AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : विलायत डाट इन
मंगलवार

25 जून 2013

7:30:00 pm
434093

सुप्रीम लीडर के बयान की रौशनी में

वो शमअ क्या बुझे...

इमाम महदी (हमारी जानें उन पर क़ुर्बान हों) का जन्म दिन दुनिया के सभी पाक व आज़ाद इन्सानों के लिये ईद का दिन है। यह दिन केवल उन लोगों के लिये ख़ुशी का दिन नहीं है जो ज़ालिम हैं या उनके मानने वाले हैं वरना कौन आज़ाद इन्सान है जो दुनिया से अत्याचार, ज़ुल्म और नाइंसाफ़ी के अन्त और अदालत, इन्साफ़ और न्याय की हुकूमत के लिये ख़ुश न हो।

ईद का दिनइमाम महदी (हमारी जानें उन पर क़ुर्बान हों) का जन्म दिन दुनिया के सभी पाक व आज़ाद इन्सानों के लिये ईद का दिन है। यह दिन केवल उन लोगों के लिये ख़ुशी का दिन नहीं है जो ज़ालिम हैं या उनके मानने वाले हैं वरना कौन आज़ाद इन्सान है जो दुनिया से अत्याचार, ज़ुल्म और नाइंसाफ़ी के अन्त और अदालत, इन्साफ़ और न्याय की हुकूमत के लिये ख़ुश न हो। यह महान इन्सान जिनका जन्म 15 शाबान को हुआ उनके बारे में कोई नई बात कहना मेरे बस से बाहर है। उनकी श्रेष्ठता को समझना हमारे बस में नहीं है। वह इन्सान जो इस दुनिया का दिल है, जो ज़मीन पर ख़ुदा का ख़लीफ़ा और उसकी हुज्जत है, जो ख़ुदा के नामों का एक इन्सानी नमूना है और रसूलल्लाह स. और इमाम अली अ. जैसे महान इन्सानों के लिये अल्लाह की हुज्जत हैं उनके लिये कुछ कहना या कुछ बयान करना हम जैसे आम इन्सानों के बस में नहीं है। इसके लिये मासूम सोच, मासूम ज़बान और मासूम किरदार होना चाहिये। हम उनके बारे में बस इतना जानते हैं कि वह अल्लाह का एक वादा हैं। वह नुबूव्वत व रिसालत के ख़ानदान की एक बहुत बड़ी निशानी हैं।’’اَلسَّلَامُ عَلَیکَ اَیُّھَا العَلَمُ المَنصُوب وَالعِلمُ المَصبُوبُ وَالغَوثُ وَالرَّحمَۃُ الوَاسِعَۃُ وَعداً غَیرَ مَکذُوبٍ ‘‘वह अल्लाह का वादा और इन्सानों पर ख़ुदा की एक रहमत हैं। वह ख़ुदा के बहुत ही ख़ास बंदों में से एक हैं। वह बंदों पर अल्लाह के करम का एक नमूना हैं।15 शाबान की ईद और दूसरी ईदों में यह अन्तर है कि दूसरी ईदों का सम्बंध बीती चीज़ों से है और वह हमें कुछ बीती चीज़ों की याद दिलाती हैं लेकिन इस ईद का सम्बंध भविष्य से है, यह हमें एक अच्छे भविष्य की उम्मीद दिलाती है। यही कारण है कि जो मोमिन होते हैं उनके दिल इस दिन ख़ुश होते हैं।इबादत का दिन15 शाबान का दिन एक तो इमामे महदी (अज.) का जन्म दिन और ईद का दिन है इसके अलावा यह दिन इबादत, दुआ, तौबा और अपने गुनाहों की माफ़ी का दिन भी है। यह रात औऱ यह दिन बहुत ही महत्व रखते हैं। इसकी श्रेष्ठता के लिये इतना ही कहना काफ़ी है कि इस दिन को शबे क़द्र के बराबर कहा जाता है। इस दिन कुछ ख़ास दुआएं और ख़ास इबादतें हैं जिन्हें अन्जाम देने की कोशिश करना चाहिये उसे भूलना नहीं चाहिये।इमाम महदी के साथ हमारा सम्बंधअल्लाह के इस वली के साथ तमाम मोमिनीन के दिल का एक गहरा सम्बंध है। हमारा अक़ीदा सिर्फ़ यह नहीं है कि वह आएंगे और ज़ुल्म व अत्याचार से भरी दुनिया में न्याय और इन्साफ़ का झंडा गाड़ेंगे बल्कि हम यह कहते हैं कि उनका जन्म हो चुका है। हमें उनके जन्म दिन, उनके पिता, उनकी माँ, उनके दादा और उनके ख़ानदान, उनके जन्म की सिचुएशन, उनके नज़रों से ग़ाएब होने, उनके क़रीबी साथियों यहाँ तक कि किसी हद तक उनके सामने आने और ज़ुहूर के वक़्त के हालात का भी पता है। हम उनको देखते नहीं हैं लेकिन उनके बारे में जानते हैं और इस दुनिया में उनके होने का यक़ीन रखते हैं क्योंकि अल्लाह की ज़मीन एक दिन के लिये भी उसकी हुज्जत और इमाम के बग़ैर नहीं रह सकती।वह लोग जिनका यह मानना है कि इमाम का जन्म हो चुका है और वह हमारी है चीज़ पर नज़र रखते हैं उनके साथ इमाम का सम्बंध कुछ ख़ास है इस लिये ज़रूरी है कि हम इमाम के साथ बात कर के और उनके साथ मुनाजात कर के इस सम्बंध को मज़बूत करें। इसके लिये हम उन्हीं दुआओं और ज़ियारतों का का सहारा ले सकते हैं जो इमामे ज़माना अज. के लिये बहुत सी किताबों में आई हैं। इमाम के साथ हमारी डायरेक्ट मुलाक़ात तो सम्भव नहीं है लेकिन उनके साथ रूहानी सम्बंध बहुत ज़रूरी है।आज पूरी दुनिया इस बात को समझती और मानती है कि एक महान इन्सान आएगा और इस दुनिया को ज़ुल्म और अनन्याय से बचाएगा। तमाम पैग़म्बरों नें इस बात की ख़बर दी है। अल्लाह तआला नें क़ुरआने करीम में इन्सानों के साथ यह वादा किया है-’’وَ یَضَعُ عَنھُم اِصرَھُم وَ الاَغلَالَ الَّتِی کَانَت عَلَیھِم‘‘(سورہ اعراف۔۱۵۷)इन्सानियत के पैरों में जो ज़न्जीरें पड़ी हैं वह एक दिन ज़रूर टूटेंगी। एक आसमानी, एक ख़ुदाई, ग़ैब की ख़बरें रखने वाला इन्सान अल्लाह की दी हुई ताक़त से एक दिन इन्सानों की यह आरज़ू ज़रूर पूरी करेगा।हम अब उस ज़माने से क़रीब हैं जिस इमाम के सामने आने और ग़ैब के परदे से बाहर आने का ज़माना कहते हैं, क्योंकि अब इन्सान समझने लगा है, सारी दुनिया और सारी इन्सानियत अब चाहती है कि ख़ुदा ऐसे किसी को भेजे जो उन्हें बचाए। ज़ुल्म, अत्याचार और अनन्याय के मारे हुए इन्सानोंकी नज़रें उसे नुक्ते पर टिकी हुई हैं, वह इन्तेज़ार कर रहे हैं कि ख़ुदा का वह ख़ास बंदा कब आएगा ताकि ज़ुल्म के उन महलों को गिरा दे और इन्सानियत पर होने वाले एक एक ज़ुल्म का बदला ले।अब दुश्मन भी इस चीज़ से घबराने लगा है।उसकी कोशिश है कि लोगों के इस अक़ीदे को कमज़ोर कर के ख़त्म कर दे और इन्सानों की इस उम्मीद का गला घोट दे लेकिन लह यह भूल गए हैं कि जिस दिये को ख़ुदा नें जलाया है उसे फूँकों से नहीं बचाया जा सकता।फ़ानूस बन के जिसकी हिफ़ाज़त हवा करेवो शमअ क्या बुझे जिसे रौशन ख़ुदा करे