शबे क़द्र एक ऐसी अहम और महत्वपूर्ण रात है जिस में अल्लाह अपनी रहमत का दरवाज़ा अपने बंदों के लिए खोल देता है, और उन्हें अपनी तरफ़ पलटने और तौबा करने का मौक़ा देता है, कि शायद मेरा बंदा आज की रात की बरकतों और रहमतों से लाभ उठा सके, जैसा कि अल्लाह ने क़ुर्आन में ख़ुद कहा है कि आज की रात हज़ार रातों से बेहतर है।
इस रात की महत्वपूर्णता को अल्लाह के अलावा उसके आख़िरी नबी ने रमज़ान से पहले एक ख़ुतबे में बयान किया, फ़िर इमामों ने भी हर दौर में इसकी अहमियत को लोगों तक पहुँचाया, और इस दौर में दीन की सही व्याख्या और विवरण करने वाले हमारे दौर के महान विद्वान और ज्ञानी जिन्हें हम मराजे कहते हैं उन्हों ने भी इस महत्वपूर्ण रात की अहमियत को बताया जिसे इस लेख द्वारा आप के सामने बयान किया जाएगा।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई
आप इस रात की अहमियत को इस प्रकार बयान फ़रमाते हैं कि, यह रात बीमारियों के इलाज की रात है, और अफ़सोस आज दुनिया की बहुत सी क़ौमें ख़ास कर मुसलमान नैतिक, आत्मिक, सार्वजनिक, समाजिक और वित्तीय समस्याओं से जूझ रहा है।
और आज अल्लाह ने यह मोहलत दी कि आप उसकी बारगाह में रोयें, गिड़गिड़ायें, और हाथ फैला कर उसकी पैरवी का सुबूत पेश करें, उस से इश्क़ और मोहब्बत का सुबूत आँखों से आँसू बहा कर पेश करें, इस मौक़े को हाथ से मत जाने दीजिए, वरना एक दिन ऐसा आएगा जिस दिन अल्लाह गुनहगारों और पापियों से कहेगा, आज रोने का कोई फ़ायदा नहीं आज हमारे अज़ाब से कोई नहीं बचा सकता। (सूरए मोमेनून, आयत 65)
यह मौक़ा अल्लाह की बारगाह में तौबा कर के अपने गुनाहों को शर्मिंदगी के आँसू से धो कर फ़िर से उसके नेक बंदे बनने का मौक़ा है, और इसके लिए पूरे साल का सबसे अच्छा अवसर रमज़ान का महीना है, और इस में भी सबसे महत्वपूर्ण शबे क़द्र की रातें हैं।
ऐसे लोग भी मौजूद रहे हैं जिनकी हर रात शबे क़द्र रही है यानी वह रमज़ान की हर रात अल्लाह की याद और उसकी बारगाह में गिड़गिड़ा के बितातें हैं। (16-01-1998 में जुमे के ख़ुतबे से लिया गया)
आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी
आप की किताबों से शबे क़द्र के बारे में इस प्रकार मिलता है, हमारे इमामों ने शबे क़द्र को निर्धारित नहीं किया है, उसे तीन रातों उन्नीसवीं, इक्कीसवीं और तेइसवीं रात के बीच में से किसी एक को कहा है, और इसका कारण यह है कि मोमेनीन ज़्यादा से ज़्यादा शबे क़द्र से लाभ उठा सकें, और तीनों रात शबे क़द्र के आमाल अंजाम दे कर रूह को सुकून दे सकें, और अल्लाह की इबादत कर के उसकी विशेष रहमत से लाभांवित हो सके।
यह और बात है कि कुछ विद्वानों ने इक्कीसवीं और तेइसवीं रात में से शबे क़द्र को बताया है, लेकिन अहले बैत अ. से जो हदीसें नक़्ल हुई हैं उनमें से अधिकतम हदीसों ने तेइसवीं रात को शबे क़द्र बताया है।
इसीलिए इस मौक़े से फ़ायदा उठाते हुए अल्लाह से क़रीब और शैतान की पैरवी से दूर हो जाना चाहिए।
और यह बात स्पष्ट है कि शबे क़द्र की बरकतों को पाने के लिए केवल इसी रात अल्लाह की इबादत को जैसा उसने चाहा है अंजाम देना होगा।
और यह भी ध्यान रहे कि इस महत्वपूर्ण रात के समस्त लाभ को उठाने के लिए रमज़ान से पहले ही तक़वा, परहेज़गारी अनिवार्य है।
इसी प्रकार आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी तौबा की अहमियत और शबे क़द्र में गुनाहों की माफ़ी के बारे में फ़रमाते हैं कि, हमें इस मौक़े का लाभ उठाते हुए छोटे बड़े हर प्रकार के गुनाह से तौबा करनी चाहिए, छोटे गुनाहों से बचने के लिए काफ़ी हदीसें पाई जाती हैं, और अगर छोटे गुनाहों को अनदेखा किया जाता रहेगा तो कब यह ख़तरे के निशान के पार पहुँच जाएगा पता तक नहीं चलेगा, और हमारा गिरेबान पकड़ कर जहन्नुम तक पहुँचा देगा।