AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : ابنا
गुरुवार

2 मई 2024

5:22:35 am
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अहले बैत की लॉजिक ज़िम्मेदारी लेना और दुनिया में न्याय स्थापित करना है

बहुत से लोग हैं जो क़ुरआन पढ़ते हैं, अल्लाह अल्लाह करते हैं लेकिन लोगों के सर काटते हैं। याद रखिये इन लोगों का दीन से कोई वास्ता नहीं है। यह लोग सम्राज्यवाद और दुश्मन ताक़तों के एजेंट और पालतू हैं जिनका मक़सद मुसलमानों के बीच मतभेद और नफरत फैलाना है। एक सच्चा मुसलमान न केवल अहिंसक होता है, बल्कि हिंसा से भी लड़ता है।

ब्राज़ील के मुसलमानों के निमंत्रण पर "इस्लाम संवाद और ज़िंदगी का धर्म" शीर्षक के साथ आयोजित होने वाली कॉन्फ्रेंस में भाग लेने के लिए इस देश पहुंचे अहले बैत वर्ल्ड इस्लामिक असेम्बली के सेक्रेटरी जनरल आयतुल्लाह रज़ा रमज़ानी ने साओ पाउलो के इमाम बारगाह मोहम्मद रसूलल्लाह में आयोजित एक सेमीनार को संबोधित करते हुए कहा कि हम अहले -बैत (अ.स. ) के अनुयायियों का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य यह है कि हम अपने व्यवहार, कार्यों और बातों से अपने मज़हब और दीन का परिचय दें, हमारा अमल ऐसा हो कि कहा जा जाए कि हां यह व्यक्ति अहले बैत अ.स. के मकतब का तरबियत याफ्ता है। उन्होंने कहा कि दीन के दुश्मनों ने हमेशा दीन का चेहरा बिगाड़ने और उसके बदलाव की कोशिश की लेकन अब एक सुनहरा अवसर है कि वह दीन की तब्लीग़ कर सकें।

ईरान की इस्लामी क्रांति से पहले सिद्धांतकार कहा करते थे कि अब दुनिया में कोई धार्मिक क्रांति नहीं होगी, लेकिन उसी युग में एक धार्मिक क्रांति हुई जिसने समाज को धर्म की तरफ फिर से आमंत्रित किया और धर्म को सामाजिक क्षेत्र में प्रस्तुत किया। अब विश्व के सर्वाधिक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक केन्द्र धर्म का पुनः परीक्षण कर रहे हैं।

दीन कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे हम आसानी से नज़रअंदाज़ कर सकें। धर्म लोगों को जीवन का पाठ पढ़ाता है। कुरान सभी इंसानों को संबोधित करता है कि यदि आप ईश्वर और उसके दूत की बातों को सुनेंगे, तो आप वास्तविक जीवन तक पहुँच जायेंगे।

अहले-बैत (अ.स.) के अनुसार, इस्लाम एक व्यापक, सटीक और गहरा धर्म है, और इस धर्म में केवल नमाज़ और रोज़ा ही नहीं है; बल्कि यह सामाजिक क्षेत्रों के लिए भी है और समाज में होने वाले अत्याचारों पर प्रतिक्रिया भी व्यक्त करता है। इसलिए, इस्लाम के अनुसार, यदि समाज में कोई अन्याय होता है, तो एक मुसलमान को ज़ालिम के प्रति गैरजिम्मेदार महसूस नहीं करना चाहिए।

अहले-बैत ( अ.स.) ने धर्म के बारे में सबसे व्यापक परिभाषा की है। दीनदारी के लिए दो अहम् कदम उठाने ज़रूरी हैं; पहले हमें धर्म को जानना होगा अर्थात दीन शनासी, और फिर दीन पर ईमान लाना। दीन शनासी और दीन पर ईमान और उसको क़ुबूल करने के बाद ही इंसान दीनदार हो सकता है।

आयतुल्लाह रमजानी ने मोमिन और दीनदार की ज़िन्दगी का बयान करते हुए कहा कि दीनी ज़िंदगी ग़ैर धार्मिक ज़िंदगी से अलग है। इमाम रज़ा अ.स. ने एक रिवायत में ईमानदाराना ज़िंदगी की विशेषताएं बयान की हैं। इमाम रज़ा फरमाते हैं मोमिन उस वक़्त तक मोमिन नहीं होता जब तक उस में तीन खूबियां न पायी जाएं। एक आदत और खूबी उसके रब की, दूसरी खूबी उसके नबी की , तीसरी खूबी अल्लाह के वाली के । उसके रब की सिफ़त यह है कि किसी के राज़ को छुपाए। उसके रसूल की खूबी यह है कि लोगों के साथ नरमी से पेश आए और अल्लाह के वाली की यह खूबी कि मुश्किलात में सब्र करे।

वर्तमान युग में भी बहुत से लोग हैं जो क़ुरआन पढ़ते हैं, अल्लाह अल्लाह करते हैं लेकिन लोगों के सर काटते हैं। याद रखिये इन लोगों का दीन से कोई वास्ता नहीं है। यह लोग सम्राज्यवाद और दुश्मन ताक़तों के एजेंट और पालतू हैं जिनका मक़सद मुसलमानों के बीच मतभेद और नफरत फैलाना है। एक सच्चा मुसलमान न केवल अहिंसक होता है, बल्कि हिंसा से भी लड़ता है।

यदि हम अल्लाह के वालियों के साथ रहना चाहते हैं, तो हमें धैर्यवान और सावधान रहना चाहिए। शिया मत लॉजिक और आध्यात्मिकता का मज़हब है। अहले-बैत (अस) का मक़सद और मत पूरी दुनिया में जिम्मेदारी और न्याय की स्थापना है। किसी पर अत्याचार न हो और सभी लोगों, समाजों और राष्ट्रों के लिए न्याय और शांति हो। इमाम खुमैनी कहा करते थे कि मैं आपकी महिमा, आपकी महानता आपके गौरव और सम्मान को आपको लौटाने के लिए लड़ रहा हूं।