AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : ابنا
मंगलवार

6 फ़रवरी 2024

6:03:18 am
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इमाम मूसा काज़िम अ.स. की ज़िंदगी पर एक निगाह

......पैग़म्बर स.अ. को रसूल के बजाए भाई कह कर सलाम किया, आपने यह मंज़र देखते ही पैग़म्बर स.अ. की क़ब्र से ख़िताब करते हुए या अबाताह (बाप) कहा, हारून यह देख कर बर्दाश्त नहीं कर सका और तुरंत गिरफ़्तारी का हुक्म दे दिया, क्योकि आपने हुकूमत की साज़िश से पल भर में पर्दा उठा दिया था।

आपकी विलादत 7 सफ़र सन 128 हिज्री और शहादत 25 रजब सन 183 हिज्री को हुई थी।

आप इमाम सादिक़ अ.स. के बेटे थे और आपकी मां का नाम हमीदा ख़ातून था, और उन्हीं से रिवायत है कि इमाम अ.स. ने सज्दे में सर रख कर शहादतैन ज़बान पर जारी किया और इस तरह इस्लाम और ईमान का क़ौली और अमली सबूत पेश कर के यह साबित कर दिया कि अल्लाह का नुमाइंदा अपने मज़हब की तालीमात अपने साथ लेकर आता है और किसी की तालीम और तरबियत का मोहताज नहीं होता है, वह कलमा सिखाने के लिए आता है सीखने के लिए नहीं आता, वह केवल अपने सज्दे से बंदगी का इज़हार नहीं करता बल्कि उसका काम माबूद के सज्दे के ज़रिए मख़लूक़ात को ख़ालिक़ तक पहुंचाना होता है।

आपके दाहिने बाज़ू पर क़ुदरत ने क़ुर्आन की आयत "तम्मत कलेमतो रब्बिका...." लिखी हुई थी, और आपकी विलादत के मौक़े पर इमाम सादिक़ अ.स. ने वलीमे की दावत रखी ताकि लोगों अल्लाह की हुज्जत के आने की जानकारी हो जाए। (जिलाउल उयून)

आपका एक लक़ब बाबुल हवाएज भी है और इसमें कोई शक नहीं है कि अपनी ज़रूरतों को अल्लाह की बारगाह तक पहुंचाने और वहां से मुराद हासिल करने का दरवाज़ा इमाम मासूम ही होता है और इमाम मूसा काज़िम अ.स. की ज़िंदगी में यह पहलू कुछ ज़्यादा रौशन था जिसका सिलसिला आज तक जारी है और काज़मैन वाले इसी लक़ब से याद करते हैं और इसी लक़ब से पुकारते हैं।

आपके दौर के हाकिम:

आपकी ज़िंदगी में जिन हाकिमों ने हुकूमत की वह इस तरह से थे:

मरवान हेमार: सन 128 हिजरी में यही शख़्स हाकिम था जो एक ही समय में मरवान भी था और हेमार (गधा) भी था और आख़िर में मुसलमानों का ख़लीफ़ा भी।

सफ़्फ़ाह: सन 132 में यह ज़ालिम हाकिम हुआ

मंसूर: सन् 136 हिजरी में मंसूर ने हुकूमत पर क़ब्ज़ा किया

महदी: सन 158 हिजरी में मंसूर के बेटे महदी ने सत्ता पर क़ब्ज़ा किया

हादी: और फिर सन् 169 हिजरी में महदी का भाई हादी सत्ता में आया जो केवल 1 साल तक रह सका

हारून: सन् 170 हिजरी से हारून की हुकूमत की शुरुआत हुई और इसी ज़ालिम ने इमाम अ.स. को ज़हर दे कर शहीद किया।

ध्यान रहे कि बनी उमय्या की हुकूमत का ख़ात्मा मरवान हेमार पर हुआ और सफ़्फ़ाह जैसे ज़ालिम से बनी अब्बास की हुकूमत की शुरुआत हुई।

आपकी उम्र केवल तीन साल की थी जब सफ़वान जम्माल ने इमाम सादिक़ अ.स. से पूछा कि आपका वारिस कौन होगा? तो आपने अपने बेटे की तरफ़ इशारा किया जो एक बकरी के बच्चे को खिला रहे थे और उससे लगातार सजदा करने को कह रहे थे ताकि जितने लोग देख रहे हैं वह होश में आ जाएं कि जो लोग सजदा नहीं करते वह जानवर से भी गए गुज़रे होते हैं।

आप पांच साल के थे जब अबू हनीफ़ा, इमाम सादिक़ अ.स. से जब्र के अक़ीदे (बंदा अपने कामों में मजबूर होता है) के सिलसिले में बहस करने आए थे लेकिन इमाम काज़िम अ.स. ने पहले ही यह सवाल उठा दिया कि इसकी तीन सूरतें हैं: या गुनाह का ज़िम्मेदार अल्लाह होगा और बंदा केवल मजबूर होगा ऐसी सूरत में अज़ाब देना ज़ुल्म होगा, या दोनों गुनाह में शरीक होंगे तो दोनों पर अज़ाब होना चाहिए, और अगर दोनों बातें नहीं हैं तो इसका मतलब यह है कि बंदा अपने आमाल का ख़ुद ज़िम्मेदार है अल्लाह ने उसे इख़्तियार दे कर छोड़ दिया है अब जिस तरह के आमाल वह अंजाम देगा उसी हिसाब से सवाब और अज़ाब का हक़दार होगा।

अबू हनीफ़ा ने आपको नमाज़ पढ़ते देखा जब लोग सामने से गुज़र रहे थे तो तुरंत आपत्ति जताई कि यह नमाज़ की शान नहीं है, तो आपने फ़रमाया कि मेरा अल्लाह मेरी शह रग से ज़्यादा क़रीब है यह रास्ता चलने वाले मेरे और अल्लाह के बीच में रुकावट नहीं बन सकते।

हारून आपके कमाल की शोहरत से बेहद परेशान था, और फिर एक बार हज के मौक़े पर आए हुए लोगों के सामने आपसे यह सवाल किया कि आप ख़ुद को किस तरह पैग़म्बर स.अ. की औलाद में शुमार करते हैं? आपने तुरंत जवाब दिया कि जिस तरह क़ुर्आन ने हज़रत ईसा को हज़रत इब्राहीम की औलाद में शुमार किया है हालांकि उनका कोई बाप नहीं था और उनका हर रिश्ता मां की तरफ़ से था। (स्वाएक़े मोहरेक़ा, इब्ने हजर)

हारून हज के बाद पैग़म्बर स.अ. की क़ब्र की ज़ियारत के लिए गया और भीड़ पर अपनी रौब झाड़ने के लिए पैग़म्बर स.अ. को रसूल के बजाए भाई कह कर सलाम किया, आपने यह मंज़र देखते ही पैग़म्बर स.अ. की क़ब्र से ख़िताब करते हुए या अबाताह (बाप) कहा, हारून यह देख कर बर्दाश्त नहीं कर सका और तुरंत गिरफ़्तारी का हुक्म दे दिया, क्योकि आपने हुकूमत की साज़िश से पल भर में पर्दा उठा दिया था। (वफ़यातुल आयान)

हारून ने क़ैद में इमाम अ.स. के पास एक औरत को भेजा ताकि वह इमाम अ.स. को अल्लाह की इबादत से गाफ़िल कर दे और वह लोगों में यह भ्रम फैला सके कि बनी फ़ातिमा मजबूरी में इबादत किया करते हैं वरना उनका भी नफ़्स आम इंसानों ही की तरह होता है, लेकिन उस औरत ने जब जेल में इमाम अ.स. की इबादत की शान देखी तो वह सजदे में गिर पड़ी और उस समय तक सजदे से सर नहीं उठाया जब तक हुकूमत ने ख़ुद ज़बर्दस्ती उसको वहां से बाहर नहीं निकाल दिया।

आपने क़ैद से हारून को एक ख़त लिखा कि हम दोनों एक तय ज़िंदगी लेकर आए हैं और हर गुज़रने वाला दिन तेरे आराम का एक दिन कम कर रहा है और मेरी मुसीबत का एक दिन कम कर रहा है और फिर मौत की सरहद पर पहुंच कर तेरे पास केवल मुसीबतें रह जाएंगी और मेरे पास केवल आराम रह जाएगा, जिसके बाद हारून के होश उड़ जाते हैं लेकिन हुकूमत तो हुकूमत होती है, हारून ने आपको अनेक जेलों में रखा और आख़िर में सिंदी इब्ने शाहक की जेल में आपको ज़हर देकर शहीद कर दिया गया और वहां से आपका जनाज़ा ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ बरामद हुआ। (सवाएक़े मोहरेक़ा)