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source : ابنا
सोमवार

22 अप्रैल 2024

6:19:58 am
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दर्से अख़लाक़

समाज और फ़ुज़ूलखर्ची का रोग

इसका मतलब यह नहीं कि हम अमीरुल मोमेनीन की तरह ज़ाहिद बन जाएं, क्योंकि न तो हम बन सकते हैं और न ही हमसे इसकी मांग की गई है! लेकिन हमें उनके बताए रास्ते पर चलना चाहिए।


हमारे समाज को अमीरुल मोमिनीन (अ.स) के ज़ोहद और तपस्या की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं कि हम अमीरुल मोमेनीन की तरह ज़ाहिद बन जाएं। क्योंकि न तो हम बन सकते हैं और न ही हमसे इसकी मांग की गई है, लेकिन हमें उनके बताए रास्ते पर चलना चाहिए। यानी फिजूलखर्ची और एक-दूसरे से होड़ करने से बचना चाहिए। ऐसा होगा तो हम अमीरुल मोमिनीन के शिया कहलाएंगे। इरशाद हुआ है कि : "हमारे लिए ज़ीनत का कारण बनो।" हमारे लिए सुशोभित होने और ज़ीनत बनने का क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि हमारा और आपका अमल ऐसा होना चाहिए कि जब कोई आपको देखे तो कहे: वाह, अमीरुल मोमिनीन के शिया कितने अच्छे हैं!

 जो रिश्वत लेता है वह ज़ीनत का कारण नहीं बल्कि ऐब और बुराई का कारण है। वह जो बैतुल-माल से अधिक धन चाहता है और अधिक लेता है, यह शिया के लिए दोष और ऐब है। जो व्यक्ति बुराई की ओर से आंखें मूंद लेता है और समाज को हिदायत और रहनुमाई की ओर ले जाने की जिम्मेदारी का एहसास नहीं रखता, वह इस्लामी व्यवस्था और इस्लामी समाज के लिए दोष है। जो व्यक्ति अपने निजी जीवन में फिजूलखर्ची करता है यह ऐब और दोष है।

अफ़सोस की बात है कि हम फिजूलखर्ची में फंस गए हैं। हम वर्षों से इस बारे में लगातार नसीहत करते आ रहे हैं, खुद को, जनता को और दूसरों को समान रूप से समझाते रहे हैं और बार-बार कहते रहे हैं, हमें आगे बढ़ना चाहिए और समाज से फुजूल खर्ची को कम करना चाहिए। इमाम ख़ामेनेई 21 सितंबर 2016