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मंगलवार

9 अप्रैल 2024

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ईदुल फ़ितर ईद का दिन या अहलेबैत अ.स. के ग़म का? 2

शिया दुश्मन ताक़तों की भरपूर कोशिश है कि वह शियों के बीच ऐसी चीज़ें दाख़िल करने की कोशिश करें जिससे आम मुसलमानों की निगाह में शियों का इस्लाम और ईमान शक की निगाह से देखा जाने लगे। ईद के दिन अहलेबैत अ.स. की मुसीबत को याद कर के आंसू बहाने से किसी ने नहीं रोका लेकिन ईद के दिन को ग़म का दिन बताना अहलेबैत अ.स. की सीरत के ख़िलाफ़ है...

सवाल, क्या ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा के दिन अहलेबैत अ.स. का ग़म मनाना सही है?

इस सवाल के जवाब में हम इस लेख के पहले हिस्से में कुछ बातें पेश कर चुके हैं। हक़ीक़त में यह सवाल शियों के बीच कुछ आम लोगों की जानबूझ कर या अनजाने में टेढ़ी फ़िक्र की वजह से सामने आया है जो मासूमीन अ.स. के दिनों को भी अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ ढ़ालने की कोशिश करते हुए ईद के दिनों में काले कपड़े पहनने, मजलिस व मातम करने और सोग मनाने का प्रचार करते हैं।

हमने बताया कि 13 रजब (इमाम अली अ.स. की विलादत के दिन) इमाम अली नक़ी अ.स. का दसवां और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. का चेहलुम है जबकि 18 ज़िलहिज्जा (ईदे ग़दीर) को इमाम बाक़िर अ.स. और हज़रत मुस्लिम इब्ने अक़ील का दसवां है। तो क्या ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा को ग़म और सोग मनाने वाले लोग ऊपर दी गई ख़ुशी के दिनों में सोग मनाएंगे?

4- इस बात में कोई शक नहीं कि इमाम अली अ.स. की शहादत सन् 40 हिजरी में हुई तो उस साल की ईद को अहले बैत अ.स. ने ग़म में गुज़ारा होगा लेकिन उसके बाद मासूमीन अ.स. ने हर ईद को ईद के दिन के तौर पर ही मनाया, और अपने चाहने वालों को भी ईद मनाने का हुक्म दिया, और कभी भी शियों को नए कपड़े पहनने, ख़ुशबू लगाने और ईद की मुबारकबाद देने जैसी चीज़ों से नहीं मना किया बल्कि ईद के दिन इन कामों को करने पर ज़ोर दिया।

इमाम अली अ.स. ने ईदुल फ़ितर को ईद का दिन बताते हुए फ़रमाया कि बेशक यह ईद उसके लिए है जिसके रोज़े और इबादतें क़ुबूल हो गईं। (नहजुल बलाग़ा, पेज 605, वसाएलुश-शिया, जिल्द 15, पेज 308)

नहजुल बलाग़ा में मौजूद इमाम अली अ.स. के इस साफ़ शब्दों में मौजूद इरशाद के बाद किसकी हिम्मत है कि वह ईद के दिन को ग़म और सोग का दिन क़रार दे सके?

ईद के दिन को ग़म का दिन बताने वाले जाहिल और कट्टर लोगों को सहीफ़-ए-सज्जादिया में ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा के दिन पढ़ी जाने वाली इमाम सज्जाद अ.स. की दुआ क्यों नहीं दिखाई देती जिसमें इमाम अ.स. ने फ़रमाया ख़ुदाया यह दिन मुबारक और बरकत वाला है। (सहीफ़-ए-सज्जादिया, ईदुल अज़हा के दिन की दुआ)

इसी तरह इमाम सज्जाद अ.स. ने माहे रमज़ान को रुख़सत करते हुए ईदुल फ़ितर के दिन के बारे में फ़रमाया, ख़ुदाया हम तेरी बारगाह में ईदुल फ़ितर के दिन तौबा करते हैं जिसे तूने मुसलमानों के लिए ईद और खुशी का दिन क़रार दिया। (बिहारुल अनवार, जिल्द 95, पेज 176)

इमाम सज्जाद अ.स. की यह दुआ सुनने के बाद कौन सा शिया हो सकता है जो ईदुल फ़ितर के दिन को सोग का दिन कहे?

ऐसे लोगों को इमाम सादिक़ अ.स. से नक़्ल होने वाली वह दुआ क्यों नज़र नहीं आती जिसे ईद की नमाज़ के क़ुनूत में पढ़ा जाता है और जिसमें इमाम अ.स. ने फ़रमाया, ख़ुदाया मैं तुझसे उस दिन के वसीले से दुआ करता हूं जिसे तूने मुसलमानों के लिए ईद का दिन क़रार दिया है। (वसाएलुश-शिया, जिल्द 7, पेज 468, बिहारुल अनवार, जिल्द 88, पेज 379)

5- मासूमीन अ.स. के ज़िक्र किए गए अक़वाल और दुआओं से साफ़ हो जाता है कि अल्लाह ने ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा को मुसलमानों के लिए ख़ास तोहफ़ा बना कर ईद का दिन क़रार दिया है, इसलिए हर मुसलमान की ज़िम्मेदारी है कि वह इन दिनों को ईद के दिन के तौर पर ही मनाएं, क्योंकि किसी भी मुसलमान के लिए यह बिल्कुल सही नहीं है कि वह अपने अल्लाह के हुक्म को अनदेखा करते हुए ईद के दिन को ग़म और सोग का दिन साबित करने की कोशिश करे।

ज़ाहिर है कि जो भी अल्लाह के हुक्म को विरोध करते हुए कोई अमल करे उसका इस्लाम और ईमान दोनों शक के दायरे में आ जाएगा, शायद इसी बात को ध्यान में रखते हुए शिया दुश्मन ताक़तों की भरपूर कोशिश है कि वह शियों के बीच ऐसी चीज़ें दाख़िल करने की कोशिश करें जिससे आम मुसलमानों की निगाह में शियों का इस्लाम और ईमान शक की निगाह से देखा जाने लगे।

इसीलिए अल्लाह ने ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा जो अल्लाह की शआयरे इलाही में से है और मुसलमानों की ख़ुशी के ख़ास दिन हैं और जिन्हें इस्लामी ईद कहा जाता है, उन्हें शियों की निगाह में सोग का दिन बताने की साज़िश की जा रही है, और सीधे सादे शिया मोमिनों के दिलों में अहलेबैत अ.स. की मोहब्बत का ग़लत फ़ायदा उठाते हुए क़ुल और दसवें जैसी रस्मों को बुनियाद बना कर शियों को इस्लामी समाज से दूर करने की गंभीर प्लानिंग की जा रही है ताकि दुनिया की निगाहों में यह साबित किया जा सके कि शिया का इस्लामी समाज से कोई रिश्ता नहीं है यह ऐसी क़ौम है जो इस्लामी ईद के दिनों को सोग समझते हैं।

इसके लिए जानबूझ कर या जेहालत की वजह से शियों के बीच अहलेबैत अ.स. की कुछ ऐसी हदीसों को फैलाने की कोशिश की जा रही है जिनको ज़ाहिरी तौर से देखने में सोग का दिन मनाने जैसा लगता है जबकि हम चौथे प्वाइंट में अहलेबैत अ.स. से नक़्ल होने वाली हदीसों और दुआओं के साथ बयान कर चुके हैं जिनमें ईद के दिन को सोग या ग़म का दिन मनाने से नकारा गया है।

ध्यान रहे कि ईद के दिन अहलेबैत अ.स. की मुसीबत को याद कर के आंसू बहाने से किसी ने नहीं रोका लेकिन ईद के दिन को ग़म का दिन बताना अहलेबैत अ.स. की सीरत के ख़िलाफ़ है, बल्कि हर मोमिन की ज़िम्मेदारी है वह ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा के दिनों में इस्लाम द्वारा बताए गए तरीक़ों से ईद मनाने की कोशिश करे।