मेरे संदेश व मिशन, हुसैन के कारण बाक़ी बचेगा। इसलिए कहा जाता हैः
)الإسلام محمدي الحدوث ، حسيني البقاء(
यानी इस्लाम पैगम्बर द्वारा वुदूज में आया मगर उसको बचाने वाले हुसैन हैं।
6.    यज़ीद इब्ने अबी यज़ीद लिखते हैं कि पैग़म्बरे अकरम स.अ. जनाब आयशा के कमरे से बाहर आए, जब आप जनाबे फातिमा स. के घर के पास से गुज़रे तो आपके कानों में इमाम हुसैन अ. के रोने की आवाज़ आई, आपने फ़रमाया (ऐ फ़ातिमा) क्या तुम्हें नहीं पता कि उसके रोने से मुझे तकलीफ़ होती है। (मजमउज़ ज़वाएद भाग 9 पेज 201)
7.    हाकिम नैशापूरी ने अबू हुरैरा के हवाले से लिखा है कि मैंने देखा कि "रसूले इस्लाम स.अ., हुसैन इब्ने अली अ. को गोद में लिए हुए हैं और कह रहे हैः
(اللهم انی احبه فاحبه)
खुदाया मैं हुसैन से मुहब्बत करता हूँ तू भी उससे मुहब्बत रख। (मुस्तदरके हाकिम भाग 3 पेज 177)