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source : ابنا
सोमवार

8 अप्रैल 2024

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ईदुल फ़ितर ईद का दिन या अहलेबैत अ.स. के ग़म का? 1

हमें केवल इमाम हुसैन अ.स. के चेहलुम के दिन को सोग के तौर पर मनाने के लिए ताकीद की गई है, इसके अलावा किसी भी मासूम अ.स. के क़ुल, दसवें या चेहलुम मनाने पर कोई दलील नहीं है, जेहालत और कट्टरता की बुनियाद पर ईद के दिनों को ग़म और सोग के दिन बताने वालों को इन बातों की ओर भी ध्यान रखना चाहिए कि 18 ज़िलहिज्जा (ईदे ग़दीर) के दिन इमाम बाक़िर अ.स. और सफीरे इमाम हुसैन हज़रत मुस्लिम इब्ने अक़ील का दसवां है।

सवाल, क्या ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा के दिन अहलेबैत अ.स. का ग़म मनाना सही है?

हक़ीक़त में यह सवाल शियों के बीच कुछ आम लोगों की जानबूझ कर या अनजाने में टेढ़ी फ़िक्र की वजह से सामने आया है जो मासूमीन अ.स. के दिनों को भी अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ ढ़ालने की कोशिश करते हुए ईद के दिनों में काले कपड़े पहनने, मजलिस व मातम करने और सोग मनाने का प्रचार करते हैं।

हम संक्षेप में इस लेख में मासूमीन अ.स. की हदीस की रौशनी में इसका जवाब तलाश करने की कोशिश करेंगे कि क्या ईद के दिन शियों के लिए भी ईद हैं या इन दिनों में ग़म मनाना चाहिए?

1- पहली बात यह कि इस्लाम में माहे शव्वाल के पहले दिन (ईदुल फ़ितर) और 10 ज़िलहिज्जा (ईदुल अज़हा) को मुसलमानों के लिए ख़ास तौर से ईद का दिन बताया गया है, यही वजह है कि इन दिनों को ईद के दिन के तौर पर मनाने में आम मुसलमानों के बीच कोई मतभेद नहीं है।

2- यह तारीख़ी हक़ीक़त है कि मासूमीन अ.स. ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा को ईद के दिन समझ कर गुज़ारते थे, और मासूमीन अ.स. के बाद भी हर दौर में ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा को ईद के दिन के तौर पर पूरे मज़हबी जोश और जज़्बे के साथ मनाया जाता रहा है जिसमें शियों के बुज़ुर्ग उलमा भी शामिल रहे हैं।

अब ईद को ग़म और सोग का दिन बताने वालों को चाहिए कि या आज तक ईद के दिनों को ईद को दिन के तौर पर मनाने वाले शियों को शीयत से बाहर कर दें या इस बात को मान लें कि ईद का दिन ईद और ख़ुशी का ही है, यह दिन ग़म और सोग के नहीं हैं।

3- अगर कहा जाए कि ईद का दिन इमाम अली अ.स. का दसवां है इसलिए ग़म और सोग मनाना चाहिए तो इसके जवाब में कहा जा सकता है कि हमें केवल इमाम हुसैन अ.स. के चेहलुम के दिन को सोग के तौर पर मनाने के लिए ताकीद की गई है, इसके अलावा किसी भी मासूम अ.स. के क़ुल, दसवें या चेहलुम मनाने पर कोई दलील नहीं है, जेहालत और कट्टरता की बुनियाद पर ईद के दिनों को ग़म और सोग के दिन बताने वालों को इन बातों की ओर भी ध्यान रखना चाहिए...

** 18 ज़िलहिज्जा (ईदे ग़दीर) को इमाम बाक़िर अ.स. और हज़रत मुस्लिम इब्ने अक़ील का दसवां है।

** 9 रबीउल अव्वल (ईदे ज़हरा स.अ.) को इमाम हसन असकरी अ.स. का क़ुल है।

** 17 रबीउल अव्वल (पैग़म्बर स.अ. और इमाम सादिक़ अ.स. की विलादत के दिन) इमाम हसन असकरी अ.स. का दसवां है।

** 13 रजब (इमाम अली अ.स. की विलादत के दिन) इमाम अली नक़ी अ.स. का दसवां और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. का चेहेल्लुम है।

** 4 शाबान (हज़रत अब्बास अ.स. की विलादत का दिन) इमाम मूसा काज़िम अ.स. का दसवां है।

** 27 रजब (ईदे बेसत) हज़रत अबू तालिब अ.स. का क़ुल है।

** 7 शाबान (हज़रत क़ासिम इब्ने इमाम हसन अ.स. की विलादत का दिन) हज़रत अबू तालिब अ.स. का दसवां है।

तो क्या ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा को ग़म और सोग मनाने वाले लोग ऊपर दी गई ख़ुशी के दिनों में सोग मनाएंगे???