امام على عليه السلام
اِحبِس لِسانَكَ قَبلَ أَن يُطيلَ حَبسَكَ وَ يُردىَ نَفسَكَ فَلا شَىءَ أَولى بِطولِ سَجنٍ مِن لِسانٍ يَعدِلُ عَنِ الصَّوابِ و يَتَسَرَّعُ إِلَى الجَوابِ.
इमाम अली (अ.स)
अपनी ज़बान को क़ैद कर दो इस से पहले कि यह तुम्हे एक लम्बी क़ैद मे डाल दे क्योकि कोई चीज़ भी उस ज़बान से ज़्यादा क़ैद होने की हक़दार नही है कि जो सही रास्ते को छोड़ दे और हमेशा जवाब देने को बेताब रहती है।
(गुरारुल हिकम, पेज न. 214, हदीस न. 4180)