AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : ابنا
रविवार

17 मार्च 2024

9:41:26 am
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क़ुरआने करीम की बहार माहे मुबारके रमज़ान-2

जो इंसान तिलावते क़ुरआन से मानूस हो गया तो उसे दोस्तों की जुदाई से वहशत नहीं होगी।

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक (अ.स) फरमाते हैं:

माहे मुबारके रमज़ान का दिल शबे क़द्र है। (बिहारुल-अनवार, जिल्द 96, पेज 386)

माहे रमज़ान की बहुत सारी बरकतें क़ुरआन के सिलसिले में हैं इस लिए इस माहे मुबारक में क़ुरआन के नूरानी अहकाम को अपने दिल में उतारना चाहिए। क़ुरआनी तालीम के फल को इस महीने में अपनी रूह और आत्मा की खुराक बनाएं। अपने दिल को बरकतों के साये में मज़बूत करें यह सब तभी मुमकिन है जब हमे क़ुरआन से मानूस हों।

क़ुरआने करीम से मानूस होना

उन्स और मानूस होना परेशानी का विलोम और अपोज़िट है। इंसान का किसी चीज़ से मानूस होने का मतलब है कि उसे उस चीज़ से किसी तरह का दुःख, परेशानी नहीं है बल्कि उसके साथ सुकून महसूस करता है।

हज़रत अमीरुल मोमेनीन अली अ.स. फरमाते हैं :

مَنْ آنَسَ بِتَلاوَةِ الْقُرآنِ، لَمْ تُوحِشْهُ مُفارَقَةُ الاِخْوانِ

जो इंसान तिलावते क़ुरआन से मानूस हो गया तो उसे दोस्तों की जुदाई से वहशत नहीं होगी। (गुररुल हिकम हदीस नंबर 8790)

इमाम सज्जाद अ.स. इस सिलसिले में फ़रमाते हैं

لَوْ ماتَ مِنْ بَيْنِ الْمَشْرِقِ وَالْمَغرِبِ لَمَا اسْتَوْحَشْتُ، بَعْدَ اَنْ يَكُونَ الْقُرْآنُ مَعِي

अगर पूरब से पश्चिम तक के लोग मर जाएं और क़ुरआन मेरे साथ रहे तो मुझे कोई ख़ौफ़ नहीं होगा।

(तफ़्सीरे अय्याशी, जिल्द 1, पेज 33, हदीस 23)

हक़ीक़ी आरिफ वह है जो खुदा और उसके कलाम से ऐसे मानूस हो जाए जैसे

हज़रत अमीरुल मोमेनीन अली अस सूरए इन्फेंतार की आयत يَا أَيُّهَا الْإِنسَانُ مَا غَرَّ‌كَ بِرَ‌بِّكَ الْكَرِ‌يمِ के सिलसिले में फरमाते हैं :

وَكُنْ للّهِ مُطيعا وَ بِذِكْرِهِ آنِسا

अल्लाह के इताअत गुज़ार बन जाओ और उसकी याद से उन्स हासिल करो (नहजुल बलाग़ा, खुत्बा 223)

क़ुरआन की तिलावत और क़ुरआन से मानूस होना दो अलग अलग चीज़ है। क़ुरआन पढ़ना और है और क़ुरआन से मानूस होना है। हालाँकि तिलवाते क़ुरआन उन्स हासिल करने की दिशा में पहला क़दम है।

क़ुरआने करीम से उन्स हासिल करने की कुछ शर्तें हैं जिनमे पहली शर्त क़ुरआन से मोहब्बत है। संभव है कि कोई इंसान ज़िन्दगी हर क़ुरआन की तिलावत करे लेकिन उसे क़ुरआन से मोहब्बत न हो।

यह जान लेना ज़रूरी है कि क़ुरआन ज़िंदा हक़ीकत है। क़ुरआन से उन्स मतलब इंसान हर पल क़ुरआन का नज़ारा करे। उसी ज़ियारत करे, उसका बोसा ले उसे अपने साथ रखे अगर ऐसा करेगा तो क़ुरआन अपना असर दिखाएगा। इस काम को हर इंसान कर सकता है और इस काम की हद तक फैज़ हासिल कर सकता है।