AhlolBayt News Agency (ABNA)

source :
गुरुवार

9 फ़रवरी 2012

8:30:00 pm
295877

हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम का शुभ जन्म दिवस

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता बड़े ही सुन्दर शब्दों में इस क्रांति को हज़रत मुहम्मद (स) की महानता का प्रदर्शन मानते हुए याद दिलाते हैं कि पैग़म्बर ने मानव को आध्यात्मिक, सामाजिक और बौद्धिक स्वतंत्रता की दिशा दिखाई और उसका मार्ग दर्शन किया तथा सबके लिए इस मार्ग को स्पष्ट किया......

आज सृष्टि के सार्वाधिक तेजस्वी तारे अर्थात हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम का शुभ जन्म दिवस है। आज ईश्वर के उस अन्तिम दूत का शुभ जन्म दिवस है जिसके भीतर समस्त सदगुण अपने चरम रूप में मौजूद थे। उनके भीतर इब्राहीम, नूह, मूसा, ईसा और ईश्वर के समस्त अच्छे एवं निष्ठावान दूतों की विशेषताएं बहुत ही स्पष्ट रूप में पाई जाती थीं।पैग़म्बरे इस्लाम (स) का शुभ जन्म दिवस, लोगों के जीवन में सृष्टि की अद्वितीय सर्वोत्तम कृति की अनंत विभूतियों की याद दिलाता है। यह कहा जा सकता है कि विभूतिपूर्ण इस जन्म का सबसे बड़ा उपहार, मानव समाज को एकेश्वरवाद और न्याय को अर्पित करना है। उन्होंने लोगों के जीवन के आत्मारहित वातावरण को वसंत का पवन बनकर एकेश्वरवाद से सुगन्धित किया और हृदयों को जागरूक बनाया। बहुत ही कम समय में लोगों ने इस बात का आभास कर लिया कि इस महापुरूष के व्यवहार में उनके समाज में प्रचलित बुराइयां नहीं पाई जातीं और ईश्वरीय पहचान तथा सृष्टि की वास्तविकताएं उनके लिए पूर्णतः स्पष्ट हो रही हैं।पवित्र क़ुरआन के अनुसार पैग़म्बर, मानवता के कांधे से भारी बोझ हटाने के लिए इस संसार में आए। उस समय मानवता अज्ञानता, पाश्विकता, जातिवाद और ज़ोर-ज़बरदस्ती जैसी बुराइयों में घिरी हुई थी। वर्तमान समय में यद्यपि हम महान विकास और प्रगति के काल में जीवन व्यतीत कर रहे हैं किंतु साथ ही हम राष्ट्रों पर अत्याचारों और अतिक्रमण के भी साक्षी हैं। मानव जीवन पर भौतिकवाद का थोपा जाना और उससे आध्यात्म को छीन लेना, लोगों के अस्तित्व पर एसे बोझ हैं जिन्हें हल्का करने के लिए ईश्वरीय दूतों की शिक्षाओं की आवश्यकता जिनमें पैग़म्बरे इस्लाम (स) की शिक्षाएं सर्वोपरि हैं पूर्णतः स्पष्ट है। इस्लाम के आरम्भिक काल में पैग़म्बरे इस्लाम के अथक प्रयासों से नवीन मानदंडों एवं नियमों के आधार पर एक महान क्रांति अस्तित्व में आई। मानवीय प्रतिष्ठा, स्वतंत्रता, न्याय, नैतिक परिवर्तन और सामाजिक भेदभाव को दूर करना आदि जैसी बातें पैग़म्बरे इस्लाम (स) की क्रांति का मुख्य केन्द्र थीं। पवित्र नगर मदीने में पैग़म्बरे इस्लाम की दस वर्षीय उपस्थिति, मानव इतिहास में सरकारों के काल का प्रकाशमई काल रहा है। यह वह काल था जिसमें इस्लामी शासन व्यवस्था की आधारशिला रखी गई और इसी काल में हर काल तथा हर स्थान के लिए पैग़म्बरे इस्लाम के माध्यम से धार्मिक सत्ता का उदाहरण प्रस्तुत किया गया। वास्तव में पैग़म्बरे इस्लाम (स) की क्रांति और उनकी नवीन व्यवस्था, परिपूर्णता की इच्छा रखने वालों के लिए एसे मार्ग के समान है जिसपर चलते हुए वह अपने मार्गदर्शन के लिए सर्वोत्तम नियम ढूंढ सकते हैं। हज़रत मुहममद (स) ने स्पष्ट मानदंडों के साथ मदीने में एक आदर्श व्यवस्था का गठन करके उसे मानवता के हवाले किया।पैग़म्बरे इस्लाम (स) की सरकार का प्रमुख स्तंभ ईश्वर के प्रति प्रेम और उसपर भरोसा है जो लोगों के हृदयों में उत्पन्न हुआ और उसने उनके समस्त अस्तित्व को गतिशील बना दिया। पैग़म्बर (स) ने आध्यात्म तथा ईमान की भावना जागृत करके लोगों में चिंतन और आस्था के बीज बोए। स्वभाविक है कि जब मनुष्य ईश्वर के मार्ग को प्राप्त कर ले और यह सीख ले कि ईश्वर के लिए किस प्रकार कार्य किया जाता है तो फिर उसके लिए परिणाम तक पहुंचाना सरल हो जाता है।पैग़म्बर की शासन व्यवस्था का एक अन्य मानदंड न्याय है। न्याय, समस्त ईश्वरीय दूतों की शिक्षाओं का केन्द्र बिंदु रहा है और मानव की प्राचीन अभिलाषा भी। न्याय का अर्थ होता है हक़ को उसके स्वामी को पहुंचाया जाए। पैग़म्बरे इस्लाम ने आजीविका को सुनिश्चित करने के लिए एक शांतिपूर्ण एवं स्वस्थ वातावरण की स्थापना और लोगों के सम्मान को सुरक्षित करने के उद्देश्य से न्याय का ध्वज फहराया। उनके मतानुसार वह समाज जिसमें अत्याचार न हो और निर्बलों में असफलता का आभास न पाया जाता हो वह शांति एवं सुरक्षा प्राप्त कर सकता है।पैग़म्बरे इस्लाम (स) की व्यवस्था में हर चीज़ का आधार ज्ञान, बोध, जानकारी और जागरूकता है। इस व्यवस्था में कोई भी किसी काम को करने या धर्म को स्वीकार करने के लिए विवश नहीं है। उन्होंने ज्ञान अर्जित करने को सभी लोगों के लिए एक दायित्व घोषित किया और अंधविश्वासों तथा निजी स्वार्थों के कारण होने वाले झगड़ों को पूर्ण रूप से अस्वीकार किया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) की राजनैतिक व्यवस्था में समाज के भीतर बंधुत्व, मित्रता समरस्ता एवं सहृदयता का वातावरण पाया जाता था।आत्म सम्मान और गौरव किसी भी स्वतंत्र एवं स्वावलंबी समाज की विशेषताए हैं। पैग़म्बरे इस्लाम की राजनैतिक व्यवस्था, कोई निर्भर या दूसरों का अनुसरण करने वाली व्यवस्था नहीं है बल्कि यह एक एसा प्रतिष्ठित, एवं सशक्त समाज है जो अपने निर्णयों में स्वतंत्र है। यह एसा समाज है जो अपने हितों को देखकर ही उनकी पूर्ति के लिए प्रयास आरंभ करता है और कार्य को आगे बढ़ाता है। कार्य, गतिशीलता और सदैव प्रगति के लिए प्रयासरत रहना, पैग़म्बरे इस्लाम (स) की सरकार के अन्य मानदंड हैं। इस व्यवस्था में ठहराव एवं शिथिलता को कोई स्थान प्राप्त नहीं है। उत्साहपूर्ण कार्य लोगों की गतिशीलता का मूल स्रोत है। युवाओं को संबोधित करते हुए पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि ईश्वर उस युवा से प्रसन्न नहीं होता जो अपनी आयु को नष्ट करता है और बेकार बैठा रहता है।मदीने में दस वर्षीय आवास के दौरान कभी भी यह नहीं देखा गया कि पैग़म्बर लोगों को शिक्षा देने, उनके मार्गदर्शन तथा उनके प्रशिक्षण से कभी भी पीछे हटे हों। पैग़म्बरे इस्लाम एसे महापुरूष थे जिनको समाज के हर वर्ग का भरपूर हार्दिक समर्थन प्राप्त था। वे लोगों के बीच रहा करते थे, उनके साथ विचार-विमर्श करते थे, लोगों की सहायता से ईश्वर के धर्म को विस्तार देते थे और जनता की एकता से शत्रुओं को परास्त किया करते थे। वास्तव में वर्तमान संसार में डेमोक्रेसी अर्थात लोकतंत्र के नाम से जो कुछ जाना जाता है उसे पैग़म्बरे इस्लाम (स) के काल में सर्वोत्तम शैली में लागू किया जा चुका है और समानता तथा मानवाधिकार जैसे विषय, जिन्हें शताब्दियों के पश्चात मानवता पवित्रता की दृष्टि से देख रही है वे, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के समाज में अपने वास्तविक अर्थों में पाए जाते थे।हज़रत मुहम्मद (स) की सत्ता का एक अन्य आयाम अपने लक्ष्य के मार्ग में दृढ़ता एवं प्रतिरोध था। किसी भी राष्ट्र में पाया जाने वाला प्रतिरोध और उसकी दृढ़ता संसार में उसके लिए गौरव का कारण बनती है। मनुष्य का ईमान जितना अधिक सुदृढ़ होगा उतना ही वह दृढ़ संकल्प वाला होगा। पैग़म्बरे इस्लाम का ईमान इतना दृढ एवं सशक्त था कि लोगों के मार्गदर्शन से उन्हें कोई भी चीज़ रोक नहीं सकती थी। उन्हें लोगों की कम संख्या से निराशा नहीं होती थी। बड़ी-बड़ी समस्याएं और शत्रुओं के षडयंत्र एवं उल्लंघन भी पैग़म्बरे इस्लाम के दृढ संकल्प में कभी बाधा नहीं बन सके। आप कहते थे कि ईमानदार व्यक्ति घटनाओं के तूफ़ानों में उस पके हुए गुच्छे की भांति है कि जब हवा चलती है तो वह धरती की ओर झुक जाता है और जब हवा रूक जाती है तो वह पुनः अपनी जगह पहुंच जाता है।पैग़म्बरे इस्लाम की महानता के बारे में पूर्वी मामलों की एक जर्मन विशेषज्ञ श्रीमती Annemarie Schimmel कहती हैं कि मानव के आध्यात्मिक परिवर्तन में पैग़म्बरे इस्लाम (स) की स्पष्ट भूमिका जानी पहचानी है। उन्होंने शरीर के बजाए मनुष्य के आध्यात्म और मन-मस्तिष्क को जीवित किया। उन्होंने लोगों के विचारों को अज्ञानता की दासता से स्वतंत