अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज को ज़ोर का झटका देते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन भंग करने का निर्णय लिया था जिस पर अब कोर्ट ने भी मुहर लगा दी है। शैक्षिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 1989 में इस संस्था की स्थापना की गई थी। इस संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट ने मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन को भंग करने के केंद्र सरकार के फैसले को यह कहते हुए बरकरार रखा कि सरकार उनके लिए बहुत सी योजनाए चला रही है, ऐसे में सरकार के फैसले पर सवाल उठाना ठीक नहीं है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अध्यक्षता वाली पीठ ने जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के जरिए अल्पसंख्यक समुदायों के लिए कई कल्याण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि इस संस्थान को भंग करने की वजह से अल्पसंख्यक समुदाय के विकास में बाधा पैदा हो रही है।