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सोमवार

27 फ़रवरी 2012

8:30:00 pm
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मुहर्रमः

इमाम हुसैन का आन्दोलन-४

कल शहादत का दिन है। यह ऐसा विषय है जिसने क़ासिम के मन-मस्तिष्क को व्यस्त कर रखा है। वे अपने चचा इमाम हुसैन की ओर देखते हैं। इमाम हुसैन की निगाह जनाबे क़ासिम की निगाह से टकराती है। क़ासिम अपने चचा से पूछते हैं कि चचाजान क्या मैं भी मारा जाऊंगा? इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मुख पर एक विशेष प्रकार का दुख छा जाता है। इमाम जनाबे क़ासिम के शक्तिशाली एवं सुन्दर शरीर को बहुत ध्यान से देखते हैं और उनसे पूछते हैं, मेरे प्रिय पुत्र, तुम्हारी दृष्टि में मृत्यु कैसी है? क़ासिम बहुत ही दृढ़ता से कहते हैं कि मृत्यु मेरी दृष्टि में शहद से भी अधिक मीठी और स्वादिष्ट है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों की विशेषताओं में से एक, उनके प्रति इन लोगों का अथाह प्रेम था। वे सच्चे मन से उस विश्वास के साथ जो उन्हें हुसैन तथा उनके मार्ग के प्रति था, परवाने की भांति उनके इर्दगिर्द एकत्रित हो गए थे और वे अपने जीवन के अन्तिम क्षण तक उनके प्रति निष्ठावान रहे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के प्रति उनके साथियों की निष्ठा सामान्य प्रेम से बहुत आगे थी। यह प्रेम इतना अधिक था कि वे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के लिए माल तो क्या अपनी जान भी न्योछावर करने के लिए तैयार थे। इसके बावजूद कि इमाम हुसैन ने अपने साथियों को, उनके घरों को जाने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया था, किंतु उन्होंने करबला में बने रहने को ही वरीयता दी। उनको यह भलिभांति पता था कि इस मार्ग पर चलने से उन्हें शहादत के अतरिक्त कुछ अन्य प्राप्त होने वाला नहीं है इसके बावजूद उन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सहायता करना नहीं छोड़ी। दूसरी ओर इमाम हुसैन को भी पता था कि इस मार्ग में बहुत सी कठिनाइयां एवं समस्याए हैं इसीलिए वे अपने साथियों को इस कठिन मार्ग पर चलने के लिए मानसिक दृष्टि से तैयार कर रहे थे। इमाम हुसैन के प्रति उनके साथियों की निष्ठा एवं उनका प्रेम, नौ मुहर्रम की रात की उनकी बातों में स्पष्ट है। दूसरे शब्दों में यह प्रेम/ भविष्य निर्धारण करने वाली इस रात में अपने चरम को पहुंचते हुए आशूर अर्थात दस मुहर्रम को चरम के शिखर पर जा पहुंचा तथा कठिन परीक्षा में यह बात सिद्ध भी हुई है। नौ मुहर्रम की रात को ज़ुहैर बिन क़ैन इमाम से कहते हैं, यदि मैं मार दिया जाऊं, उसके बाद जीवित किया जाऊं उसके बाद फिर मारा जाऊं और फिर जीवित किया जाऊं इस प्रकार यह क्रम हज़ार बार ऐसे ही चले उसके बावजूद मैं आपका समर्थन करना नहीं छोड़ूगा। इसके पश्चात इमाम के कुछ साथियों ने एक साथ मिलकर उनसे कहा, ईश्वर की सौगंध हम आपसे अलग नहीं होंगे, हमारे जीवन आप पर न्योछावर। यदि हम मारे जाते हैं तो हमने अपना वचन पूरा किया है।निःसन्देह, यह वक्तव्य प्रेम से भरे हृदयों से निकल रहे थे। इमाम हुसैन के साथियों ने कठिनतम परिस्थियों में भी उनका साथ नहीं छोड़ा और यहां तक कि अपनी आयु के अन्तिम क्षणों में भी वे इमाम के लिए चिन्तित और परेशान थे। उनके कुछ साथियों ने स्वयं को इमाम की ओर आने वाले तीरों के लिए ढाल बना दिया था ताकि ऐसा न हो कि जब तक वे जीवित हैं उस समय तक इमाम हुसैन को कोई तीर आकर न लगें। एक विख्यात इतिहासकार तबरी लिखते हैं कि जिस समय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों ने देखा कि शत्रुओं की संख्या बढ़ गई है तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के जीवन की सुरक्षा के लिए वे एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने लगे। इमाम हुसैन के प्रति उनके साथियों का प्रेम केवल भावनात्मक प्रेम नहीं था बल्कि यह बहुत ही सुदृढ़ था जिसकी जड़ें ईश्वरीय विचारधारा में निहित थीं। इमाम के निष्ठावान साथी, उनकी बातों और उनके व्यवहार को अत्याचार रूपी अंधकार में प्रकाश समझते थे और इसी आधार पर उन्होंने इमाम का अनुसरण करते हुए स्वयं को वास्तविक्ता के राजमार्ग पर पहुंचा दिया था। एक ऐसे समय में कि जब इस्लाम की जानी-मानी हस्तियां और विख्यात लोग इमाम हुसैन के मार्ग के सही होने को शंका की दृष्टि से देख रहे थे, हुसैन इब्ने अली के निष्ठावान साथी सच के मार्ग के सह हर प्रकार के बलिदान के लिए तैयार थे ताकि ईश्वरीय तथा मानवीय मूल्य बाक़ी रह सकें। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने भी अपने साथियों की विशेषताओं की प्रशंसा करते हुए कहा, मुझको तुमसे अच्छे और वफ़ादार साथियों के बारे में पता नहीं है और अपने परिवार से अच्छे परिवार को मैं नहीं पहचानता। ईश्वर तुमको अच्छा पारितोषिक दे।इमाम के साथियों ने सच्चाई की रक्षा के मार्ग में अपने इमाम को पीठ नहीं दिखाई और अपनी निष्ठा से मर्यादापूर्ण व्यवहार के सुन्दर दृष्य चित्रित किये। कार्यक्रम में इमाम के मार्ग से प्रेम करने वाले एक किशोर की कहानी सुनेंगे। यह किशोर मदीने से इमाम के साथ था। वह कोई और नहीं बल्कि इमाम हुसैन के भतीजे क़ासिम इब्ने हसन थे। उसने जीवन के मात्र १४ बसंत ही देखे थे। क़ासिम को अपने चचा से बहुत लगाव था। उनके पिता ने अपनी वसीयत मे इमाम हुसैन से कहा था कि वे उनके बच्चों की देखभाल का दायित्व संभालें। हुसैन इब्ने अली भी जो प्रेम का प्रतीक और पवित्रता एवं कृपा का स्रोत थे, क़ासिम को भी अपने पुत्र की ही भांति समझते थे ताकि पिता के न होने का आभास उन्हें दुखी न करे। अपने चचा हुसैन इब्ने अली के साथ हज़रत क़ासिम ने अपने जीवन के बहुत अच्छे दिन गुज़ारे थे। उन्होंने, जिनमें अपने पिता के सदगुण मौजूद थे, बहुत सी नैतिक विशेषताओं को अपने चचा से सीखा था।वह दिन जब उनके चचा ने उनसे कहा था कि बेटा क़ासिम, तैयार रहो। मदीने में अब शांति एवं सुरक्षा नहीं है हम मक्के पलायन कर जाएंगे। जनाबे क़ासिम के मन में एक विशेष प्रकार का उत्साह उत्पन्न हो गया था। वे एक क्षण के लिए भी अपने चचा से अलग नहीं होते थे। जब यात्रा का समय आ पहुंचा तो क़ाफ़िला निकला और उस क़ाफ़िले में हज़रत क़ासिम एक तारे की भांति चमक रहे थे। यात्रा के दौरान वे कहीं पर भी अपने चचा से अलग नहीं हुए थे। पूरे रास्ते के दौरान वे अपने चाचा की बातें सुनते थे। उन्होंने अपने चचा को यह कहते हुए सुना था कि हे लोगो, होशियार रहो क्योंकि बनी उमैय्या, शैतान के आज्ञापालन हैं। इन्होंने ईश्वरीय नियमों का उल्लंघन किया है। ईश्वर के हराम को हलाल और हलाल को हराम कर दिया है। दूसरों से अधिक मैंअब अगर तुम वचनों को तोड़ो तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि इससे पूर्व भी तुम मेरे भाई और पिता के साथ ऐसा ही कर चुके हो।इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की (मज़लूमियत) ने जनाबे क़ासिम के मन को दुखी कर रही थी। हे ईश्वर क्यों पैग़म्बरे इस्लाम के नवासे की आवाज़ इस जाति के हृदय को क्यों नहीं हिलाती? नौ मुहर्रम की रात है। इमाम के साथी, परवाने की भांति इमाम के चारों ओर एकत्रित हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन की इस अन्तिम रात को ईश्वर की प्रार्थना के लिए चुना है और अपने साथियों को मार्ग के चयन हेतु स्वतंत्र छोड़ दिया है। क्योंकि शहादत वह क्षेत्र है जिसमें क़दम रखने के लिए शुद्ध विचारों की आवश्यकता होती है। अंततः हुसैन इब्ने अली स्पष्ट शब्दों में आने वाले कल को चित्रित करते हैं ताकि जो चाहे चला जाए और जिसने आत्ममंथन नहीं किया है वह रात को बहाना बनाकर जा सकता है। इमाम दुसरी बार कहते हैं कि कल शहादत का दिन है। एक प्रश्न ने क़ासिम के हृदय को स्वयं में व्यस्त कर रखा है। वे अपने चचा हुसैन की ओर देखते हैं। इमाम हुसैन और जनाबे क़ासिम की निगाहें मिलती हैं और क़ासिम अपना प्रश्न उनसे करते हैं। वे पूछते हैं कि चचाजान क्या मैं भी कल क़त्ल कर दिया जाऊंगा? इमाम हुसैन के मुख पर एक विशेष प्रकार की चिंता छा जाती है। वे जनाबे क़ासिम के हष्ट-पुष्ट शरीर और उनकी सुन्दरता पर