AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : ابنا
बुधवार

1 मई 2024

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महिला अधिकारों का सच्चा रक्षक है इस्लाम : आयतुल्लाह रमज़ानी

पश्चिमी जगत दावा करता है कि हमने मानवाधिकार की बुनियाद रखी जबकि वहां मानवाधिकार का इतिहास 100 साल से ज़्यादा पुराना नहीं है जबकि इमाम सज्जाद अस ने 1250 साल पहले ही अधिकारों पर एक ग्रंथ " "रिसाला-ए- हुक़ूक़" लिखा। रसूले इस्लाम और इमाम अली की हदीसें है जो महिलाओं के अधिकारों को बयान करने के लिए काफी है।

ब्राज़ील के मुसलमानों की दावत पर इस देश की यात्रा पर पहुंचे अहले बैत वर्ल्ड इस्लामिक असेंबली के सेक्रेटरी जनरल आयतुल्लाह रज़ा रमज़ानी ने लैटिन अमेरिकी मुस्लिम महिलाओं से मुलाक़ात करते हुए कहा कि अल्लाह ने महिलाओं की पहचान, सम्मान और गरिमा को इतना महत्त्व दिया है किकुरान में कुछ महिलाओं को रोल मॉडल के रूप में पेश किया गया है।

महिलाओं की विशिष्ट विशेषताओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा एक महिला में व्यक्तिगत और सामूहिक क्षमताएं होती हैं और इन व्यक्तिगत क्षमताओं में से एक तरबियत और परवरिश का माद्दा है। औरत में जो भावना और जज़्बा होता है वह अल्लाह की रहमत और उल्फत का उदाहरण है, हालाँकि अल्लाह का अपने बंदों से प्यार, माँ के प्यार से हजारों गुना ज़्यादा होता है।

एक परिवार में तरबियत की ज़िम्मेदारी माँ को दी गई है। परिवार में शैक्षिक भूमिका महिलाओं को दी गई है और माँ की यह भूमिका बहुत प्रमुख है और यह मामले महिलाओं के व्यक्तिगत सशक्तिकरण तक पलटते हैं।

पश्चिमी दुनिया में फेमिनिज़्म के नाम पर महिलाओं के अधिकारों का दावा सिर्फ एक सदी पुराण है लेकिन वहां अब भी महिलाओं को सिर्फ एक उपभोग की वस्तु के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। पश्चिमी जगत दावा करता है कि हमने मानवाधिकार की बुनियाद रखी जबकि वहां मानवाधिकार का इतिहास 100 साल से ज़्यादा पुराना नहीं है जबकि इमाम सज्जाद अस ने 1250 साल पहले ही अधिकारों पर एक ग्रंथ " "रिसाला-ए- हुक़ूक़" लिखा। रसूले इस्लाम और इमाम अली की हदीसें है जो महिलाओं के अधिकारों को बयान करने के लिए काफी है।

इस्लाम ने महिलाओं को जो सम्मान, अधिकार और पहचान दी है, उसे पश्चिमी समाज और विश्व समुदाय को बताने की ज़रूरत है।

आयतुल्लाह रमजानी ने कहा कि महिलाएँ एक बहुत बड़ी सामाजिक पूँजी हैं, बेशक, पूरे इतिहास में महिलाओं पर अलग-अलग युग गुज़रे, एक युग वह भी था जब महिलाओं को गुमनाम प्राणियों के रूप में पेश किया गया और हालात यहाँ तक पहुँच गए कि बेटी का होना अपमानजनक माना जाता था! यहाँ रसूले इस्लाम ने सबसे बड़े महिला अधिकारों के रक्षक के रूप में मोर्चा संभाला बल्कि इस राह में क़ुर्बानियां भी दीं और दुश्मनों के ताने भी सुने और अब्तर जैसे टाइटल भी झेले।

उन्होंने कहा कि एक औरत समाज और परिवार को शांत कर सकती है और मानव जाति की तरबियत कर सकती है, वह घर पर इस मुख्य भूमिका को अच्छी तरह से निभा सकती है। एक औरत ज़रूरी नहीं कि सिर्फ घर की चार दीवारी में रह जाए बल्कि वह एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में नस्लों की तरबियत के साथ साथ सांस्कृतिक और राजनीतिक मैदान में भी प्रमुख भूमिका निभा सकती है। एक महला इन मैदानों में तरक़्क़ी के नए आयाम तय कर सकती है। बल्कि कुछ तो पुरुषों से भी आगे निकल सकती हैं। हदीसों में है कि इमामे ज़माना के साथियों में महिलाऐं भी है। पैगंबरे इस्लाम ने फ़रमाया है, महिलाओं को पीटना नीच लोगों और नीच शौहरों का काम है।

अंत में, अहले-बैत (अस) के महासचिव ने कहा "मेरा सुझाव है कि आप महिलाओं के संबंध में इमाम खुमैनी और आयतुल्लाह खामेनेई के विचारों को पढ़ें। इमाम ख़ुमैनी कहा करते थे: हमें कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ सौंपी गई हैं। हमें अपना कर्तव्य ठीक से निभाना चाहिए क्योंकि हमारा मूल्यांकन इतिहास करेगा।