पिछले हिस्से में आप ने इस विशेष रात की अहमियत को इस्लामी रिपब्लिक ईरान के सुप्रीम लीडर और आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी की ज़बानी पेश किया, इस हिस्से में हम कुछ दूसरे मराजेअ की ज़बानी इस रात की अहमियत को बताएँगे।
आयतुल्लाह वहीद ख़ुरासानी
हर महीने एक क़ुर्आन इमाम ज़माना अ.स. के लिए पढ़ कर हदिया करें, शबे क़द्र में आपके सारे आमाल उनके सामने पेश किए जाते हैं जो 1 लाख 24 हज़ार नबियों का ख़ुलासा हैं, जिस समय वह यह देखेंगे कि आप ने हर महीने एक क़ुर्आन पढ़ कर उन्हें हदिया किया है तो आप उनकी दया और कृपा को सोंच भी नहीं सकते।
यही वह चीज़ है जिसकी ओर हमारा ध्यान नहीं है, और हम सोंचते भी नहीं कि हम क्या खो रहे हैं और हमारी उम्र किन चीज़ों में बीत रही है।
आयतुल्लाह हुसैन मज़ाहिरी
आप फ़रमाते हैं, इस्लामी शिक्षा के अनुसार एक ख़ास अहमियत रखती है, जिसको क़द्र नामी सूरे की पहली ही आयत से समझा जा सकता है, जिसमें अल्लाह इस प्रकार फ़रमाता है, हम ने क़ुर्आन को शबे क़द्र में नाज़िल किया।
दूसरी ध्यान देने वाली बात यह कि इसी सूरे की दूसरी आयत जिस में अल्लाह फ़रमाता है कि, तुम क्या जानो शबे क़द्र क्या है?
अरब वासी इस जुमले का प्रयोग उस समय करते हैं जब किसी चीज़ की अहमियत को बताना हो, या यूँ कहा जाए कि शबे क़द्र की अहमियत को शब्दों में बयान नहीं किया सकता।
शबे क़द्र हज़ार महीनों के बराबर है, और हज़ार महीने लगभग 80 वर्ष के बराबर होते हैं, और अगर ध्यान दिया जाए तो आम तौर से एक आदमी लगभग 80 वर्ष ही जीवन बिताता है, इसका मतलब यह है कि इस रात में की गई इबादत एक पूरी उम्र की इबादत से अधिक अहमियत रखती है।