सऊदी अरब लाल सागर में अमेरिकी नौसैनिक गठबंधन में भाग लेकर ईरान के साथ अपने रिश्तों को खराब नहीं करना चाहता।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने लाल सागर में जहाजों की सुरक्षा के लिए अपने नेतृत्व में एक नौसैनिक गठबंधन के गठन की घोषणा की, तो इस अभियान में भाग लेने वाले देशों में सऊदी अरब का नाम न होने से विशेषज्ञों में हैरत पैदा हो गई।
हालांकि सऊदी अरब के पास अमेरिकी हथियारों से लैस सेना है और उसने करीब 9 साल पहले यमन के लोकप्रिय जनांदोलन अंसारुल्लाह के खिलाफ युद्ध शुरू किया था और इसके अलावा वह अपने 36% आयात के लिए लाल सागर के बंदरगाहों पर निर्भर है, लेकिन रियाज़ और उसके फारस की खाड़ी के सहयोगी देशों ने इस गठबंधन में भाग लेने की इच्छा नहीं दिखाई।
रायटर्स के मुताबिक़ ऐसा लगता है कि इस अनुपस्थिति का मुख्य कारण रियाज़ की चिंता है कि वह यमन में अराजक युद्ध से बाहर निकलने और ईरान के साथ विनाशकारी तनाव से बचने के अपने दीर्घकालिक रणनीतिक लक्ष्य से न भटक जाए ।
वर्तमान में यमन के एक बड़े हिस्से को नियंत्रित करने वाले अंसारुल्लाह, ने ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल के हमलों की शुरुआत के बाद से ही घोषणा की है कि वह इस्राईल के स्वामित्व वाले या उसके झंडे के नीचे या लाल सागर के रास्ते मक़बूज़ा फिलिस्तीन के क्षेत्रों की ओर जाने वाले जहाजों पर हमला करेगा।
फारस की खाड़ी में इस मामले से परिचित दो सूत्रों ने रॉयटर्स समाचार एजेंसी को बताया कि सऊदी अरब और यूएई की अनुपस्थिति का कारण यह है कि वह ईरान के साथ तनाव बढ़ाने या यमन में शांति को खतरे में डालने से बचना चाहते हैं।
जेद्दाह के किंग अब्दुलअज़ीज़ विश्वविद्यालय के अयाद अल-रिफाई ने कहा कि "एक और युद्ध का मतलब एक राजनीतिक प्रक्रिया से दूसरी सैन्य प्रक्रिया की ओर बढ़ना है, जो लंबे समय तक मध्य पूर्व के भू-राजनीतिक मानचित्र को बदल देगा।