AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : ابنا
सोमवार

18 मार्च 2024

9:52:56 am
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रमज़ान की फ़ज़ीलत और आमाल-2

माहे रमज़ान में रोज़ा इफ़तार के समय अल्लाह एक लाख रोज़ेदारों को जहन्नम की आग से आज़ाद कर देता है और शबे जुमा और जुमा के दिन हर पल ऐसे हज़ारों गुनहगारों को जहन्नम से निजात देता है जिन पर जहन्नम वाजिब हो चुकी है और फिर माहे रमज़ान की आख़िरी रात में इतने बंदों को जहन्नम से निजात अता करता है जितनों को पूरे रमज़ान में निजात अता की है।

शैख़ सदूक़ र.ह. ने रिवायत नक़्ल की है कि जब रमज़ान का महीना आता था तो पैग़म्बर स.अ. सभी ग़ुलामों और क़ैदियों को आज़ाद कर दिया करते थे और किसी भी मांगने वाले को ख़ाली हाथ नहीं जाने देते थे।

शैख़ अब्बास क़ुम्मी नक़्ल करते हैं कि माहे रमज़ान अल्लाह का महीना है और यह सारे महीनों से अफ़ज़ल है, यह वह महीना है जिसमें आसमान, जन्नत और रहमत के दरवाज़े खुल जाते हैं और जहन्नम के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं, इस महीने में एक रात ऐसी भी है जिसमें इबादत करना हज़ार महीनों की इबादत से बेहतर है, इसलिए ऐ लोगों तुमको सोचना चाहिए कि तुम लोगों को इस महीने के रात दिन कैसे गुज़ारने हैं और अपने बदन के हर हिस्से कैसे अल्लाह की मासियत से बचाते हैं।

ख़बारदार कोई शख़्स इस महीने की रातों में सोता न रहे और दिनों में अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल न रहे क्योंकि एक हदीस में ज़िक्र हुआ है कि माहे रमज़ान में रोज़ा इफ़तार के समय अल्लाह एक लाख रोज़ेदारों को जहन्नम की आग से आज़ाद कर देता है और शबे जुमा और जुमा के दिन हर पल ऐसे हज़ारों गुनहगारों को जहन्नम से निजात देता है जिन पर जहन्नम वाजिब हो चुकी है और फिर माहे रमज़ान की आख़िरी रात में इतने बंदों को जहन्नम से निजात अता करता है जितनों को पूरे रमज़ान में निजात अता की है।

इसलिए ध्यान रखना कहीं ऐसा न हो कि रमज़ान ख़त्म हो जाए और तुम्हारी गर्दन पर गुनाहों का बोझ लदा रहे और तुम उन लोगों में गिने जाओ जिनको जहन्नम से आज़ाद होने से महरूम रह गए हों क्योंकि इमाम सादिक़ अ.स. से हदीस है कि जो शख़्स इस बरकत वाले महीने में नहीं बख़्शा गया वह अगले साल रमज़ान तक नहीं बख़्शा जाएगा मगर यह कि वह हज के समय अरफ़ात के मैदान मे हाज़िर हो कर मग़फ़ेरत की दुआ करे, इसलिए तुम्हें हर उस चीज़ से बचना चाहिए जिसे अल्लाह ने हराम किया हो, और तुम्हें इस तरह रहना चाहिए जैसे इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स. ने वसीयत फ़रमाई है कि जब तुम रोज़ा रखो तो तुम्हारे कानों आंखों और जिस्म के सभी हिस्सों का रोज़ा होना चाहिए, यानी जिस्म के सभी हिस्सों को हराम बल्कि मकरूह चीज़ों से बचाना चाहिए, इमाम अ.स. ने यह भी फ़रमाया कि जिस दिन तुम रोज़ा नहीं रहते हो उस दिन की तरह तुम्हारे रोज़ा रहने वाला दिन नहीं होना चाहिए, फिर फ़रमाया कि रोज़ा केवल भूखा रहना नहीं है बल्कि रोज़े की हालत में अपनी ज़बान को झूठ से बचा कर रखो, आंखों को हराम से दूर रखो, रोज़े की हालत में किसी से लड़ाई झगड़ा मत करो, किसी से हसद (ईर्ष्या) मत करो, झूठी क़सम मत खाओ बल्कि सच्ची क़सम खाने से भी बचो, गालियां मत दो, ज़ुल्म मत करो, जाहिलों का रवैया मत अपनाओ, अल्लाह की याद और नमाज़ से ग़ाफ़िल मत हो, सब्र से काम लो, सच बोलो, बुरे लोगों से दूर रहो, तोहमत और चुग़लख़ोरी से बचो, ख़ुद को आख़ेरत से क़रीब समझो, हर समय इमाम ज़माना अ.स. के ज़ुहूर के इंतेज़ार में रहो, आख़ेरत के सवाब की उम्मीद रखो, आख़ेरत के लिए नेक आमाल को जमा करो, अल्लाह के अज़ाब से बिल्कुल वैसे ही डरे हुए रहो जैसे एक नौकर हमेशा अपने मालिक से डर कर रहता है जिसका दिल थमा हुआ और जिस्म सहमा हुआ रहता है लेकिन साथ ही उसकी रहमत की उम्मीद रखो।

ऐ रोज़ेदारों तुम्हारे दिल बुराईयों तुम्हारा बातिन मक्कारी और तुम्हारा जिस्म गुनाहों से पाक हो जाना चाहिए, अल्लाह के अलावा हर ख़ुदा को अपने दिल से उखाड़ फेको और रोज़े की हालत में अल्लाह की मदद और उससे मोहब्बत में ख़ुलूस पैदा करो, हर उस चीज़ से दूर हो जाओ जिससे अल्लाह ने अकेले और खुलेआम करने से रोका है, उस क़ह्हार ख़ुदा से ऐसे डरो जैसे डरने का हक़ है और रोज़े की हालत में अपना जिस्म और रूह अल्लाह के हवाले कर दो और अपने दिल को केवस उसी को मोहब्बत के लिए तैयार कर लो और अपने जिस्म को हर उस काम को करने के लिए तैयार रखो जिसका उसने हुक्म दिया है, अगर तुमने इन सभी चीज़ों पर अमल कर लिया तो समझो तुमने अल्लाह की सभी नसीहतों पर अमल किया है, इसके बाद इमाम अ.स. ने फ़रमाया अगर तुमने मेरी बताई गई सारी बातों पर अमल नहीं किया तो तुम्हारे रोज़ों के सवाब और फ़ज़ीलत में यक़ीनन कमी आ जाएगी।

इसके बाद इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स. फ़रमाते हैं कि मेरे वालिद इमाम बाक़िर अ.स. ने फ़रमाया कि पैग़म्बर स.अ. ने एक औरत के बारे में सुना कि उसने रोज़े की हालत में अपनी कनीज़ को गाली दी है तो आपने उस औरत को बुला कर खाना मंगवाया और उस औरत से कहा कि यह लो खाना खा लो, उसने कहा या रसूलल्लाह (स.अ.) मैं रोज़ा हूं, पैग़म्बर स.अ. ने फ़रमाया कि यह कैसा रोज़ा है जबकि तुमने अभी कुछ देर पहले अपनी कनीज़ को गाली दी है, रोज़ा केवल भूखे प्यासे रहने का नाम नहीं है बल्कि अल्लाह ने रोज़े का मतलब हर बुरे काम हर बुरी बात से बचना बताया है, इसीलिए बुज़ुर्ग उलमा कहते हैं कि हक़ीक़ी रोज़ेदार बहुत कम ही लोग होते हैं और भूखे प्यासे रहने वाले बहुत ज़्यादा हैं।

इमाम अली अ.स. ने फ़रमाया कितने ही रोज़ेदार ऐसे हैं जिनके हाथ केवल भूख और प्यास ही आती है, और कितने इबादत करने वाले ऐसे हैं जिनके हिस्से में केवल जिस्म की थकान आती है, क्या कहना उस अक़्लमंद की नींद का जो जाहिल की बेदारी से बेहतर है और क्या कहना उस अक़्लमंद इंसान का जिसका रोज़े से न होना रोज़ेदारों से बेहतर है।

जाबिर इब्ने यज़ीद जोअफ़ी ने इमाम बाक़िर अ.स. से रिवायत नक़्ल की है कि पैग़म्बर स.अ. ने जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह से फ़रमाया, ऐ जाबिर रमज़ान एक मुबारक महीना है, जो शख़्स इस महीने दिनों में रोज़ा रखे और रातों के कुछ हिस्से में इबादत करे अपने पेट और शर्मगाह को हराम से बचाए, अपनी ज़बान पर क़ाबू रखे तो वह शख़्स गुनाहों से इस तरह बाहर आ जाएगा जैसे यह महीना जल्द ख़त्म हो गया है, जाबिर ने कहा या रसूलल्लाह (स.अ.) कितनी अच्छी हदीस बयान फ़रमाई है, आपने फ़रमाया वह शर्तें कितनी सख़्त हैं जिन्हें मैंने रोज़े के लिए बयान की हैं।