اَللّهُمَّ لاتَخْذُلْنِی فِیهِ لِتَعَرُّضِ مَعْصِیتِک وَ لاتَضْرِبْنِی بِسِیاطِ نَقِمَتِک وَ زَحْزِحْنِی فِیهِ مِنْ مُوجِبَاتِ سَخَطِک بِمَنِّک وَ أَیادِیک یا مُنْتَهَی رَغْبَةِ الرَّاغِبِینَ
ख़ुदाया मुझे इस अपनी ना फ़रमानी से क़रीब मत होने दे, और अपनी नाराज़गी के कोड़े से मुझ पर अज़ाब मत नाज़िल कर, और अपने फ़ज़्ल के वसीले से अपनी नाराज़गी की वजह बनने वाले आमाल से दूर रख, ऐ रग़बत रखने वालों की आख़िरी उम्मीद।