AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : CRI ONLINE
शनिवार

4 जून 2011

7:30:00 pm
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चीन और भारत दोनों को मिलकर अफ्रीका की सहायता करनी चाहिए

भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की अफ्रीका यात्रा अभी अभी समाप्त हुई है, उन की मौजूदा यात्रा के दौरान भारतीय मीडिया में अफ्रीका को सहायता देने को लेकर चीन से तुलना करने की एक लहर दौड़ी, कुछ मीडिया संस्थाओं ने चीन पर यह आरोप लगाया है कि अफ्रीका को सहायता देने में चीन का अपना स्वार्थ है, जबकि भारत की सहायता निस्वार्थ है। इस पर विश्लेषकों का कहना है कि भारत की इन मीडिया की यह समीक्षा चीन भारत संबंधों को नुकसान पहुंचाने के साथ साथ अफ्रीका को मदद देने के लिए भी अहितकारी सिद्ध होगी। असल में अफ्रीका को सहायता देने के क्षेत्र में चीन और भारत को सहयोग करना चाहिए

भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की अफ्रीका यात्रा अभी अभी समाप्त हुई है, उन की मौजूदा यात्रा के दौरान भारतीय मीडिया में अफ्रीका को सहायता देने को लेकर चीन से तुलना करने की एक लहर दौड़ी, कुछ मीडिया संस्थाओं ने चीन पर यह आरोप लगाया है कि अफ्रीका को सहायता देने में चीन का अपना स्वार्थ है, जबकि भारत की सहायता निस्वार्थ है। इस पर विश्लेषकों का कहना है कि भारत की इन मीडिया की यह समीक्षा चीन भारत संबंधों को नुकसान पहुंचाने के साथ साथ अफ्रीका को मदद देने के लिए भी अहितकारी सिद्ध होगी। असल में अफ्रीका को सहायता देने के क्षेत्र में चीन और भारत को सहयोग करना चाहिए। अफ्रीका को सहायता देने के लिए चीन और भारत की अपनी अपनी विशेषताएं होती हैं। चीन अपने देश के हितों, वैदेशिक आर्थिक व व्यापारिक विकास की मांगों के मुताबिक अफ्रीका को सहायता देता है, जिस में समानता, व्यवहारिकता, आपसी लाभ और साझा विकास का सिद्धांत लागू है, ताकि चीन और अफ्रीकी देशों को दोनों उपलब्धियां हासिल हो सके। वास्तव में चीन सहायता देने में सहायता मुद्दों के व्यवहारिक लाभ और अफ्रीकी देशों की आर्थिक शक्तियों की मजबूती पर ध्यान देता है और आधारभूत ढांचों के विकास में अफ्रीकी देशों को ठोस मदद देता है। उदाहरणार्थ, चीन ने तांजानिया-जाम्बिया रेल लाइन के निर्माण और सूडान के तेल क्षेत्र के दोहन में सहायता दी है, जिन्हें इन तीनों देशों की जनता का समर्थन मिला है। वर्तमान में चीन और अफ्रीकी देशों के बीच व्यापार रकम खरब अमेरिकी डालर से अधिक पहुंची है और चीनी और अफ्रीकी नेताओं के बीच आवाजाही भी लगातार जारी रही। उधर, भारत अफ्रीका को सहायता देने में अपनी सोफ्ट शक्ति के इस्तेमाल पर महत्व देता है और अफ्रीकी देशों के साथ लोकतांत्रिक कड़ी मजबूत करने पर जोर देता है तथा सहायता में मानवता का प्रचार प्रसार करता है, अफ्रीका को पूंजीगत सहायता देने में भारत अफ्रीका के प्राकृतिक संसाधनों के मूल्य वर्धन पर ध्यान देता है, अफ्रीकी लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करता है एवं अफ्रीकी प्रतिभाओं के प्रशिक्षण को सेवा प्रदान करता है। कहा जा सकता है कि भारत सांस्कृतिक निर्यात पर महत्व देता है, इसलिए वहां भारत का सांस्कृतिक प्रभाव चीन से कहीं अधिक बड़ा है। स्पष्ट है कि अफ्रीका को सहायता देने के मसले पर चीन और भारत के लिए यह सवाल नहीं उठता है कि कौन सही है, कौन गलत। कुछ भारतीय मीडिया संस्थाएं कई मामलों में चीन से तुलना करना चाहती हैं, वे यह साबित करने की अपनी कोशिश कभी भी नहीं छोड़ती है कि अफ्रीका को सहायता देने के लिए भारत का फार्मूला अच्छा है. वे चीन पर यह कलंक लगाने से भी बाज नहीं रहती है कि चीन पश्चिमी देशों की भांति अफ्रीका में उपनिवेशवादी लूट-खसोट करता है। इन मीडिया की इस प्रकार की समीक्षा से यह व्यक्त हो गया है कि भारत में कुछ मनोवैज्ञानिक असंतुलन उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार की असंतुलित मनोभावना दो पहलुओं में देखी जा सकती है। एक, पिछले 30 सालों में सुधार व खुले द्वार की नीति लागू होने के बाद चीन की राष्ट्रीय शक्ति बहुत ही बढ़ गयी और अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र में चीन का स्थान अभूतपूर्व ऊंचा बढ़ा, इस तथ्य को भारत के कुछ लोग सचे दिल में स्वीकार करने को तैयार नहीं हुए। दूसरा, भारत के कुछ लोग हमेशा चीन को अपनी निहित रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी समझते आए हैं और हर क्षेत्र में चीन से चौकस रहते हैं और हर क्षेत्र में चीन से आगे बढ़ने का ख्वाब देखते रहते हैं, यहां तक कि अफ्रीका को सहायता देने के सवाल पर भी वे अपनी इस जिद पर तुले रहते हैं। वर्ष 2006 में चीन अफ्रीका सहयोग मंच का पेइचिंग शिखर सम्मेलन सफलतापूर्वक आयोजित हुआ, इस बात से भारत चौकन्न हुआ और माना कि अफ्रीका को सहायता देने में भारत महज मौखिक व नैतिक तरीके पर नहीं ठहर सकेंगे और सिर्फ सोफ्टशक्ति पर निर्भर रहना भी काफी नहीं है। अतः 2007 से भारत ने चीन से आगे बढ़ने की अपनी कोशिश शुरू की। वर्तमान में भारत अफ्रीका को सहायता देने में चीन से सीखते हुए बड़े पैमाने पर कर्ज देने तथा पूंजीगत निवेश करने लगा। उल्लेखनीय है कि नयी स्थिति में भारत अफ्रीका को अपनी सहायता में इजाफा करने जा रहा है, वह भी अपने हित से प्रेरित हुआ है। वास्तव में भारत अफ्रीका से अपने जरूरी ऊर्जा और संसाधन प्राप्त करना चाहता है, साथ ही अफ्रीका को सहायता देने की जगह राजनीतिक रिर्टन लेना चाहता है यानिकी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य के सवाल पर भारत अफ्रीकी देशों के वोट चाहता है। किन्तु गौरतलब यह है कि अधिकांश अफ्रीकी देश नहीं चाहते कि वे भारत और चीन दोनों में से किसी एक को चुन लें। वे समझते हैं कि अफ्रीका को चीन और भारत की सहायता में कोई सही और कोई गलत होने का सवाल ही नहीं मौजूद है. इन दोनों देशों की सहायता से अफ्रीका को प्रेरक शक्ति मिलेगी। इस के अलावा भारत को भी साफ साफ जानना चाहिए कि अफ्रीका में चीन और भारत दोनों का प्रभाव पश्चिमी देशों से कमजोर है और दोनों की शक्ति भी पश्चिमी देशों से श्रेष्ठ नहीं है। दोनों के लिए सहयोग फायदामंद होगा और परस्पर संघर्ष से दोनों को हानि लगेगी। चीन और भारत ने सूडान में तेल संसाधन के विकास में सफल सहयोग किया था, उसी तरह दोनों को एक दूसरे से सीखते हुए एक साथ मिल कर अफ्रीका को सहायता देना जारी रखना चाहिए।